आदिवासी न कल हारा है, न आज हारेगा, ना कभी कोई हरा पाएगा… लेकिन खतरा बढ़ गया है, विकास के नाम पर… ये किसने कहा?

लोक असर समाचार बालोद

जिला स्तरीय विश्व आदिवासी दिवस विकासखंड डौंडीलोहारा के ग्राम तुएगोंदी में मनाया गया। अनवरत बारिश होने के बाद भी गजब का उत्साह आदिवासियों में देखने को मिला। वैसे यह बताना लाजिमी होगा कि तुएगोंदी में विश्व आदिवासी दिवस क्यों मनाया गया। जिसका उल्लेख पाम्पलेट में कुछ ऐसा है, विदित है कि, जामड़ीपाट तुएगोंदी का पारंपरिक सीमा क्षेत्र है। जहां पर 1 मई 2022 को तुएगोंदी एवं आसपास के ग्रामीण जीवा सेवा देकर सामाजिक चर्चा कर रहे थे, तभी कथिततौर पर बालकदास द्वारा बुलाए गए 70-80 गुंडों द्वारा तलवार, राड, पत्थर व डंडे आदि से ग्रामीणों पर हमला करवाया गया, जिससे कई लोगों को चोटें आई। उक्त घटना में अभी तक 17 लोगों को गिरफ्तार कर जमानत पर छोड़ दिया गया, जबकि उन पर 120 बी, 307 (3),(2),(4) जैसी गंभीर धाराएं लगी है। आदिवासी परंपरा एवं सभ्यता पर हमला करने करवाने वाले मुख्य आरोपी बालकदास को अभी तक गिरफ्तार नहीं किया गया है, जिसके विरोध स्वरूप सर्व आदिवासी समाज जिला बालोद द्वारा तुएगोंदी में विश्व आदिवासी दिवस मनाने का फैसला करते हुए नियत तिथि में समारोह का आयोजन किया गया।


इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविंद नेताम, वही मुख्य वक्ता थे दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डॉ लक्ष्मण यादव। अन्य अतिथियों में जनक लाल ठाकुर (अध्यक्ष छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा), बी एस रावटे (अध्यक्ष सर्व आदिवासी समाज प्रदेश कार्यकारिणी), विनोद नागवंशी (प्रदेश मीडिया प्रभारी) यु आर गंगराले (अध्यक्ष सर्व आदिवासी समाज जिला बालोद)।


सामाजिक एवं अन्य समाज के उपस्थित जनों में रेवा राम रावटे (उपाध्यक्ष जिला बालोद), शशि भूषण चंद्राकर (जिला संयोजक छत्तीसगढ़ क्रांति सेना जिला बालोद), जीत गुहा नियोगी (प्रदेश अध्यक्ष जन मुक्ति मोर्चा),आदिवासी छात्र संगठन, गोंडवाना स्टूडेंट यूनियन जिला बालोद, गोंडवाना यूथ क्लब डौंडीलोहारा बालोद के साथ जिला के पदाधिकारी प्रेमलाल कुंजाम (जिला प्रवक्ता), तुकाराम कोर्राम (अध्यक्ष ब्लॉक डौंडीलोहारा),सोहन हिडको, तुकाराम कोर्राम, देवलाल भुआर्य, श्याम सिंह नेताम, रविन्द्र नेताम, नीलिमा श्याम सहित कई वरिष्ठ सामाजिक नेता उपस्थित रहे।

जंगल के मध्य में स्थित ग्राम तुएगोंदी में कई किलोमीटर तक मूसलाधार बारिश में भीगते हुए पैदल चलकर हजारों की संख्या में आदिवासी जिला स्तरीय विश्व आदिवासी दिवस कार्यक्रम में पहुंचे। 

मुख्य वक्ता के रूप में डॉ लक्ष्मण यादव आदिवासियों से आह्वान करते हुए अपने उद्बोधन में आदिवासी नायक जयपाल सिंह मुंडा की कहानी से अपनी बात शुरू करते हुए कहा कि संविधान सभा में जयपाल मुंडा का भी योगदान है। उन्होंने संविधान सभा में कहा था हम सिंधु घाटी सभ्यता के वारिस हैं हमें लोकतंत्र मत सिखाइए, आपको लोकतंत्र हमसे सीखने की जरूरत है।


डॉ लक्ष्मण यादव ने अपना उद्बोधन जारी रखते हुए कहा कि नया भारत कैसा बनेगा इस किताब का नाम है संविधान। क्या आप जानते हैं संविधान को? क्या आपको पता है संविधान से हमें अधिकार मिला है कि कोई भी आप के ग्रामसभा की अनुमति के बिना आप की जमीन नहीं ले सकेगा। इसके अतिरिक्त पेशा कानून, वन अधिकार कानून यह सब संविधान से प्राप्त होती है। मैं दिल्ली से आता हूं वहां बड़ी-बड़ी इमारतों में, एसी में बैठकर लोग आप के हक का सौदा करते हैं। आप अपने अधिकारों के प्रति सचेत नहीं रहेंगे, अपनी लड़ाई नहीं लड़ेंगे तो जल जंगल जमीन को बेच देंगे। ऐसे में हमें किसी धर्म से नहीं लड़ना है बल्कि अपने हक के लिए लड़ना है। वो धूर्त और चालाक लोग हैं, जो हमारे खिलाफ हमारे ही लोगों को सामने कर देते हैं। धर्म के नाम पर इसलिए लड़ाए जा रहा है ताकि जल जमीन जंगल पर कब्जा कर सके। ऐसे लोगों से सावधान रहना होगा। यदि लड़ना ही है तो रोटी, कपड़ा, मकान के लिए लड़ो, शिक्षा और अस्पताल के लिए लड़ो, अपने हक़ के लिए लड़ो। यहां छत्तीसगढ़ की सरकार राम वनगमन पथ बनवा रही है, तो एक रास्ता आदिवासियों का पद गमन का भी बनवा दे। देश में आजादी का अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है और वनांचलों में बुनियादी सुविधाएं गायब है। आदिवासियों को सरकार उनका हक दे दे तो हर पेड़ पर झंडा फहराएगा। उन्होंने विशाल जनसमूह को आह्वान किया कि अपना नेता किसी को मत होने दीजिए क्योंकि आदिवासी को कोई हरा पाया है क्या? जिनके नायकों ने अंग्रेजों के सामने नहीं झुका। आदिवासी न कल हारा है, न आज हारेगा, ना कभी कोई हरा पाएगा। लेकिन खतरा बढ़ गया है, विकास के नाम पर जल जंगल जमीन छीनी जा रही है। आदिवासी को आदिवासी से लड़ाया जा रहा है धर्म के नाम पर, बाहरी लोग बता रहे हैं तुम हिंदू हो तुम्हारे देवी देवता यह है, तुम्हें ऐसी पूजा करना है। तो मैं पूछना चाहता हूं आदिवासियों के रीति रिवाज कौन तय करेगा? आदिवासी। आदिवासी किसकी पूजा करेंगे कौन तय करेगा? आदिवासी। अपने हक अधिकार की लड़ाई कौन लड़ेगा? आदिवासी, तो यह बाहरी लोग आदिवासियों को बताएंगे उन्हें क्या करना है क्या नहीं करना है, जबकि आदिवासी संथाली भाषा में प्रकृति की पूजा करते हैं, प्रकृति ही आदिवासियों के देवी देवता है।

डॉ. लक्ष्मण यादव अपने ट्वीट में लिखते हैं जंगल में कई किलोमीटर तक मूसलाधार बारिश में भीगते भागते पैदल चलकर हजारों आदिवासी विश्व आदिवासी दिवस का समारोह मनाने पहुंचते हैं, यह किसी नेता के लिए नहीं, किसी धर्म के लिए नहीं बल्कि अपनी आदिवासीयत की पहचान को बचाने के लिए पहुंचते हैं।विश्वआदिवासीदिवस2022 के मौक़े पर छत्तीसगढ़ के सुदूर घने जंगलों के बीच बरसते हुए अनवरत जल में भींगते हुए ज़मीन के मालिक़ाना हक़ की आवाज़ बुलंद करते आदिवासियों से हिम्मत लेकर लौटा हूँ. सूखे महुए का हार, पीली पगड़ी, पीले चावल का तिलक और जोहार का उलगुलान साथ लाया हूँ. ज़िंदाबाद।

कार्यक्रम को आदिवासी समाज के वरिष्ठ कार्यकर्ताओं ने भी सम्बोधित किया। इस अवसर पर समाज के लोगों ने अपने परम्परागत अस्र -शस्र, तीर कमान, फरसा एवं वेशभूषा से सुसज्जित होकर अपनी आदिम संस्कृति से आबद्ध विभिन्न विशिष्ट शैली में नृत्य प्रस्तुत करते हुए यू आर गंगराले के नेतृत्व में आंगादेव के साथ जामडीपाट पहुंच कर पूजा अर्चना कर वापस तुएगोंदी आए जहां पर मंचीय कार्यक्रम था। किसी अप्रिय अनहोनी घटना के मद्देनजर बड़ी संख्या में पुलिस बल तैनात की गई थी।

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