
lok asar bilaspur
छत्तीसगढ़ की साहित्यिक धरती पर एक नाम बड़े आदर और गौरव से लिया जाता है—डॉ. अलका यतींद्र यादव। ‘वनसुता’ जैसी महत्वपूर्ण कृति की लेखिका डॉ. यादव न केवल एक उत्कृष्ट साहित्यकार हैं, बल्कि जनजातीय जीवन की संवेदनाओं को अपनी लेखनी से जीवंत करने वाली विलक्षण प्रतिभा भी हैं।
डॉ. अलका यादव ने जनजातियों के जीवन को केवल अध्ययन का विषय नहीं बनाया, बल्कि उनके साथ रहकर, उनके सुख-दुख में सहभागी बनकर, उनकी जीवनशैली को नजदीक से जाना और समझा है। यही कारण है कि उनके साहित्य में जनजातीय समाज की आत्मा झलकती है। उनकी रचनाएँ न केवल साहित्यिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि सामाजिक चेतना को भी मजबूती प्रदान करती हैं।
बिलासपुर जिले से संबंध रखने वाली डॉ. यादव छत्तीसगढ़ प्रदेश में जनजातीय विषयों पर गंभीर और उत्कृष्ट कार्य के लिए जानी जाती हैं। उनका नाम उन चंद व्यक्तित्वों में शामिल है जिन्होंने जनजातीय समाज की संस्कृति, संघर्ष और गरिमा को शब्दों में ढाला और साहित्य के माध्यम से व्यापक समाज के सामने प्रस्तुत किया।
उनकी रचनात्मक दृष्टि, गहराई और सामाजिक सरोकारों से जुड़ी सोच ने उन्हें प्रदेश ही नहीं, राष्ट्रीय स्तर पर भी विशिष्ट पहचान दिलाई है। ‘वनसुता’ उपन्यास इसका श्रेष्ठ उदाहरण है, जिसमें उन्होंने जनजातीय नारी की पीड़ा, संघर्ष और सौंदर्य को अत्यंत प्रभावी ढंग से चित्रित किया है।
डॉ. अलका यतींद्र यादव आज की पीढ़ी के लिए प्रेरणा हैं—एक साहित्यकार, एक समाजशास्त्री और एक सांस्कृतिक सेतु, जो दो दुनियाओं को जोड़ती हैं—मुख्यधारा और हाशिए पर खड़े समाज को।
