लोक असर के लिए बेबाक बातचीत

सरकार के असंवैधानिक फैसलों के खिलाफ प्रत्येक नागरिकों को आवाज उठाने होंगे-प्रभाकर ग्वाल (ex पूर्व जिला न्यायिक जज)

पूर्व न्यायिक जज बनने के पश्चात् से ही अपने त्वरित कार्यवाही और फैसला देने के चलते विवादों से घिरे हुए मजिस्ट्रेट प्रभाकर ग्वाल ने लोक असर से बातचीत करते हुए बताया कि छत्तीसगढ़ में न्यायिक प्रक्रिया में जातिवादी मानसिकता, गरीबी अमीरी वाली मानसिकता अधिक है। वैसे तो पूरे देश में गरीबों को न्याय नहीं मिलता। राजनीतिक दखलंदाजी के कारण, वहीं समय सीमा में फैसला लेने वाले जजों को कई भांति से कोशिश होती है। नहीं माने जाने पर मानसिक प्रताड़ना से गुजरना पड़ता है अथवा पद से हटा दिया जाता है। (यह साक्षात्कार उनके बातचीत पर आधारित है।)

आप कौन कौन से पद में रहे और कितने सालों तक सेवाएं दी है?


*न्यायिक जज के रूप में मैंने 10 वर्षों तक सेवा दिया है। यह सेवाएं दुर्ग, बिलासपुर जैजैपुर, रायपुर सुकमा इस प्रकार से सभी बड़े जिलों में कार्यानुभव रहा है। मेरा सीजीएम के पद पर पदोन्नति हो गई थी।

  • इन पदों पर रहते हुए कहां सामंजस्य बिठाना पड़ता था एवं किस तरह के राजनीतिक दबाव से गुजरना होता है?

  • *देखिए राजनीतिक दबाव प्रत्यक्ष रूप से नहीं आता। उच्च स्तर पर जो अधिकारी (जज) होते हैं। यदि वे भ्रष्ट होते हैं। तो ऐसे अधिकारी ही राजनीति करते हैं। जो नेताओं से गुप्त रूप से मिले होते हैं। मिसाल के तौर पर देखें तो छत्तीसगढ़ में पूर्ववर्ती भाजपा सरकार के कई मंत्री एवं भाजपा के नेता भ्रष्टाचार में फंसे हुए हैं। जो कि अपने पावर का दुरुपयोग करते हुए, जिला जजों को अपने विश्वास में लेकर उन जजों की गलती ढूंढने की कोशिश कराते थे, जो उनके मामलों को देखते थे।
  • लगातार अपराध बढ़ने के पीछे क्या कारण देखते हैं?
  • लगातार अपराध में इजाफा के होने के पीछे जाति अहंकार और आपसी स्वार्थ है। और दूसरा कोई कारण नहीं है। मेरी पत्नी ने जो किताब लिखी है, सुप्रीम कोर्ट को भी रिप्रजेंट की है। उसमें स्पष्ट तौर पर उल्लेख किया गया है, कि छत्तीसगढ़ प्रदेश की न्यायिक प्रक्रिया में पूर्णतः जातिवादी भेदभाव है, गरीबी-अमीरी का भेदभाव है, क्षेत्रीयता का भेदभाव है। उदाहरणार्थ देखें, तो छत्तीसगढ़ प्रदेश में यूपी, बिहार, मध्य प्रदेश से लोग आकर शान से नौकरी कर रहे हैं, उन्हें गलतियों पर किसी प्रकार की नोटिस जारी नहीं किया जाता। जबकि, छत्तीसगढ़िया अधिकारियों को बिना कारण के शोकॉज नोटिस जारी कर दिया जाता है। एक मामला बलौदा बाजार के हैं वहां के एक जज के द्वारा जमीन के लिए फर्जी प्रमाण पत्र दे दिया है, जबकि स्पष्ट रूप से उल्लेख है कि वह नजूल की जमीन है। इसी प्रकार से कई अन्य अधिकारी भी सरकारी जमीन में स्वामित्व दे रहे हैं जानबूझकर। फर्जी प्रमाण पत्र दे रहे हैं, परंतु उनके खिलाफ कोई शो कॉज नोटिस जारी नहीं किया जाता है।

आप किस प्रकार के अपराधों में त्वरित फैसला देते थे और क्यों?

  • मैं सभी प्रकार के अपराधों में त्वरित फैसला देता था।

यह बताइए कि सर्वाधिक आपराधिक मामले किस क्षेत्र से आते हैं?

  • वर्तमान में छत्तीसगढ़ में फर्जीवाड़ा का मामला अधिक आ रहा है। मारपीट, गाली-गलौज कोई गंभीर अपराध नहीं कह सकते। हां, राजस्व अधिकारियों की विफलता से राजस्व अपराध बढ़ रहे हैं। लगभग अधिकारी बिना रिश्वत लिए कोई कार्य नहीं कर रहे हैं। जो पैसा नहीं देता उनका मामला उलझा दिया जाता है।

कोर्ट में ज्यादातर मामलों में कार्यवाही को पेशी दर पेशी में टाले जाते हैं, इनके पीछे क्या कारण है?

  • देखिए जनाब, पेशी दर पेशी देने के पीछे एक कारण यह भी है जैसे जब कोई सक्षम व्यक्ति किसी केस में संलिप्त होते हैं या फंस जाते हैं तो उनको संरक्षण देने के लिए इस प्रकार से धांधली की जाती है। जैसे डॉ रमन सिंह के परिवार, अजीत जोगी के परिवार को कोर्ट से रिलीफ मिल जाती है। जबकि और भी मामले लंबित है। यह मेंटेलिटी ( सोच ) कुछ जजों में है। वह सिर्फ गरीब आदमियों को परेशान करते रहते हैं। हमारे एक क्लाइंट हैं जो कि माइनिंग अधिकारी हैं। आय से अधिक संपत्ति नहीं होने के उपरांत भी उसे 2 साल जेल में रहना पड़ा। जबकि जांच में यह बात सामने आई है, कि उसे षड्यंत्र पूर्ण ढंग से फंसाया गया है। अब उसे अपील करने उच्च अधिकारी मशविरा दे रहे हैं।जबकि नियमानुसार जिनके द्वारा उनके ऊपर एफ आई आर दर्ज कराई गई थी। उन पर कार्यवाही होनी चाहिए। एनआरसी एवं सीएए संविधान की नजर में क्या है। क्या नागरिकता संशोधन कानून भारत की सांझी संस्कृति के खिलाफ नहीं है?

  • *नागरिकता संशोधन कानून लागू करना असंवैधानिक ही नहीं, बल्कि अनैतिक है, अप्राकृतिक है, देखिए बाप से पुत्र यह नहीं मांगेगा कि मुझे प्रमाण दो कि आप मेरे पिता है कि नहीं। इस कानून के अंतर्गत ऐसे प्रमाण मांगे जा रहे हैं, जबकि भारत के पास इसका डॉक्यूमेंट ही नहीं है। इंसान जरूरी है कि कागजात। एनआरसी लागू करना है तो डीएनए जांच के माध्यम से हो यदि इतना ही आवश्यक है तो सरकार उस फील्ड में काम कर रही है जिसमें जीत हासिल है। हमारे पूर्वज, दादा परदादा जब पढ़े-लिखे ही नहीं थे ऐसे में कहां से जन्म प्रमाण पत्र लाएंगे कहां से स्कूल दाखिला प्रमाण पत्र लाएंगे एवं जमीन जायदाद का अधिकार ही नहीं था ऐसे में कहां से जमीन जायदाद का प्रमाण पत्र लाएंगे जो हमारे पास है ही नहीं उसे एनआरसी के क्राइटेरिया में ला रहे हैं। ईवीएम को लेकर आप क्या सोचते हैं?
  • ईवीएम याने कुल मिलाकर धांधली करने का उपकरण है। विधानसभा संवैधानिक बॉडी है। दिल्ली चुनाव में देखा गया है कि ईवीएम से धांधली हुई है। साक्ष्य भी मिले हैं इसके बाद भी ईवीएम से चुनाव हो रहा है। ठीक है चुनाव ईवीएम से हो लेकिन वीवीपैट की पर्ची को भी गिना जाए क्योंकि वह भी प्रामाणिक है और उसमें कोई विवाद होने की आशंका नहीं है। इसलिए की बटन दबाओ जिसमें उसी का चिन्ह उसमें निकलता है। तो उसे क्यों नहीं गिना जाता है। इससे साफ जाहिर है ईवीएम में धांधली की जा रही है।

बस्तर में नक्सलवाद को कैसे खत्म हो सकते हैं इस दिशा में आपके क्या विचार हैं। आप बस्तर में भी अपने न्यायिक सेवाएं दी है?

  • देखिए, नक्सलवाद राजनीतिक इच्छाशक्ति से खत्म होगी। नक्सलवाद को बढ़ावा राजनीतिक तौर पर मिला हुआ है। जांच के नाम पर अधिकारी चुप बैठ गए हैं। बस्तर में नक्सली और फोर्स के बीच हमले में मरने वाले में 90% आदिवासी हैं। दोनों तरफ से आदिवासी ही मारे जा रहे हैं और उसी स्थान पर मर रहे हैं जहां पर खनिज संपदा है। यह नक्सली नहीं बल्कि राजनीतिक हत्या है। पूंजी पतियों द्वारा किए जा रहे हत्या है। निर्भया गैंगरेप के पश्चात् कठोर कानून बनाए जाने के बाद भी बलात्कार के मामलों में इजाफा होने के पीछे क्या कारण देखते हैं?
  • ऐसा है कि जब तक समाज में अनैतिकता है, तो अपराध बढ़ेगा ही। कानून से अपराध नहीं रुकता। इसमें कोर्ट को भी यह सुझाव दिया जाना चाहिए और इतना सख्त कानून ना हो।

कई बार आम आदमी से लेकर पुलिस और मीडिया जज बन जाते हैं यह कितना उचित है संविधान के मुताबिक जबकि दंड देना न्याय का काम है?

  • इस प्रकार से निष्कर्ष लेना, निर्णय लेना असंवैधानिक कृत्य है। बल्कि इसमें यह होना चाहिए कि जो घटना घटी है उसमें वे गवाह बने।

कोर्ट के कार्यों को लेकर मीडिया की भूमिका को कैसे देखते हैं?


*वर्तमान दौर में मीडिया की भूमिका पक्षपातपूर्ण है। यदि मीडिया सच को सामने लाएगी, तो न्यायाधीशों को भी सही निर्णय देने की मजबूरी होगी।

धारा 107-116 में बंद रहते हैं ऐसे कितने लोगों को आप ने रिहा करवाए हैं जो कि निर्दोष हैं?

  • इस तरह के मामलों का निपटारा एसडीएम एवं तहसीलदारों के अधिकार क्षेत्र में आता है। अपील होने के बाद ही डिस्ट्रिक कोर्ट में आते हैं।

कॉलेजियम सिस्टम से आप कितने सहमत हैं कि यह कितना सही है?

  • नहीं, नहीं! यह सिस्टम ही सही नहीं है। इतने महत्वपूर्ण पदों में बिना भर्ती प्रक्रिया के चयन किया जाना न्याय संगत नहीं है। इसके चलते गैर जिम्मेदाराना फैसला होने लगा है। संविधान के आगे जाकर ऐसे लोग फैसला ले रहे हैं।

सुप्रीम कोर्ट में जिस प्रकार से फैसले हो रहे हैं लगातार, जिसमें पत्रकार अर्णब गोस्वामी जो कि बेहद संदिग्ध है, जिनके लिए कोर्ट खुल जाता है। दो दिन में जमानत हो जाती है, जबकि हजारों लोग बंद हैं, जिनमें कई उम्रदराज हो चुके हैं, कई बीमार हैं ऐसे लोगों के फैसले क्यों नहीं होते?

*जब तक जज सही नहीं होंगे। फैसले कैसे सही होंगे। निष्पक्ष जज जब तक नहीं बैठेंगे, ऐसे ही फैसले होते रहेंगे।

जिनको गिरफ्तार किया जाता है उसे पुलिस दंड देती है,तो कोर्ट का औचित्य क्या है। पुलिस द्वारा एनकाउंटर कर दिया जाता है तो फर्जी एनकाउंटर रोकने कोर्ट क्या कर सकता है?

  • यह कोर्ट से बाहर की बात है। इसे शासन या फिर कोई पीड़ित परिवार आगे आकर अपील कर सकता है तो ही यह संभव है। पुलिस प्रशासन और कोर्ट के बीच जो अंतर्विरोध बढ़ते जा रहे हैं उसे पाटने क्या उपाय हैं?
  • पुलिस प्रशासन और कोर्ट के बीच में कोई अंतर विरोध नहीं है। दोनों अलग-अलग क्षेत्र हैं। दोनों की भूमिका और कार्यशैली अलग है। पुलिस अपना काम करने में स्वतंत्र है और न्यायालय अपनी जांच में करने में स्वतंत्र है।

फास्ट ट्रैक कोर्ट की स्थापना आज कितना सफल है?

  • फास्ट ट्रैक कोर्ट की स्थापना तो की गई है लेकिन ईमानदारी से कहां कार्य कर रहे हैं। राजद्रोह जैसे मामला में 6 माह में न्याय देना है। लेकिन धांधली कर रहे हैं। फास्ट ट्रैक कोर्ट जैसे सिस्टम बनने के पश्चात् भी राजद्रोह जैसे गंभीर अपराधों का निराकरण कहां हो पा रहा है समय पर प्राय सभी जिलों में फास्ट ट्रैक कोर्ट की स्थापना है, जिले के जितने भी स्पेशल कोर्ट है फास्ट ट्रैक कोर्ट के परिधि में हैं।

डॉक्टर बाबा साहब अंबेडकर का जीवन निरंतर संघर्षों और चुनौतियों में व्यतीत हुआ था उनके जीवन के कुछ मार्मिक प्रसंग जो आपको गहराई से प्रेरित करते हैं या फिर आप बेहद प्रभावित हैं?

  • ऐसा चुनाव हम नहीं कर सकते वह महापुरुष है , महान् व्यक्तित्व है। ऐसे महापुरुषों की तुलना या आलोचना करने लायक हम नहीं है उनके हर कार्य प्रेरणा योग्य है। बल्कि मैं तो यह कहूंगा कि जो काम अधूरा रह गया है उसे पूरा करने की दिशा में हमें संकल्प लेकर कार्य करना चाहिए।

वर्तमान दौर में बाबा साहब अंबेडकर का चिंतन किस प्रकार की दिशा देता है?

  • हमें बार-बार समाज के लोगों को सच्चाई से अवगत करना होगा। समाज में लगातार जागरूकता शिविरों का आयोजन करना होगा। सोचने से कुछ नहीं होने वाला है। गौतम बुद्ध पूरे देश में समानता की व्यवस्था ला दिए थे भेदभाव से मुक्त।

समतामूलक समाज की स्थापना में डॉक्टर अंबेडकर ने शिक्षा की महत्वपूर्ण भूमिका मानी है, वर्तमान शिक्षा प्रणाली की भूमिका से कितने आप संतुष्ट हैं अथवा क्या बदलाव होना चाहिए?

  • देखिए, वर्तमान शिक्षा प्रणाली बिल्कुल द्रोणाचार्य के पैटर्न में चलाई जा रही है। शिक्षा, चिकित्सा में रोक लगा रहे हैं अघोषित रूप। इतना जरूर है, कि भाषणों में बड़े-बड़े शब्दों में, नारों में, शिक्षा, चिकित्सा को महिमामंडित किया जाता है। विधिक जागरूकता शिविरों के आयोजन के पीछे क्या मकसद है एवं इससे कोर्ट को या फिर फरियादी को क्या लाभ मिलता है?
  • विधिक जागरूकता शिविर सरकार का एक महत्वपूर्ण कदम है। इससे फरियादी को भी लाभ मिलेगा और कोर्ट का भी समय बचेगा, लेकिन विधिक जागरूकता शिविर के नाम पर महज औपचारिकता पूरी की जा रही है। इसमें तो आने वाले बजट ही लेफ्ट हो जा रहा है। “प्रगतिशील बुद्धिजीवियों द्वारा संविधान विरोध कानून के खिलाफ लिखे गए पत्रों के क्या मायने हैं सत्ता के जनविरोधी फैसलों को रोकने में कितने कारगर हैं?
  • बहुत कारगर है। बुद्धिजीवियों के ही नहीं अपितु देश के प्रत्येक नागरिकों का दायित्व है, कि कोई भी सरकार गलत फैसला लेते हैं तो उनके खिलाफ सभी को सामने आने की जरूरत हैं।

अपराधों को रोकने मजिस्ट्रेट की भूमिका क्या होनी चाहिए?

  • अपराधों को रोकने मजिस्ट्रेट की कोई खास भूमिका नहीं होती। जज के पास तो मामला अंतिम समय में आता है हां यदि मजिस्ट्रेट तथ्यों एवं कानून को दरकिनार कर फैसले ले रहे हैं तो तत्काल कार्यवाही उन पर होनी चाहिए वैसे अपराध रोकने की मुख्य भूमिका पुलिस पर निर्भर करती है और नैतिकता से समाज इतना मजबूत होगा अपराध भी कम होगा मजिस्ट्रेट न्यायिक गतिविधियों का पालन करते हैं अपराध रोकने तो संसद को कानून बनाने संबंधी अधिकार है इसमें होना तो यह चाहिए कि जो अधिकारी मजिस्ट्रेट पुलिस जानबूझकर कानून कानून का पालन न करते हुए फैसला देते हैं उन पर कार्यवाही होना चाहिए।

भारतीय दंड संहिता में पुलिस को बेहद पावर है। उनके द्वारा बंदियों को मारा जाता है। टॉर्चर किया जाता है। तो पुलिस के खिलाफ कोई संज्ञान क्यों नहीं लिया जाता। क्या कोर्ट पर भी पुलिस अधीक्षक अथवा राजनीतिक पार्टियों का रुतबा कायम है?

  • कोर्ट इस पर संज्ञान तो लेता है लेकिन औसतन मामले कम होता है, और छत्तीसगढ़ में तो इनकी अनदेखी किया जा रहा है। बिना कोई छानबीन के एनकाउंटर कर दिया जाता है नक्सली बताकर। कोर्ट पर भी राजनीतिक दबाव हावी है। दरअसल, पूरा प्रशासन, न्यायपालिका, सांसद एक ही व्यक्ति के नियंत्रण में आ गए हैं। जो अपराध कर रहे हैं और बचे हुए कानून से जिन को सजा नहीं हो पाई है। पूरा का पूरा संसद न्यायपालिका अपराधियों के नियंत्रण में है।

क्या आप मानते हैं कि संविधान पूर्णता लागू है?

  • बिल्कुल नहीं संविधान अगर लागू होता तो इतने अत्याचार कहां होता और संविधान में कहीं निजी करण का अनुमति नहीं दिया गया है, न ही देश की जनता किसी भी सरकार को निजीकरण करने, निजीकरण को बढ़ावा देने जनमत नहीं दिए हैं। फिर भी सब करते जा रहे हैं। सारी समस्याओं का जड़ भारत में निजीकरण ही है।

आप के बर्खास्त होने का क्या कारण बताया गया है?


*देखिए मुझे जो नोटिस दिया गया है, उन पर भी बर्खास्तगी का कोई कारण नहीं दिया गया है। नहीं बताया गया है।

आप अपना आदर्श व्यक्तित्व किसे मानते हैं?

  • मेरा कोई भी आदर्श व्यक्तित्व नहीं है।

(यह साक्षात्कार लोक असर (राष्ट्रीय हिन्दी मासिक) के स्थाई स्तंभ बेबाक बातचीत में 2021 में प्रकाशित हो चुका। lokasar.com के माध्यम से अपने पाठकों के लिए पुनः)

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