शहीद नारायण सिंह शहादत दिवस पर विशेष….

छ.ग. के प्रथम शहीद वीरनारायण सिंह ‘‘सोनाखान’’ ने छुड़ाये थे अंग्रेजों के छक्के

शहीद वीरनारायण सिंह को सबके सामने भरी चौराहे जय स्तम्भ चौक रायपुर में तोप से उड़ाया था 10 दिसम्बर 1856 को अंग्रेजों ने

LOK ASAR SAMACHAR BALOD

छत्तीसगढ़ के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बलौदाबाजार जिला में सोनाखान रियासत के जमींदार शहीद वीरनारायण सिंह सन् 1856 में अंग्रेजो के खिलाफ जनता,जल,जंगल,जमीन की सुरक्षा हेतु क्रांन्ति का बिगुल फुक दिये। आज से 166 साल पहले सोनाखान रियासत में घोर अकाल पड़ गया। वहां की प्रजा दाने-दाने को मोहताज हो गई। शहीद वीरनारायण सिंह अपने रियासत में जमा सभी गोदामों से अनाज को निकलवाकर आम जनता में बांट दिये। इसके बावजुद वहां अनाज की कमी से लोग भुख से बेहाल हो गए । भीषण अकाल में माताओं के स्तन से दुध सुखने लगे ।
शहीद वीरनारायण सिंह जी जनता की यह दुर्दशा देखकर अत्यन्त दुखी हो गए। उन्होने आदेश दिया की जिन-जिन लोगो के पास अनाज जमा करके रखे हैं वे जरूरतमंद जनता में उधार स्वरूप दे दिजिए और जब नया फसल आएगा तो ब्याज सहित उसे वापस कर दिया जावेगा। सभी ने शहीद वीरनारायण सिंह के आदेश का पालन करते हुये जिनसे जितना बन पड़ा वहां की जनता की मद्द किये। लेकिन इतने अनाज से भी कुछ नही हुआ। उस समय कसडोल में अंग्रेज का पिट्ठु एक बड़ा व्यापारी जो मुनाफा कमाने के लिये सबसे ज्यादा अनाज जमा करके रखा था उन्होने अनाज देने से साफ इंकार कर दिया। शहीद वीरनारायण सिंह जी को जब पता चला कि इस व्यापारी के पास भारी तादाद में अनाज है तो उन्होने प्रजा के भुख मिटाने के लिये उनसे निवेदन करने गया और कहा कि आप इस अनाज को हमारी जनता को दे दिजिए जब भी नया फसल आयेगा उसे आप को ब्याज सहित वापस कर देंगे। व्यापारी ने अनाज देने से स्पष्ट इंकार कर दिया। बार-बार निवेदन का भी कोई असर उस व्यापारी पर नही पड़ा और इधर भुख से जनता त्राहि-त्राहि होने लगे तो मजबुर होकर जनता की जान बचाने के लिये उस व्यापारी के अनाज को प्रजा में बांट दिए ।
व्यापारी इसकी शिकायत रायपुर में अंग्रेजो को भेज दिया । अंग्रेज पहले से ही नाराज तो थे ही क्योंकि लगातार अंग्रेजों के खिलाफ शहीद वीरनारायण सिंह छापेमार शैली में स्वतंत्रता संग्राम का बिगुल फुकते रहते थे। इस घटना के बाद आर-पार की लड़ाई शुरू हो गई। लगातार सोनाखान क्षेत्र में अंग्रेज कई आक्रमण किये लेकिन हरेक आाक्रमण का शहीद वीरनारायण सिंह मुंहतोड़ जवाब देते रहे। शहीद वीरनारायण सिंह को हराना असंभव ही था। क्योंकि उनके साथ उनकी जनता और मुट्ठी भर उनके सैनिक जी-जान से उनका साथ दे रहे थे। अंग्रेजों को छ.ग. से अपना जमीन खिसकता दिख रहा था और जनता में स्वतंत्रता की आस दिख रहा था। अंग्रजों ने बाजी हाथ से निकलता देख कुटनीति का सहारा लिये और शहीद वीरनारायण सिंह के चचेरे भाई को प्रलोभन देकर अपने जाल में फंसा लिया। अंग्रेजों द्वारा सोनाखान क्षेत्र की जनता को भयंकर प्रताड़ना दिया जाने लगा। वहां के घरों में आग लगा दिया गया। परिणाम यह हुआ की सोनाखान के पहाड़ में चोरी-छिपे जाकर अंग्रेजो ने भीषण संघर्ष के बाद शहीद वीरनारायण सिंह को गिरफ्तार कर लिये और उन्हे सेन्ट्रल जेल रायपुर में लाकर बन्द कर दिये। अंग्रेजो के लिये यह बहुत बड़ी कामयाबी थी। शहीद वीरनारायण सिंह को सबके सामने आजादी के शौर्य के प्रतीक भरी चौराहे जय स्तम्भ चौक रायपुर में 10 दिसम्बर 1856 को तोप से उड़ाकर उनके अंग-भंग शरीर को चौक में लटका दिये और 19 दिसम्बर 1856 को उसे उतारकर उनके परिजनों को सौंपा गया। रायपुर के भरे चौराहे में 10 दिनों तक उसे सिर्फ इसलिये लटकाकर रखा गया ताकि कोई और देशभक्त इस तरह अंग्रेजों के खिलाफ सर ऊंचा न कर सके लेकिन उसका परिणाम यह हुआ कि इसे देखकर देश की जनता अंग्रेजों के प्रति आक्रेाश और उग्र हो गये और भारतीयों में आजादी की ललक और अधिक बलवती हुई और पुरे भारत में अंग्रेजों के खिलाफ क्रान्ति की शुरूआत हुई और लगभग 100 साल बाद 1947 में भारत को इन्ही देशभक्तों के बलिदान के बदौलत आजादी मिली।
आज 10 दिसम्बर को छत्तीसगढ़ के महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी शहीद वीरनारायण सिंह जी को शत-शत नमन,विनम्र श्रध्दान्जलि…………………. .
आर.एन.ध्रुव

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *