जिनने कहा है आपसे, विचारों को निकालो, उन्हीं के पास पहुंच रहे हैं सलाह के लिए…

(संकलन एवम् प्रस्तुति मैक्सिम आनन्द)

सुनी होगी कथा आपने। तिब्बत के एक फकीर के पास एक युवक गया था। उससे चाहता था कोई मंत्र दे दे, कोई सिद्धि हो जाए। उस फकीर ने बहुत समझाया, कोई मंत्र मेरे पास नहीं, कोई सिद्धि मेरे पास नहीं, मैं बिलकुल सीधा-साधा आदमी हूं। मैं कोई बाजीगर नहीं हूं, कोई मदारी नहीं हूं। किन्हीं मदारियों के पास जाओ। वैसे कई मदारी साधु-संन्यासी के वेश में उपलब्ध होते हैं, उन्हें खोज लो कहीं, वे शायद कोई तुम्हें मंत्र दे दें।

लेकिन वह युवक माना नहीं। जितना उस साधु ने समझाया कि जाओ, उतना ही उसे लगा कि है कुछ इसके पास, रुको। पर उसे पता नहीं चला कि यही सीक्रेट था, इसी में वह उलझ गया। साधु धक्के देने लगा कि जाओ, दरवाजे बंद कर लेता।

हमारे मुल्क में… ऐसे साधु सारी दुनिया में होते हैं। पत्थर मारेंगे, गाली देंगे… जितना पत्थर मारेंगे, जितना गाली देंगे, उतने ही रसलीन भक्त उनके आसपास इकट्ठे होंगे! क्योंकि यह आकर्षण बन गया कि जरूर कुछ होना चाहिए यहां। जहां कुछ होता है, वहां से भगाए जाते हैं। तो जरूर यहां कुछ होना चाहिए। कई होशियार लोगों को यह तरकीब पता चल गई। वे पत्थर फेंकने लगे, गाली देने लगे, गोबर फेंकने लगे, लोगों को चिल्लाने लगे, यहां मत आओ और लोग वहां इकट्ठे होने लगे। इकट्ठा करने का यह एक ढंग हुआ।

उस साधु ने, बिचारे को पता नहीं था, वह तो सहज ही उसे भगाता था, लेकिन वह युवक पीछे पड़ गया। वह आकर दरवाजे पर बैठा रहता, पैर पकड़ लेता। आखिर उसने देखा कि कोई रास्ता नहीं है, इसे मंत्र देना ही पड़ेगा। और उसने मंत्र दिया भी। लेकिन उसको मंत्र मिल नहीं सका। एक कंडीशन, एक शर्त लगा दी और सब गड़बड़ हो गया।

उस साधु ने, बिचारे को पता नहीं था, वह तो सहज ही उसे भगाता था, लेकिन वह युवक पीछे पड़ गया। वह आकर दरवाजे पर बैठा रहता, पैर पकड़ लेता। आखिर उसने देखा कि कोई रास्ता नहीं है, इसे मंत्र देना ही पड़ेगा। और उसने मंत्र दिया भी। लेकिन उसको मंत्र मिल नहीं सका। एक कंडीशन, एक शर्त लगा दी और सब गड़बड़ हो गया।

सभी होशियार लोग कुछ न कुछ शर्त जरूर पीछे लगा देते हैं। ताकि जब मंत्र सिद्ध न हो, तो कहने को रह जाए कि शर्त पूरी नहीं हुई। नहीं तो मंत्र तो बराबर सिद्ध होता। शर्त तुमने पूरी नहीं की, कसूर तुम्हारा है। और शर्त कुछ ऐसी होती हैं कि वे पूरी हो ही नहीं सकती

उसने एक शर्त लगा दी। उसने कहा, यह मंत्र ले जाओ, पांच ही बार पढ़ना, सिद्ध हो जाएगा आज रात। लेकिन जैसे ही वह उतरने लगा, सीढ़ियों से मंत्र लेकर। उसने कहा, ठहरो, मैं शर्त तो भूल ही गया बताना। उसके बिना तो कुछ होगा नहीं। कौन सी शर्त? कहा, बंदर का स्मरण न आए। बस पांच बार पढ़ लेना बिना बंदर को स्मरण किए, सब ठीक हो जाएगा।

उस युवक ने कहा, क्या शर्त बताई है आपने भी फिजूल, जिंदगी हो गई मुझे बंदर का स्मरण नहीं आया। मैं कोई डार्विन का भक्त थोड़े ही हूं कि मुझे बंदर का स्मरण आता हो। मैं डार्विन को मानता ही नहीं। मैं यह विकासवाद, यह ईवलूशन कुछ नहीं मानता। बंदर से मेरा क्या नाता। बंदर कोई मेरे मां-बाप थोड़े ही हैं।

लेकिन उसे पता चला कि डार्विन को मानो या न मानो बंदर को रोक लगा दी गई थी, बंदर आना शुरू हो गया। वह चला भी था, सीढ़ियां भी नहीं उतर पाया था कि उसने देखा भीतर बंदर मौजूद हो गया। वह बहुत घबड़ाया। बाहर बंदर हो तो भगा भी सकते हैं, अब भीतर हो तो क्या करें? घर पहुंचते-पहुंचते उसने एक बंदर को हटाने की कोशिश की, उसने पाया कि और बंदर चले आ रहे हैं। घर पहुंचते-पहुंचते उसके मन में बंदर ही बंदर बैठ गए। सब तरफ से वे उसे चिढ़ा रहे हैं। सब तरफ से पूंछ हिला रहे हैं। अब बहुत मुश्किल हो गई।

वह तो बहुत घबराया कि अजीब बात है। आज तक जीवन में ये बंदरों से कभी कोई संबंध नहीं रहा, कोई मैत्री नहीं रही। कोई वास्ता नहीं रहा इन बंदरों से, यह हो क्या गया है मुझे। नहाया, धोया, सब उपाय किए, अगरबत्ती जलाई, धूप-दीप जलाए जैसे कि धार्मिक लोग करते हैं, जैसे इनसे कुछ हो जाएगा! कमरा बंद किया, नहा-धोकर बैठा, लेकिन कितने ही नहाओ-धोओ, बंदर कोई पानी से डरते नहीं हैं। और कितने ही धूप-दीप जलाओ, बंदरों को पता भी नहीं उनका। और बंदर बाहर होते तो कोई उपाय भी था। बंदर थे भीतर। उनको निकालने का कोई रास्ता न था। वह जितनी आंख बंद करने लगा, रात जितनी बीतने लगी-मंत्र हाथ में उठाता था, मंत्र बाहर ही रह जाता था, बंदर भीतर। सुबह तक वह घबड़ा गया। समझ गया कि यह मंत्र इस जीवन में अब सिद्ध नहीं हो सकता।

गया, साधु को मंत्र वापस दिया और कहा, अगले जन्म में फिर मिलेंगे। लेकिन खयाल रखना यह कंडीशन फिर से मत लगा देना। यह शर्त मत लगा देना दोबारा, मुश्किल हो जाएगा। यह बंदर तो, हद हो गई। निकालना चाहा, तो बंदर मौजूद हो गए।

आप भी कुछ निकालना चाहें, जिसे निकालना चाहें, वह मौजूद हो जाएगा। यह सीक्रेट ट्रिक है। यह तरकीब है भीतर कि आपको समझाया जाता है विचारों को निकालो, फिर आप आंख बंद करके बैठे हैं, वे निकलते नहीं हैं, वे और चले आ रहे हैं। अब आप परेशान हुए जा रहे हैं। और जिनने कहा है आपसे, विचारों को निकालो, उन्हीं के पास पहुंच रहे हैं सलाह के लिए कि कैसे विचारों को निकालें। चाहेंगे विचार के तल पर, वह चीज दुगने बल से आनी शुरू हो जाएगी। रोककर देख लें कोई एकाध विचार। कोशिश कर लें कि इसको हम न आने देंगे।

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