LOK ASAR SAMACHAR ANTAGADHA/ BALOD
अंतागढ़ ब्लॉक मुख्यालय से महज 6 किलोमीटर दूर बसा गांव कढ़ाई खोदरा, जहां पर पिछले 6 सालों से पूर्व माध्यमिक शाला उन्नयन होने के बाद से स्कूल भवन के लिए तरस रहा है। बता दें कि जुलाई 2017 में पूर्व माध्यमिक शाला का उन्नयन तो कर दिया गया। लेकिन हाई स्कूल यात्री प्रतीक्षालय में संचालित की जा रही है। स्कूल भवन का आज पर्यंत अता पता नहीं है। भवन नहीं होने से जहां पढ़ाई तो प्रभावित हो रही है वहीं यहां आकर पढ़ाई करने वाले छात्र – छात्राओं को बेहद परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। साथ ही गांव के बच्चे दूसरे गांव की स्कूल जाने मजबूर हैं, लेकिन इसका सुध लेने वाला कोई नहीं है। विडम्बना देखिए जिला शिक्षा अधिकारी को इस आशय की जानकारी ही नहीं है।
इस यात्री प्रतीक्षालय में नवमी की क्लास लगाई जाती है
छोटा सा प्रतीक्षालय जिसे एक ओर प्लास्टिक से घेरा किया गया है। वह भी फटने लगा है। ना वहां पर बैठने के लिए पर्याप्त सुविधा है, ना पंखे ना पानी है। ना ही छात्र छात्राओं के लिए शौचालय की सुविधा है। जबकि नियमानुसार छात्राओं के लिए विशेष रूप से शौचालय एवं वॉशरूम की जरूरत होती है। बच्चों की विवशता है कि उन्हें खुले में दूर जंगल में शौच एवं वॉशरूम के लिए जाना पड़ता है।
सामुदायिक भवन के छोटा कमरा में 10वीं की कक्षा
स्कूल भवन नहीं होने के चलते नवमी कक्षा जहां यात्री प्रतीक्षालय में लगाई जाती है, वही 10वीं की क्लास सामुदायिक भवन के छोटा सा कमरा में लगाई जाती है। यहां बच्चों के बैठने की पर्याप्त सुविधा है और ना ही ब्लैक बोर्ड न शिक्षक के बैठने की व्यवस्था है। शिक्षक एक कोने में अपना टेबल के साथ बैठते हैं। इस कक्षा में भी न पंखा है न बिजली है। सामुदायिक भवन के हाल स्टोर रूम एवं स्टाफ रूम इस भवन के हाल को स्टाफ रूम एवं स्टोर रूम बनाया गया है जो कि किसी भी तरह से सुरक्षित नहीं है कभी भी वहां अनहोनी घट सकती है।
कक्षा दसवीं में पढ़ने वाली रागिनी बताती है स्कूल नहीं है, टॉयलेट नहीं है, मैदान नहीं है , पानी, बिजली कुछ भी नहीं है। मैं 2 साल से यहां पढ़ने आ रही हूं ।
छात्र चंद्रकांत नेताम बताता है सबसे बड़ी समस्या स्कूल भवन के नहीं होने की है।
संस्था की प्राचार्य गीता उसेंडी ने बताया कि पंचायत से लेकर विभाग के उच्च अधिकारियों को कई बार मौखिक एवं लिखित में आवेदन दिया जा चुका है। 8 जुलाई 2017 से उन्नयन हुआ है, लेकिन अभी तक स्कूल भवन नहीं बन पाया है। स्कूल नहीं होने के कारण इस गांव के बच्चे दूसरे गांव दूर पढ़ने जाते हैं। उन्होंने बताया कि एक कक्षा यात्री प्रतिक्षालय में लगा रहे हैं। बहुत समस्याएं हैं बच्चों के लिए वॉशरूम तक की सुविधा नहीं है न ही यहां पर आने वाले शिक्षकों की बैठने की व्यवस्था है ना पीने का पानी है न बिजली है।
इस संबंध में जानकारी लेने भुवन जैन ( जिला शिक्षा अधिकारी कांकेर) से संपर्क करने पर बताया अभी सी एम कार्यक्रम में हूं। पता करवाता हूं।
इस अव्यवस्था के लिए आखिर कौन जिम्मेवार है? क्षेत्र के जनप्रतिनिधि अथवा विभाग के आला अधिकारी। जो बच्चों की शिक्षा जैसी मूलभूत अधिकार के प्रति उदासीन बने बैठे हैं। यही वजह है कि दूरस्थ क्षेत्र के आदिवासी बच्चे शिक्षा से वंचित रह जाते हैं।
(बस्तर की संस्कृति परंपरा रीति रिवाज रहन-सहन यानी बस्तर के आदिवासियों की जीवन शैली उनके दिनचर्या पर लंबे चौड़े व्याख्यान यहां के जनप्रतिनिधि सामाजिक कार्यकर्ता एवं यहां पदस्थ अधिकारी कर्मचारी करते अघाते नहीं है किंतु दूरस्थ गांव में आदिवासी बच्चे कैसे तो अच्छी शिक्षा ग्रहण कर सके इस दिशा में आज भी बस्तर बेहद फिसड्डी है और यहां के बच्चे प्राथमिक से लेकर उच्चतर शिक्षा के लिए भटकने भी बस है उनके अभावग्रस्त शिक्षण संस्थाओं को अधिकारी जनप्रतिनिधि कभी झांकने तक नहीं आते।)