ययाति की कथा है। हर आदमी की कथा है…

(संकलन एवं प्रस्तुति मैक्सिमम आनंद)

उपनिषदों में ययाति की कथा है। ययाति की मौत आई। वह सौ साल का हो गया था। सम्राट था। उसकी सौ रानियां थे, सौ से अधिक बेटे थे। जब मौत आई, ययाति थर्रा गया। कौन न थर्रा जाए। यद्यपि सौ साल जी लिया था, सौ रानियां थी, सौ बेटे थे, बड़ा साम्राज्‍य था, मगर कब कभी कुछ पूरा होती है। कब तृप्‍ति होती है। कितना ही हो, अतृप्‍ति तो अतृप्‍ति ही बनी रहती है। गिड़गिड़ाने लगा मौत के सामने हाथ जोड़ने लगा, कहा, यह तो बहुत जल्‍दी हो गई, कुछ खबर तो करनी थी, कुछ वर्ष दो वर्ष पहले मुझे खबर कर दी होती, जो मंशाएं मेरी अधूरी रह गई है, वे मैं पूरी कर लेता। मैं तो कुछ पूरा कर ही नहीं पाया और तू द्वार पर आ गई, बिना खबर दिए, दया कर थोड़ा समय और दे दो, तो अधूरे सपने पूरे कर लूं। सदा-सदा इच्‍छाएं पलती रही है, उनको भर लूं। अतृप्‍त, भूखा मुझे मत मार.

मृत्‍यु ने कहा, मुझे ले जाना तो पड़ेगा। तो एक काम करो—उस बूढ़े पर दया आ गई—तुम्‍हारा बदले में अगर कोई और जाना चाहता है। कोई भी तो में तुम्‍हें मोहलत दे सकती हूं। मैं उसको ले जाऊँगा पर मुझे अपने साथ तो किसी को ले जाना है।

ययाति अपने बेटों के सामने गिड़गिडाने लगा। जरा सोचो, सौ साल का बूढ़ा, अपने जवान बेटों के सामने गिड़गिड़ाने लगा की कोई भी राज़ी हो जाओ।

जो बुजुर्ग बेटे थे—कोई सत्‍तर साल का था कोई अस्‍सी साल का भी था। कोई साठ का था। कोई पचास का था। वे तो सब कन्‍नी काट गये, वे यहां-वहां देखने लगे। और स्‍वाभाविक। जब सौ साल में तुम्‍हारी इच्‍छाएं पूरी नहीं हुई तो पचास साल के बेटे की इच्‍छा कहां से पूरी हो सकती है। वह क्‍यों मरे? क्‍यों किसी के लिए मेरे?

हम कहते है लोगों से कि मैं तुम्‍हारे लिए मर जाऊँगा, लेकिन यह मौका आ जाए, तो हम कहेंगे—अरे वह तो बात की बात थी। कहने की बात थी। पति कहता है पत्‍नी से कि मैं मर जाऊँगा तेरे बिना। कोई मरता-वरता नहीं। पत्नियाँ कहती है कि मर जाएंगे तुम्‍हारे बिना। लेकिन अंग्रेजों को क्‍यों सतियों की प्रथा बंद करनी पड़ी, क्‍योंकि पत्‍नियों को जबर्दस्‍ती जलाया जाता था। और अगर मरना ही होता तो कानून तो नहीं रोक सकता था।

पहले कितनी सतियां होती थी। अब तो कोई सती नहीं होती। बेटे इधर उधर देखने लगे। सिर्फ जो सबसे छोटा था, जो अभी जवान था जिसने अभी जिन्दगी का कुछ भी नहीं देखा था, जिसकी उम्र बीस साल की थी। वह खड़ा हो गया। उसने कहा पिता जी में अपनी जवानी आपको दे देता हूं, जब आप का मन सौ साल भोगकर नहीं भरा तब मेरा कहां भर पायेगा। तुम मुझे आर्शीवाद दो। पिता तो बेहद खुश हुआ और कहने लगा तू ही मेरा असली बेटा है ये सब तो स्‍वार्थी है। तुझे बहुत पुण्‍य लगेगा। तूने अपने बाप को बचा लिया अपनी जान देकर।

लेकिन मौत को बहुत दया आई इस बेटे पर। उसने कहा ये बूढ़ा खुद को बचाने के लिए तुझे बलि चढ़ा रहा है। तू बीस साल का है। तूने तो अभी कुछ भी नहीं देखा। जीवन के न कड़वे-मीठे अनुभव प्राप्‍त है। तू सोच ले अभी इतनी जल्‍दी कुछ नहीं है। में इंतजार कर सकती हूं। अनुभव से देख तेरे दूसरे भाईयों ने मना कर दिया जो तुझसे ज्‍यादा अनुभवी है। देख अपनी पिता को सौ साल को हो कर भी नहीं मरना चाहता है। न तेरे कोई भाई मरना चाहते है। तू क्‍यों मर रहा है।

उस बेटे ने बड़ी बहुमूल्‍य बात कही। उसने कहा कि मैं यही सोच कर मरना चाहता हूं कि सौ साल के मेरे पिता हो गए, उनकी इच्‍छाएं पूरी नहीं हुई, तो अब अस्‍सी साल में क्‍यों घिसटता फिरूं, क्‍या सार निकलेगा। अनुभव जब सामने है तो क्‍यों उसमें कूदूं और सौ साल बाद मैं भी अपने बेटे के सामने गिड़गिड़ाऊं. ये मेरे भाई कोई अस्‍सी साल के हे। कोई सत्‍तर साल के है। ये सर झुकाये बैठे है। ये सब बातें फिजूल की है। वासना दुश्‍पूर्व है। ये उस मटके के समान है जिसमें हजारों छेद हो वह कभी नहीं भर सकता। बस मैने जान लिया तू मुझे ले चल।

फिर भी बाप को होश न आया, बेटे ने जब ऐसी अदभुत बात कहीं। तब भी किसी और भाई को होश न आया, लोग बैठे ही रहे। लोग ऐसा पकड़ते है जिंदगी को।

कहानी बड़ी प्रीतिकर है। बेटे की उम्र बाप को लगी। सौ साल के बाद फिर मौत आई, और बाप फिर गिड़गिड़ाने लगा। और उसने कहा कि अभी तो कुछ भी पूरा नहीं हुआ है। ये सौ साल ऐसे बीत गए कि पता ही नहीं चला। पल में बीत गए। तब तक उसके सौ बेटे और पैदा हो चुके थे। नई-नई शादियाँ की थी, मौत ने कहा, तो फिर किसी बेटे को भेज दो।

और ऐसा चलता रहा। ऐसा कहते है दस बार हुआ। कहानी बड़ी प्रीतिकर है। हजार साल का हो गया बूढ़ा, तब भी मौत आई और मौत ने कहा, अब क्‍या इरादे है।

ययाति हंसने लगा। उसने कहां, अब मैं चलने को तैयार हूं। नहीं कि मेरी इच्‍छाएं पूरी हो गई—इच्‍छाएं वैसी की वैसी अधूरी है—मगर एक बात साफ़ हो गई कि कोई इच्‍छा कभी पूरी हो नहीं सकती। मुझे ले चलो। मैं ऊब गया। यह भिक्षा पात्र भरेगा नहीं। इसमें तलहटी नहीं है। इसमें कुछ भी डालों, यह खाली को खाली रह जाता है।

जीवेषणा शरीर से बंधी हो, इच्‍छाओं से बंधी हो, मन से बंधी हो, तो संसार। और जीवेषणा सबसे मुक्‍त हो जाए—न संसार, न शरीर, न मन—तो एषणा नहीं रह जाती। जीवन ही रह जाता है। शुद्ध जीवन। खालिस जीवन। शुद्ध कुंदन। वही निर्वाण है वही मोक्ष है।

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