(लोक असर समाचार बिलासपुर)
हिन्दी केवल एक भाषा नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति, विचार और भावना की आत्मा है। इसका उद्भव लगभग 1000 ईस्वी के आसपास माना जाता है। साहित्य रचना की दृष्टि से हिन्दी का विकास 1150 ईस्वी के आसपास प्रारम्भ हुआ।
राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने 1917 में गुजरात के भरूच में हिन्दी को राष्ट्रभाषा मानने का विचार प्रस्तुत किया। इसके बाद स्वतंत्रता संग्राम में हिन्दी ने जनता को एक सूत्र में बाँधने का कार्य किया।
14 सितम्बर 1949 को संविधान सभा ने हिन्दी को राजभाषा का दर्जा दिया और 1950 में संविधान के अनुच्छेद 343(1) के अंतर्गत देवनागरी लिपि में हिन्दी को आधिकारिक रूप से राजभाषा घोषित किया गया।
हिन्दी के प्रचार-प्रसार के उद्देश्य से 1953 से प्रत्येक वर्ष 14 सितम्बर को हिन्दी दिवस मनाया जाने लगा।
हिन्दी का वैश्विक प्रभाव
आज हिन्दी केवल भारत तक सीमित नहीं है, बल्कि यह विश्व के अनेक देशों में अध्ययन और संवाद की भाषा बन चुकी है।
शिक्षा और अध्ययन
भारत में ही लगभग 850 महाविद्यालयों में हजारों छात्र हिन्दी विषय का अध्ययन कर रहे हैं।
चीन में हिन्दी
भारत और चीन के सांस्कृतिक सम्बन्ध प्राचीन काल से गहरे रहे हैं। फाह्यान, ह्यूनसांग और इत्सिंग जैसे विद्वानों ने भारतीय संस्कृति को चीन तक पहुँचाया।
चीन के भारत विद्या विभाग (प्रो. ची श्येन द्वारा स्थापित) में हिन्दी और संस्कृत का अध्ययन कराया जाता है।
प्रो. चिनहान ने रामचरितमानस का अनुवाद चीनी भाषा में किया।
इसके अलावा प्रेमचंद का गोदान, श्रीलाल शुक्ल का राग दरबारी, जयशंकर प्रसाद और कृष्ण चंदर की रचनाएँ भी हिन्दी से चीनी भाषा में अनूदित हो चुकी हैं।
कनाडा में हिन्दी
कनाडा में हिन्दी का प्रयोग केवल बोलचाल तक सीमित नहीं है, बल्कि यह शैक्षणिक और साहित्यिक स्तर पर भी फैल चुका है। हिन्दी कक्षाओं, संगोष्ठियों और मंचों के माध्यम से कनाडाई समाज में हिन्दी की लोकप्रियता बढ़ रही है।
हिन्दी का सफ़र केवल एक भाषा का विकास नहीं, बल्कि भारत की संस्कृति, दर्शन और जीवन दृष्टि का प्रसार है। यह हमें अतीत से जोड़ती है और भविष्य की राह दिखाती है।
आज आवश्यकता है कि हम हिन्दी का प्रयोग केवल औपचारिक अवसरों पर न करें, बल्कि इसे अपने जीवन के हर क्षेत्र में गर्व के साथ अपनाएँ।
हिन्दी दिवस हमें यह संकल्प लेने का अवसर देता है कि हिन्दी के सम्मान और प्रसार में हम सभी अपनी
