सरपंच एवं ग्रामीणों की दबंगई से दलित परिवार बेघर, शासन-प्रशासन की जांच और न्याय बाकी

सूरडोंगर से लौटकर उत्तम कुमार की जमीनी रिपोर्ट टीम

जातिवाद सिर्फ सवर्ण ही नहीं करते हैं। यह विष सवर्णो के साथ आदिवासियों और पिछड़ों के बीच अपना पांव पसार चुका है। जातिवादी मानसिकता के लोगों ने छत्तीसगढ़ के बालोद जिले में शर्मसार करने वाली एक घटना में सरपंच एवं ग्रामीणों ने मिलकर दलित परिवार के साथ लींचिंग की सूरत में मारपीट कर एक परिवार को उनके ही घर से बेघर कर दिया अगर वह अपने और परिवार का जान बचाकर डौंडी थाना नहीं पहुंचता तो उसका और परिवार का जान भी गांव की भीड़ ले लेती। पूरा गांव इस अपराध को अंजाम देने के लिए पीडि़त गणेश राम बघेल के घर को जेसीबी चलवा कर तोड़ दिया। ग्रामीणों की जातिवादी घृणा पीडि़तों के सिर से छत छिनकर यहीं नहीं रूकता है बल्कि उसका हुक्का पानी बंद करवा दिया जाता है। घटना डौंडी ब्लाक के सूरडोंगर ग्राम का है जहां पीडि़त गणेराम (40 वर्ष), पत्नी रूखमणी (38 वर्षीय) एवं तीन बच्चों के साथ 2005 से उस गांव में रह रहे हैं जो मेहनत से रोजी मजदूरी कर अपने परिवार का जीवनयापन कर रहे थे। 

गणेशराम कहते हैं कि पूरा मामला जातिगत मामला है। मोची जाति से ताल्लुकात रखने के कारण जातीय वैमनस्यता के आधार पर उनके घर को उजाड़ दिया गया। इस गांव में 70 प्रतिशत आबादी आदिवासियों की है शेष 30 प्रतिशत पिछड़े वर्ग से हैं। गणेश कहते हैं कि उन्हें तथा पूरे परिवार को जातिगत गालियां दी गई।

राहत कार्य में गोदी के कार्य में भी जाति के आधार पर काम दिया जाता है। वह घास जमीन में पिछले आठ साल से निवासरत हैं। इस तरह वह इस गांव में 20 सालों से अर्थात  2005 से निवासरत हैं, वह मूलत: राजिम गरियाबंद का निवासी है।

वे कहते हैं कि -‘पूरा गांव वाले मेरे से अलग हैं कोई भी मेरे समर्थन में गवाही नहीं देगा। सरपंच के कहने पर सब आये थे। इससे पूर्व सरपंच से जगह की मांग की थी। प्रधानमंत्री आवास में पात्र होने के बाद भी घर बनाने नहीं दिया गया है।’

गांव में जाति व्यवस्था पर कहते हैं कि अन्य ग्रामीण उनके द्वारा बोरिंग में पानी भरने के बाद शुद्धिकरण करते हैं, उसके बाद ग्रामीण पानी को पीने में उपयोग करते हैं। तीन पीढिय़ों से यह परिवार यहां निवासरत हैं।

टूटे घर की लागत पर पूछने से गणेश राम कहते हैं कि क्या बताएं पूरा घर खून पसीना से बना है जिसमें पत्नि और बच्चों ने भी हाथ बटाया है। यह घटना 10 जनवरी गांधी जी के पुण्यतिथि के दिन अंजाम दिया गया है। जिस व्यक्ति ने पूरे दुनिया में अहिंसा का संदेश दिया उसके पुण्यतिथि के दिन संरपंच, ग्राम पंचायत और तमाम ग्रामीणों ने इस कुकृत्य को अंजाम दिया है। पुलिस रिपोर्ट के लिये भी दबाव बनाया गया है। आज दिनांक तक बयान दर्ज कराने के बात कोई एक्शन नहीं लिया गया। सरपंच भी अपने हाथ में डंडा उठाया हुआ था।

वह बताता है कि 29 जनवरी को सूचना दिये और 30 जनवरी के दिन घर को तोड़ दियें। सामान भी नहीं निकालने दिया। विनती करने के बाद भी पूरा का पूरा दो कमरों का घर जमींदोष कर दिया गया। कहीं दूर दूसरे जगह घर बना लेने की विनती को भी ग्रामीणों ने नहीं मानी।

शासन की सुस्त कार्रवाई

घटना के 8 – 9 दिन के बाद पुलिस और तहसील मौका मुआयने करने आये। जब गणेराम ने घटना के दिन अपने सहयोग के लिये 102 में फोन किया तो उन्हें जवाब दिया गया कि -‘तुम अपना प्राण बचाकर थाने आ जाओ।’ इस घटना में बीच बचाव करने आये ससुर दसरू राम बारेका के साथ भी मारपीट किया गया है। सिर और शरीर में लगे चोट का मुलायजा करवाया। थाना में कम्प्यूटर से निकाले गये पेपर में साइन किया। 

पुलिस अब लगातार कह रहे हैं कि -‘घर बनवा देंगे पानी दे देंगे। जितनी जल्दी से जल्द ये सब पंचायत से बोलेंगे। पुलिस ने कहा है कि ‘तुम्हारा पीएमवाई आवास वाला भी करवा देंगे।’ गणेशराम कहते हैं कि -‘तब तक क्या खुले आसमान के नीचे बैठूं।’ मुझे इंसाफ चाहिए! जो गुनाहगार हैं उन्हें सजा मिले।’ उन्होंने बताया कि सरपंच कोमेश कुमार कोर्राम, ग्राम विकास समिति के सुखचैन ठाकुर, कमलू ठाकुर, अजहर, नकुल, घासी, लखन गोंड मुख्य आरोपी हैं। वह आगे कहते हैं कि ये आरोपी गांव के हैं या बाहर के सरपंच को बताना चाहिए?

गणेशराम ने एफआईआर की प्रति दिखाई जिसमें देवधर साहू, नहल विश्वकर्मा, संतु लोहार, शिव मरकाम, आनंदीबाई मरकाम, गंगाबाई साहू का नाम आरोपी के रूप में दर्ज हैं। ज्ञान और अज्ञात आरोपियों के खिलाफ भा.द.सं. की धारा 147, 148, 294, 506, 323, 427 के तहत अपराध पंजीबद्ध किया गया है लेकिन अब तक 20 दिनों के बाद भी जांच जारी है और आरोपी खुलेआम घूम रहे हैं। 

पीडि़त कहते हैं कि इस जंगल में मेरे साथ कुछ भी हादसा हो सकता है। सिर्फ चटाई बिछाकर सोते हैं। खानापूर्ति के लिये एक दिन के लिये चावल नमक भेज दिया गया। सिर में छत के बाद उनका बिजली का कनेक्शन काट दिया और पानी देने के लिये मना किया जाता है। बताया गया कि गांव की आबदी 2000 के आसपास है। उनके ससुर ने कहा कि सरपंच द्वारा -‘जो नहीं तोडऩे जाएगा उनसे 500 रुपये का दंड वसूलने का फरमान जारी किया गया था।’

पीडि़त की पत्नी रूखमणि कहती है कि मम्मी पापा लोग खाना पीना दे देते हैं। राशन कार्ड है 50 किलो राशन मिलता है। वह कहती है कि न्याय चाहिए। जब पूछा कि कहां से न्याय लाओगे, तो -‘कुछ नहीं बता पाई।’ इसके अलावा पंचम साहू के मकान को भी तोड़ा गया। वह कहता है कि ये सब व्यक्तिगत दुश्मनी के कारण तोड़ा गया है।

सरपंच ने गांव वालों को भडक़ा कर इस तोडफ़ोड़ को अंजाम दिया है। बताया गया कि जाति का रंग न ले ले इसलिए पंचम का मकान तोड़ा गया है। हमने जांच में पाया कि इसके अलावा भी भरत नेताम का 50 डिसमिल जमीन, मिलिंद मरकाम का 30 डिसमिल जमीन कब्जे पर कोई कार्रवाई नहीं हुई है। 

जब हमने ग्रामीणों से इस पर बातचीत की तो सभी ने इस टूटे हुवे मकान को अवैध निर्माण बताया। कइयों ने हमें पीडि़त का हमदर्द बताया और पत्रकार नहीं है बोलकर लोगों को भडक़ाने की कोशिश की गई। जब हम ग्रामीणों से बात कर रहे थे उस दौरान नहल भगवान विश्वकर्मा नशे में धुत्त था और हमारे कामकाज में दखल दे रहा था। मोहन लाल साहू, लखन मरकाम, उमेश कोर्राम, प्रितम मंडावी जैसे 50 ग्रामीणों ने घटना पर अपनी प्रतिक्रिया में कहा है कि वह अवैध रूप से निवास कर रहा था उसे उसके ससुर के जमीन पर हक मांगना चाहिए था ना कि गांव की जमीन पर।

पूरा घटनाक्रम में गांव एक तरफ और गणेशराम अकेला

घटना के अनुसार 30 जनवरी को सरपंच तथा समस्त पंचों के साथ साथ ग्रामवासी लाठी-डंडों के साथ गणेशराम बघेल के घर पहुंच गए और पूरे परिवार को घसीट कर घर के बाहर खींच कर निकाला तथा उनके ऊपर लात घूंसे और लाठी डंडों से ताबड़तोड़ हमला कर कहने लगे -‘तुम मोची लोग इस गांव को छोडक़र चले जाओं इस गांव में तुम लोगों के लिए कोई जगह नहीं है और तुम्हें इस गांव में रहने नहीं देंगे। ’ इस पर गणेश बघेल ने बताया कि मैं और मेरा पूरा परिवार कई सालों से इस गांव में रहते हैं तथा किसी को कोई परेशानी नहीं थी।

मैं कई बार गांव की पंचायत में जमीन एवं आवास के लिए आवेदन दे चुका था लेकिन मुझे न ही जमीन मिली न ही आवास की कोई सुंविधा और मेरे पास रहने के लिए कोई उचित जगह भी नहीं थी। मेरे नाम से राशन कार्ड, आधार कार्ड, मतदाता कार्ड भी बना हुआ है जो उन्होंने हमें सबूत के तौर पर दिखाया।

पीडि़त कहता है कि आर्थिक तंगी की वजह से पिछले कई सालों से मैं आवासहीन हूं। इस वजह से मैंने गांव से लगभग 1 किलोमीटर दूर श्मशान घाट के पास दो कमरों की झुग्गी झोपड़ी बना कर निवासरत था लेकिन यह बात गांव के सरपंच को रास नहीं आई। 30 तारीख को अचानक सरपंच गांव वालों को भडक़ा कर आ गए और घर को तोडऩे दिया। 

घर के सामानों को आग के हवाले कर दिया

सरपंच, उपसरपंच एवं पंचगण और गांव वालों ने एक साथ मिलकर गांव के बाहर रह रहे पीडि़त व्यक्ति के पूरे घर को तोड़ दिया और घर में रखे सभी सामानों को घर के बाहर निकाल कर आग के हवाले कर दिया। जिसमें बच्चों की कॉपियां पुस्तकें और घर के सदस्यों के पूरे कपड़ा को भी जला दिया गया तथा घर में रखे खाने पीने का सामान और अन्य सभी सामानों को बाहर निकाल कर फेंक दिया।

पीडि़त के बच्चों का स्कूल में उड़ाया जाता है मजाक

गांव के बाहर श्मशान घाट के पास पेड़ के नीचे अब पूरा परिवार अपने टूटे मकान के पास खुले आसमान में सोने को मजबूर है। जहां इतनी ठंड में उनके पास पहनने को कपड़े भी नहीं है और बिछाने को चादर तक नहीं है। इस मामले में सबसे दुखद पहलू यह है कि स्कूल में पढऩे वाले छोटे बच्चों को भी मानसिक रूप से प्रताडऩा झेलनी पड़ रही है। बच्चों ने अपने मां को बताया कि स्कूल में दूसरे बच्चे उन पर हंसते हैं। 

बघेल ने बताया कि अपने छोटे मोटे कामों से कमाए हुए पैसे को घर में जमा करके रखता था जिसमें लगभग 30 हजार रुपये नगद और उनकी पत्नी की पायल, मंगलसूत्र जैसे कीमती सामान भी घर से चोरी हो गये हैं। यह 30 जनवरी का मामला है लेकिन अभी तक कोई ठोस कार्यवाही नहीं हुई है और न्याय कोसों दूर खड़ा तमाशा देख रहा है।

बहरहाल छत्तीसगढ़ शासन व सत्तारूढ राजनैतिक दल की स्पष्ट मंशा है कि अंतिम व्यक्ति को न्याय और उनका कल्याण करना है, परन्तु इस राजनीतिक दल के कार्यकर्ता एवं क्षेत्र के शासन में बैठे लोगों की मंशा इसके विपरीत है। 

महात्मा गांधी की पुण्यतिथि के दिन इस घृणित घटना को अंजाम दिया गया, जिन्होंने अनुसूचित जाति की सेवा को ईश्वर की सेवा बताया उसी राजनैतिक दल के झण्डाबरदार तथा स्थानीय शासन के जन प्रतिनिधि ग्राम पंचायत सूरडोंगर वि.ख. डौण्डी के उकसावे में आकर एक अनुसूचित जाति तथा एक अन्य पिछड़े वर्ग के घर को जेसीबी मशीन से ढहाने के कृत्य पर मौन साधे बैठे हैं।

शासन प्रशासन की मौन सहमति इस कृत्य को उचित ठहराते नहीं थक रहे हैं। आज दिनांक तक शासन का कोई भी जनप्रतिनिधि और प्रशासन का कोई भी उच्च पदाधिकारी घटना स्थल का समुचित ईमानदारी से मौका निरिक्षण कर वास्तविकता का आकलन करने की जहमत नहीं उठायी है। 

इस मामले में सुरडोंगर के सरपंच कोमेश कुमार कोर्राम से फोन पर ‘दक्षिण कोसल/द कोरस’ ने बातचीत की है -‘उन्होंने बताया कि ‘वह बेजा कब्जा को हटाने का मामला था। उसमें तहसील द्वारा न्यायालय का आदेश था। पंचायत में फोटोकापी है। उसको जातिगत मामला बनाया जा रहा है।’

उन्होंने बताया कि -‘2019 से मामला चला आ रहा था। जब – जब पीडि़त को नोटिस देते, वह घर बनाते जाता था। कोर्राम का कहना है कि वह श्मशानघाट का जमीन है श्मशानघाट के लिये जगह प्रस्तावित है।’

कोर्राम कहते हैं कि -‘पीडि़त वहां का दामाद है उनका हक ससुर के जमीन पर बनता है। गांव ने पीडि़त का राशन और जॉब कार्ड बनाया अब जमीन का व्यवस्था गांव और पंचायत कैसे करेगा? उनको नोटिस देने के बाद नहीं हट रहा था। वह आठ साल से निवास नहीं कर रहा है वह ससुर के पास था।’ 

मामले में बालोद एसपी सदानंद कुमार ने कहा कि -‘हमने एफआईआर किया है और कुछ प्रक्रिया प्रार्थी की तरफ से बाकी है।’ क्षेत्र की विधायक अनिला भेडिय़ा कहती है कि -‘बिल्कुल अवैध रूप से रह रहे थे। कोर्ट ने आदेश दे दिया था। वह गांव में जाकर चिढ़ाता था कि कोर्ट ने कुछ नहीं किया तुम लोग क्या बिगाड़ोगे? गांव वाले घर तोड़ दिये। गांव के लोगों ने कानून को अपने हाथ में ले लिये।’

भेडिय़ा कहती है कि -‘प्रशासन के संज्ञान में आ गया है प्रशासन मामले को देखेगी। कार्यवाही क्या… वही औरतों को पहले मारा है। जांच के बाद कार्रवाई होगी। राहत कार्य क्या… वह तो मनरेगा में जाते ही हैं। जांच के बाद रहने खाने की व्यवस्था की जाएगी। जानकारी ले रहे हैं यह जांच का विषय है…. करेंगे…।’ 

क्या होना चाहिए जांच के बिंदु

हमें जांच करना चाहिए कि प्रभावित व प्रताडि़त परिवार उस ग्राम में कब से निवास कर रहे हैं, प्रभावित व प्रताडि़त परिवार कब से घास जमीन का अतिक्रमण कर मकान बनाया है, प्रभावित व प्रताडि़त परिवार को शासन के द्वारा प्रदत्त सुविधायें जैसे जॉब कार्ड, राशन कार्ड एवं अन्य क्या बनाया गया है, अतिक्रमण स्थल गांव से कितनी दूरी पर है, क्या अतिक्रमण स्थल के आसपास स्कूल, गौठान औषधालय, शासकीय या सार्वजनिक भवन है, वहां नलकूप है, जिससे गांव के लोगों को कठिनाई या परेशानी हो रही है?

अतिक्रमण स्थल पर प्रभावित परिवार कितने वर्षों से निवास कर रहा है, क्या अतिक्रमण मामला न्यायालय (तहसीलदार, अनु अधिकारी के कार्यालय) में लंबित है, क्या न्यायालय ने अतिक्रमण हटाने का आदेश पारित किया है?

अतिक्रमण हटाने के लिए किस अधिकारी को नामित किया गया है? क्या न्यायालय ने स्थानीय ग्रामवासियों, ग्राम पंचायत, सह सरपंच को अतिक्रमण हटाने का आदेश पारित कर निर्देशित किया है? 

सवाल यह उठना चाहिए कि यदि नहीं तो अतिक्रमित मकान को तोडऩे जेसीबी मशीन को किसके आदेश पर लाया गया? और उसके किराये का भुगतान किसने किया? जब अतिक्रमित मकान जेसीबी मशीन से तोड़ा गया तो गाव के लोग किसके उकसावे पर घटना स्थल पर एकत्रित हुवे? मारपीट बलवा, हत्या का प्रयास व गाली गलौज किसके निर्देश व मार्गदर्शन पर किया गया? 

सवाल यह भी कि घटना कारित करने के बाद पुन: डौंडी थाने का घेराव चक्का जाम प्रदर्शन समस्त आरोपी ग्रामीणों ने किसके आदेश पर किया? उसका नेतृत्व किसने किया? जबकि जिले में महामारी कोविड नियम के परिपालन में  8 फरवरी तक धारा 144 लागू थी। क्या प्रभावित व प्रताडि़त परिवार एवं उस वर्ग से संबंधित सामाजिक संगठनों ने घेराव, चक्का जाम, धरना प्रदर्शन, शासन व प्रशासन के विरूद्ध किया है?

इसके बावजूद किसके सह पर पीडि़त के खिलाफ कार्यवाही किये जाने की मांग की जा रही है? क्या प्रभावित व प्रताडि़त परिवार को आर्थिक सहायता देना उनसे संवेदनशीलता सहानुभूति व मानवता दिखाना अन्याय है, गैरकानूनी है?

सवाल यह भी कि अब तक जिला प्रशासन घटना स्थल का निरीक्षण और वास्तविक स्थिति का परीक्षण क्यों नहीं किया? किसके निर्देश पर प्रशासन प्रभावित व प्रताडि़त परिवार को संरक्षण व न्याय नहीं दे पा रही है? क्या अब तक घटना को कारित करने वाले मुख्य साजिशकर्ता की शासन व प्रशासन ने पहचान की है। यदि नहीं तो क्यों? और कब तक पहचान कर सजा मुकर्रर करेगी? जेसीबी अब तक जप्त क्यों नहीं किया गया है?

इन सवालों के संबंध में हमने संयुक्त मोर्चा एस.सी./एस.टी./ओ.बी.सी./अल्प संख्यक, दल्ली राजहरा के अध्यक्ष  तथा भारतीय बौद्ध महासभा छत्तीसगढ़ से बातचीत की है उनका इस संवेदनशीन मामले में उठ रहे सवालों पर कहना है कि शासन प्रशासन कब जागेगा और कब पीडि़त पक्षों को न्याय प्रदान करेगा?

संगठन का यह भी कहना है कि क्या सरकार प्रभावित परिवार एवं उस वर्ग के लोगों के बड़ा आंदोलन करने का इंतजार कर रही है? इस स्थिति में क्या तनावपूर्ण एवं अप्रिय स्थिति की सम्पूर्ण जिम्मेदारी जिला प्रशासन व छत्तीसगढ़ शासन की

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