(संकलन एवम् प्रस्तुति मैक्सिम आनन्द)
एक छोटी सी कहानी मुझे याद आती है, एक किसान था, एक साधु का प्रवचन सुनने गया। साधु उसे समझा रहा था, प्रवचन दे रहा था, कुछ। उस किसान को कुछ मिसअन्डरस्टैंडिंग हुई, कुछ गलतफहमी उसे हुई।
उसे लगा कि जो हम बोएंगे वैसी ही फसल काटेंगे, ऐसा साधु कह रहा था, कर्मों के संबंध में समझा रहा था। किसान नासमझ था, उसने सोचा कि अरे मैं भी कैसा नासमझ, जैसा बोएंगे, वैसी ही फसल काटेंगे, तो मुझे तो अपने जानवरों के लिए, गाय, बैल के लिए भूसे की जरूरत है, तो जा के भूसा बोता हूँ क्योंकि जैसी फसल बोउंगा वैसी ही फसल काटूंगा।
उसने अपने खेत में जाकर भूसा बो दिया। इन्तजार करता रहा, पानी दिया, खाद दिया। बदबू आने लगी, वह भूसा भी सड़ गया, ऊगा तो कुछ भी नहीं, फसल तो कुछ भी नहीं आई।
वह तो बहुत नाराज हुआ, वह साधु के पास गया। कि जैसा आपने कहा था, मैंने वैसा ही किया, लेकिन भूसा की खेती मैंने करनी चाही थी, भूसा तो पैदा नहीं हुआ। वह साधु उसकी नासमझी पर, उसकी मूढ़ता पर, हँसने लगा। ऐसी ही मूढ़ता हम सब करते हैं, करीब-करीब।
नहीं, गेहूँ बोते हैं तो भूसा आता है, भूसा बाइप्रोडक्ट है, गेहूँ बोना होता है। ध्यान और प्रेम बीज हैं, इनको बोना होगा। और अगर एक शब्द याद रखना हो तो, मैं कहूंगा कि सम्यकत्व। बस इतना ही याद रखना सम्यकत्व। इसके बीज बोना, और सारी फसल आती रहेगी, उसके बाइप्रोडक्ट सब आते रहेंगे। सम्यक स्मृति, सम्यक दृष्टि और सम्यक कर्म, सम्यक वाणी, सम्यक समाधि, सम्यक व्यायाम। सब आते रहेंगे। एक बीज को याद रखना सम्यकत्व।
‘एक साथै सब सधे,
सब साधे, सब जाए।’
सब साधने की कोशिश करने के लिए एक सूत्र को पकड़ लेना। इस एक को साथ लेना और सब अपने आप सध जाएगा।