अभिव्यक्ति को खुलकर व्यक्त करने का सशक्त माध्यम है: रंगमंच- प्रो.के.मुरारी दास

27 मार्च विश्व रंगमंच दिवस पर विशेष

लोक असर समाचार बालोद

 जिंदगी प्यार का गीत है....., एक रास्ता है जिंदगी....., जिंदगी एक सफर है सुहाना..... जिंदगी एक जुआ है. जैसे अनेकानेक प्रेरणादायक विचार एवं प्रेरणास्पद गीतों से जिंदगी के मंच पर आए दिन दो-चार होने पड़ते हैं. पर सच बात तो यह है कि इन सब के मूल में एक ही बात मिलती है, और वह यह कि जिंदगी एक नाटक है और हम सब इसके पात्र. दूसरे शब्दों में कहें तो दुनिया का हर स्त्री और पुरुष रंगमंच का एक पात्र है जहां से व्यक्ति प्रवेश करता है और निकलता है जिसमें एक ही बार में पूरे एक से अधिक पात्रों को बड़े संजीदगी से जीता है. 
 रंग और मंच दो शब्दों के मेल से बने इस रंगमंच में लोगों को अपने विभिन्न किरदार को अलग अलग भावभंगिमा के माध्यम से प्रदर्शित करना होता है. रंगमंच वह वास्तविक दुनिया होता है. जो सदियों पूर्व मानव-कल्याण और मानवीय-सभ्यता से संबद्ध रखती है, जहां से ऊर्जा प्राप्त कर इंसान नया-नया नाटक रचता है. एक ऐसा नाटक जो व्यक्ति को जिंदगी के अर्थ के साथ उसे जिंदगी जीने की सीख भी देती है.

भारतीय रंगमंच का इतिहास

संस्कृत में रंगमंच को भारतीय रंगमंच के रूप में पहले ही मान्यता दी गई. माना जाता है कि, संस्कृत रंगमंच की उत्पत्ति का इतिहास 3500 वर्ष पुराना है, ऐसा समझा जाता है कि ऋग्वेद के कती पद सूत्रों में यम-यमी, पुरुरवा और उर्वशी आदि के संवाद का जिक्र मिलता है. इन्हीं संवादों में लोग नाटक के विकास के कुछ चिन्ह पाते हैं, जिनसे प्रेरणा लेकर लोगों ने नाटक की रचना की है और नाट्य कला का विकास हुआ. दूसरा कारण यह है कि त्रेतायुग के प्रारंभ में देवताओं ने ब्रह्मा से मनोरंजन के साधन उपलब्ध करने की प्रार्थना की ताकि लोग अपना दुख भूल सके और कुछ समय आनंद प्राप्त कर सके. फलत: उन्होंने ऋग्वेद से कथोपकथन, सामवेद से गायन और यजुर्वेद से अभिनय तथा अथर्ववेद से रस लेकर नाटक का निर्माण किया. इसलिए इसे भारतीय धर्म शास्त्रों में पांचवा वेद की संज्ञा दी गई है.

छत्तीसगढ़ में है दुनिया का प्राचीनतम नाट्यशाला

छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले के रामगढ़ की पहाड़ियों पर स्थिति सीता बेंगरा गुफा को दुनिया की प्राचीनतम नाट्यशाला माना जाता है. जहां संस्कृत के महाकवि कालिदास ने अपनी अनुपम कृति मेघदूत की रचना की. इसलिए इसको रचना स्थली भी कहा गया है. यह विश्व की सर्वाधिक प्राचीनतम शैल नाट्यशाला के रूप में विख्यात है.

आधुनिक रंगमंच की शुरुआत

भारतीय पुरातत्वविद् मानते हैं, कि इसका निर्माण ईसा पूर्व तीसरी सदी में हुआ होगा. किंतु आधुनिक रंगमंच की खोज का श्रेय कर्नल आउसले नामक एक अंग्रेज को जाता है, जिसने सन् 1848 में आधुनिक रंगमंच की शुरुआत की. जो भारत में अंग्रेजों के आगमन पश्चात होता है. 19 वीं सदी का समापन और बीसवीं सदी का प्रारंभ को रंगमंच के शुरुआती दौर माना जाता है अर्थात् भारतीय रंगमंच का इतिहास 200 साल का माना जाता है. भारतेंदु हरिश्चंद्र को हिंदी रंगमंच के पुरोधा के रूप में जाना जाता है.

रंगमंच से लाभ

गीत, संगीत और कहानी से जब कोई बात ना बने तब अपनी आवाज को एक निश्चित मुकाम तक पहुंचाने का सशक्त माध्यम है रंगमंच. जिसे नाटक के माध्यम से बखूबी समझा वह समझाया जा सकता है. जो सभी कलाओं से एकदम अलग समाज का आईना ही नहीं अपितु समाज का अगुवा भी है. इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह होती है कि जिसे समाज द्वारा छुपाया, ठुकराया या अलगाव किया जाता है, उसे रंगमंच समाज तक पहुंचाने का कार्य करता है. अपनी साफगोई के लिए जाना जाने वाले रंगमंच मानवीय सभ्यता के सभी युगों में समीचीन रहा है. जिसके माध्यम से विश्व बंधुत्व और सांस्कृतिक आदान-प्रदान संभव है. रंगमंच कला का बेहतरीन स्वरूप है यही वजह है कि यह व्यक्ति की जिंदगी का सवाल उठाता है. रंगमंच न केवल मनोरंजन का सशक्त माध्यम है बल्कि, समाज को जगाने, दिशा निर्देश करने का खूबसूरत साधन भी है. नाटक को जीने वाले व्यक्ति ना केवल एक अच्छा कलाकार होता है, बल्कि समाज में जीने वाला एक सफल इंसान भी है. देखा जाए तो टीवी फिल्म और वेब सीरीज सरीखे आभासी दुनिया नाटय संसार का विस्तारित रूप ही है.

विविध विधाओं का संगम रंगमंच

रंगमंच एक विधा ही नहीं बल्कि अलग-अलग अनेक विधाओं का एक संगम स्वरूप है. आजादी के बाद रंगमंच दो धाराओं में विभाजित हुई. एक हबीब तनवीर की धारा जो आमजनता से जुड़ी हुई थी. तो दूसरी धारा यूरोपीय संस्कृति से जुड़ी दिखाई देती है. जिसमें इब्राहिम अलका आज का नाम प्रमुख रूप से लिया जाता है पिछले 50 वर्षों के इतिहास में जिस भारतीय रंग कर्मियों ने यहां के रंगकर्म को वैश्विक पहचान दी उसमें पृथ्वीराज कपूर, बलराज साहनी, गिरीश कर्नाड, दीना पाठक, डॉ श्रीराम लागू, नसीरुद्दीन शाह, ओम पुरी, दीपक ठुकराल, का नाम प्रमुखता से लिया जाता है. जिन्होंने न सिर्फ रंगमंच को ऊपर उठाया बल्कि, सिनेमा जगत को भी ऊंचाइयों प्रदान की है.

 यूनेस्को द्वारा 1961 में नेशनल थीएट्रिकल इंस्टिट्यूट द्वारा इसकी स्थापना की गई. तब से यह प्रतिवर्ष 27 मार्च को विश्व भर में फैले विभिन्न थीएट्रिकल इंस्टिट्यूट के विभिन्न केंद्रों में मनाया जाता है. 1962 में पहला अंतर्राष्ट्रीय रंगमंच संदेश फ्रांस की जीन काकटे ने दिया था. वर्ष 2002 में यह संदेश भारत के प्रसिद्ध रंगकर्मी गिरीश कर्नाड को अंतरराष्ट्रीय रंगमंच संदेश देने का अवसर प्राप्त हुआ.


 *( रंगमंच मुक्त उड़ान का विचार है, रंगमंच -कल्पना यहां खिलती है.बर्फ दिलों के रंगमंच में पिघल जाती है.और एक चमत्कार यहां पैदा हुआ है)*
                         *अज्ञात*

 छत्तीसगढ़ भारत और दुनिया के समस्त रंग कर्मियों को 61वें विश्व रंगमंच दिवस की बधाई .

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