राष्ट्रीय आदिवासी सम्मेलन में धनकुल लोक गीत बारदा की मनमोहक प्रस्तुति रायपुर में
लोक असर बालोद/पखांजूर
राष्ट्रीय आदिवासी सम्मेलन में धनकुल लोक गीत की मनमोहक प्रस्तुति राष्ट्रीय आदिवासी सम्मेलन रायपुर में आयोजित किया जा रहा है। इस अवसर पर देश के सभी राज्यों से बड़ी संख्या में लोग उपस्थित रहे। अलग अलग राज्य के लोक संस्कृति की शानदार प्रस्तुति दी गई। शिवकुमार पात्र अध्यक्ष एवं हीरालाल मांझी महासचिव अखिल भारतीय आदिवासी हल्बा समाज 18 गढ़ महासभा के नेतृत्व में ग्राम बारदा के धनकुल लोक गीत की मनमोहक प्रस्तुति दी गई।
धनकुल लोक गीत की प्रस्तुति में ममता कश्यप, जमूना देहारी, कृष्ण देहारी, जमिता देहारी, विनीता बघेल, बिमला समरथ, रेवती राना, सविता कश्यप, दूकराबाई समरथ, अनिल कश्यप, तिलक समरथ के द्वारा मनमोहक प्रस्तुति दी गई।
धनकुल लोक गीत अलिखित महाकाव्य है कृष्णपाल राणा
अखिल भारतीय आदिवासी हल्बा समाज 18 गढ़ महासभा युवा प्रकोष्ठ के अध्यक्ष कृष्णपाल राणा ने अवगत कराया कि धनकुल लोक गीत अलिखित महाकाव्य है। अंग्रेजों ने भी अलिखित महाकाव्य कहा है। धनकुल वाद्य के माध्यम से लोक जीवन के बीच समय समय पर कहानी, कथा, लोक गीत को प्रस्तुत किया जाता है।
धनकुल वाद्य यंत्र तैयार की जाने सामग्री
हल्बा जनजाति के महिलाओं के द्वारा अपने घर के आस-पास में उपलब्ध सामग्री जैसे हंडी, सुपा, धनुष और बास की खपची जो कि गृहस्थ जीवन की आवश्यकता सामग्री है, इन्हीं पदार्थों के सामंजस्य से धनुकुल वाद्य रचना साकार होती है। हंडी को धरती पर एक गुंडरी के ऊपर रखते हैं। ताकि वह इधर-उधर ना हिल सके। फिर हल्दी के ऊपर सुपा को रखते हैं। सुपा का बंद और सकरा भाग ऊपर रहता है। सूपा के ऊपर धनुष की कमान का अगला हिस्सा टिका रहता है प्रत्यंचा नीचे रहती है कमान के दाहिना भाग के निश्चित स्थान पर कंगूरेदार कटाव कर दिया गया होता है। बांस की एक खपची के एक सिरे पर चिरा दिया गया रहता है। इस खपची को छीरनीकाड़ी कहा जाता है। इतने में धनकुल वाद्य यंत्र तैयार होता है।
इस वाद्य यंत्र को दो गुरु माय मिलकर गाते हैं, जिसे पहली गायिका पाठ गुरु माय और दूसरी गायिका चेली गुरु मां कहलाती है। धनकुल बजाते समय गुरु मां के दोनों हाथ मुंह निरंतर सक्रिय रहता है। इसके दाहिने हाथ में छिरनीकाड़ी होती है। जिससे वह धनुष की कमान के कंगूरेदार कटाव भाव पर बार-बार झटके के साथ रगड़ती रहती है, जिससे आसपास मधुर स्वर निकलने लगती है और धमक धमक आवाज गूंजती है। गुरु मां के साथ और कुछ महिलाओं के द्वारा धनकुल लोकगीत पर सहयोग किया जाता है और साथ ही नृत्य करने के लिए पुरुष वर्ग, युवा वर्ग भी सहयोगी होते हैं।
अंचल में यह लोकगीत तीजा पर्व पर 3 से 11 दिन तक लगातार चलती है, जिसे तीजा जगार कहा जाता है।
राष्ट्रीय आदिवासी सम्मेलन में धनकुल की शानदार प्रस्तुति पर हेमंत वैद्य, दामेसाय बघेल, इंद्रप्रसाद बघेल, नारायण नरवास, भागेश्वर पात्र, लक्ष्मण खुड़श्याम, खगेन्द्र नरवास, करन नरवास, अरूण कुमार बघेल, शशिलाल नाग, सिवन बघेल, शोभाराम बघेल, झमन राना, जोहनलाल नाग आदि ने शुभकामनाएं दी।