लोक असर समाचार 09 अगस्त विशेष
विश्व आदिवासी दिवस संसार का सबसे बड़ा महोत्सव हैं। संसार के लगभग 90 देशों के 50 करोड़ आदिवासी समुदायों, कबीलों, समाजों के साथ-साथ संपूर्ण जीव जगत और पर्यावरण संरक्षण का उत्सव है। आदिवासी समुदायों की भाषाएँ बोलियाँ संसार की प्राचीनतम भाषाएं बोलियाँ है और इन्हीं भाषाओं- बोलियों में संसार का सबसे पुराना ज्ञान भण्डार समाहित हैं। भारत में पाँच भाषा परिवार पाये जाते हैं इन सभी भाषा परिवारों में आदिवासी समुदायों की मातृभाषाएँ और बोलियाँ पायी जाती हैं। भारत में लगभग 780 आदिवासी भाषाएं हैं, जो जीवित हैं। इनमें से लगभग 700 आदिवासी भाषाएं नन-शेड्यूल्ड कैटेगरी में भी शामिल नहीं है, जो इन भाषाओं के अस्तित्व के लिए सबसे ज्यादा चिंताजनक है। यूनेस्को की वल्डंग एटलस ऑफ एनडेंजर्ड लैंग्वेइजेज से हमें पता चलता है कि हमारे देश की 197 भाषाएं जल्दी ही खत्म हो जाने वाली हैं। सरकारें आदिवासी भाषाओं को बचाने और संरक्षित करने का कार्य नहीं करती है। अब स्वयं आदिवासी समुदायों को ही अपनी-अपनी मातृभाषाओं- बोलियों की वाचिक परंपराओं को लिखित रूप में सहेजकर इनके अस्तित्व को बचायें रखना होगा, क्योंकि आदिवासी भाषाएं सिर्फ आपसी संपर्क का ही माध्यम नहीं है वरन वे सदियों से चली आई पुरखाओं की ज्ञान परंपरा का अनंत भंडार है। आदिवासी समुदायों को कई नामों से जाना जाता है, एवोरिजनल, इंडीजीनियस, एनिमिस्टय, ट्राइबल, स्वीदेशी प्रथम नागरिक, बाशिन्देत मूलवासी और आदिवासी आदि कई नामों की अलग-अलग व्याख्याओं के साथ जाना जाता है।
विश्व आदिवासी दिवस संसार भर के आदिवासियों की अस्मिता दिवस है
यूएनओ द्वारा इस वर्ष की थीम पारंपरिक ज्ञान के संरक्षण और प्रसारण में स्वदेशी आदिवासी महिलाओं की भूमिका रखी है। 28 वे विश्व आदिवासी दिवस 9 अगस्त, 2022 को अपनी मातृभाषा, बोली, पुरखा संस्कृति, इतिहास, पारंपरिक पहनावा, लोकगीत, संगीत, नृत्य और परंपरागत खान-पान के साथ मनाना चाहिए। संयुक्त राष्ट्र संघ ने 1993 में आदिवासी दिवस की घोषणा की थी और 1994 से इसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मनाया जाने लगा है। विश्व आदिवासी दिवस संसार भर के आदिवासियों की अस्मिता का दिवस है। विश्व के 195 देशों के 90 देशों में आदिवासी समुदाय रहते हैं। जिनकी आबादी लगभग 50 करोड़ से भी अधिक हैं, संसार भर में आदिवासियों के लगभग 5 हजार समाज, समुदाय कबीले है और उनकी 7 हजार मातृभाषा और बोलिया है। सभी आदिवासी समुदाय अपनी भाषा संस्कृति, इतिहास और पर्यावरण के साथ विशेष पहचान रखते हैं।
आदिवासियों की मातृभाषाओं का अस्तित्व संकट से घिर गया है
आधुनिकीकरण, बाजारबाद, चकाचौंध की संस्कृोति प्रभाव अन्य भाषाओं में शिक्षा, रोजगार, संस्कृतिकरण और मातृभाषाओं बोलियों की उपेक्षा की वजह से आज आदिवासियों की मातृभाषाओं का अस्तित्व संकट से घिर गया है इसीलिए आदिम समुदायों की भाषाएं तेजी से विलुप्त और समाप्त हो रही हैं। मातृभाषा या बोली में संबंधित समुदाय के जीवनानुभवों का सदियों पुराना ज्ञान भण्डार समाप्त हो जाता है। यूएनओ संयुक्त राष्ट्र संघ ने अपने ब्लॉग में लिखा है, अनुमान है कि हर सप्ताभ में एक स्वदेशी भाषा गायब जाती है, जो संबंधित स्वदेशी संस्कृतियों और ज्ञान प्रणालियों को खतरे में डालती हैं। इसीलिए संसार भर की आदिवासी भाषाओं बोलियों को बचाने, संरक्षित करने के लिए यूएनओ ने 2022-32 को आदिवासी भाषा दशक वर्ष घोषित किया है। वर्ष 2019 में आदिवासी भाषा वर्ष के रूप में मनाया गया था। 28 ये विश्व आदिवासी दिवस 9 अगस्त, 2022 की थीम-परंपरागत ज्ञान के संरक्षण और प्रसारण में आदिवासी महिलाओं की भूमिका घोषित किया गया है। जो भाषाओं के संरक्षण, संवर्धन और उनकेज्ञान भंडार को सहेजने के लिए बेहद महत्वपूर्ण है।
संसार में सबसे ज्यादा आदिवासी भारत में निवास करते हैं
मौखिक ज्ञान परंपरा की वाहिका किसी महिलाएं ही होती हैं महिलाओं के पास अपने जीवन के सुख-दुख, हास-परिहास, राग-रंग, करूणा, वेदना, प्रेम, विरह, सांस्कृतिक ब्याह शादी, जन्म, मरण, खेत खलिहान, जंगल-पहाड़, नदी, नाले, झरने, रेगिस्तान की भांति हजारों तरह के गीत होते हैं। संसार में सबसे ज्यादा आदिवासी भारत में निवास करते हैं। संसार की सबसे पुरानी पर्वतमाला अरावली, सतपुड़ा विध्यांचल, नर्मदा घाटी, हम्पी बस्तर, उड़ीसा, मेघालय आदि जगहों के प्राचीन शैलचित्रों, शैलाश्रयों, गुफायें, पुरावशेष आदि मानव द्वारा बनाई गई सभ्यता बसावट की जीवत गाथाएं संसार का अमिट सच है।
भारत में सबसे पहले से रहने वाले आदिम लोगों के वंशज आदिवासी ही हैं, जो भारत की 2011 की जनगणना के अनुसार लगभग 11 करोड़ आबादी है जो भारत की कुल जनसंख्या का लगभग 85 प्रतिशत हैं 2021-22 की जनगणना कोविड- 19 की वजह से नहीं हुई। वर्तमान में आदिवासियों की जनसंख्या लगभग 18 करोड़ के आसपास होगी।
संसार भर में पर्यावरण सुरक्षित बचा है, जहां आदिवासी रहते हैं
आदिवासी वे समूह, समुदाय या कबीलें हैं जो प्रकृति और वन्य जीव-जंतुओं के साथ सहजीवन जीते आये हैं। संसार भर में पर्यावरण आज वहीं सुरक्षित बचा है, जहाँ आदिवासी रहते हैं। आदिवासियों का जीवन धरती, जल, जंगल, पहाड़, वन्य जीवों के साथ एवं संपूर्ण मानवता के साथ परस्पदर पूरक और संरक्षित हैं। संसार भर के आदिवासी प्रथम निवासी, प्रथम नागरिक मूलवासी वाशिंद मूलमालिक जीववादी आदिधर्मी प्रकृतिवादी, देशज और सबसे प्राचीन समय से उस देश की धरती. पर निवास करते आये हैं। विश्व के प्राकृतिक स्थल, वन्यजीव अभयारण्य, नैसर्गिक सौंदर्य, प्राकृतिक साधनों के अकूत भंडार आक्सीजन, जल, खाद्यान, खनिज भंडार और बहुमूल्य वस्तीएं जैसे सोना, चांदी, हीरे कोयला, लोहा, अभ्रक, जस्ता, तांबा आदि आदिवासियों के कठोर परिश्रमसंघर्ष बलिदानों और अति महत्वपूर्ण योगदान के कारण बचे हुए है नहीं तो विकसित देशों महानगरों और शहरों के अंधाधुंध विकास ने इन्हें तबाह कर दिया हैं, इसी कारण पर्यावरण चक्र में तेजी से बदलाव हिमशिखरों का तेजी से पिघलना समुद्रों का जलस्तर बढ़ना तापमान का तेजी से बढ़ना, हिमस्ख लन भूस्खलन, भूकम्प, बाढ़, सूखा, आक्सीजन की तेजी से कमी ओजोन क्षरण, ब्लैक हॉल, समुद्री तुफान, तेज हवायें, चक्रवातों से तबाही, नदियों का सूखना, पेयजल और खाद्यानों की कमी, पेड़-पौधे और जीव-जंतुओं की प्रजातियों की विलुप्ती, नई-नई असाध्य बीमारियां आदि भयानक समस्या, संपूर्ण जनजीवन को लील रही है। इन सभी समस्याओं का समाधान आदिवासी जीवनशैली और आदिवासी जीवनदर्शन में निहित हैं।
फिर भी भारत सरकार ने हमेशा आदिवासीयों के अस्मिता की अवहेलना की है
संयुक्त राष्ट्र संघ ने पर्यावरण संकट की गंभीर समस्याओं जैसे आक्सीजन की कमी पर्यावरण प्रदूषण, जलसंकट, खाद्यानों की कमी और प्राकृतिक संसधानों और जीव-जंतुओं की समाप्ति से संसार के सभी देशों पर भयानक संकट स्वीयकारा है। अंधाधुंध विकास गतिमान विकसित और? विकासशील देशों की प्रकृति जीव- जंतुओं और संपूर्ण मानवता के अस्तित्वी पर गंभीर संकट उपस्थित हो गया है। संसार के विकसित देशों की बौद्धिक मानवता प्रकृति का अनुचित विदोहन करके सबको मौत के कगार पर ले आयी है 1994 से 2004 तक प्रथम विश्व आदिवासी दशक के रूप में मनाया गया। 2004 से 2014 तक दूसरा विश्व आदिवासी दशक के रूप में मनाया गया फिर भी भारत सरकार ने हमेशा आदिवासियों के अस्तित्व की अवेहलना की हैं, इसलिए यूएनओं सम्मेलन में कहा गया है कि भारत में आदिवासी नहीं है
संयुक्त राष्ट्र संघ ने 2019 को आदिवासी भाषा वर्ष के रूप में मनाने की घोषणा की है
संयुक्त राष्ट्र संघ ने 2019 को आदिवासी भाषा वर्ष के रूप में मनाने की घोषणा की है, जो 9 अगस्त, 2019 विश्व आदिवासी दिवस की 25 वीं वर्षगाठ अर्थात रजत जयंती महोत्सव रूप में संसार भर में जोर-शोर से मनाया गया महोत्सव हैं 2019 को आदिवासी भाषा वर्ष के रूप में भी मनाया गया है। 2022 से 2032 को अंतराष्ट्रीय आदिवासी भाषा दशक के रूप में घोषित किया गया है, जिससे संसार के आदिवासियों की मातृभाषाओं, बोलियाँ, संस्कृति, इतिहास और विविध ज्ञानोपयोगी सामग्री को लिखित रूप में संरक्षित और सुरक्षित किया जा सके। यूएनओद्वारा इसकी बीम पारंपारिक ज्ञान के संरक्षण और प्रसारण में स्वदेशी आदिवासी महिलाओं की भूमिका रखी है। 28 वे विश्व आदिवासी दिवस 9 अगस्त, 2022 को अपनी मातृभाषा, बोली, पुरखा संस्कृति, इतिहास, पापरिक पहनावा, लोकगीत, संगीत, नृत्या और परंपरागत खान-पान के साथ हर्षोल्लास से सभी जगह मनाना चाहिए। केंद्र सरकार 9 अगस्त विश्व आदिवासी दिवस को राष्ट्रीय अवकाश घोषित करे।
लेखिका/डॉ. हीरा मीणा,(पूर्व सहायक प्रोफेसर, दिल्ली विश्वविद्यालय) की क़लम से (साभार गोंडवाना समय)।