(संकलन एवं प्रस्तुति मैक्सिम आनन्द)
एक सुबह बुद्ध एक गांव में आये। उस गांव में एक विधवा स्त्री का इकलौता बेटा मर गया। वही उसका सहारा था, वही उसकी आंख का तारा ! वही सब कुछ था। पति तो चल बसा था, इसी बेटे के सहारे जी रही थी। उसकी पीड़ा तुम समझो, पागल हो गयी। बेटे की लाश को लेकर गांव में घूमने लगी- वैद्यों के, चिकित्सकों के द्वार-द्वार, तांत्रिकों-मांत्रिकों के द्वार-द्वार…। मगर कौन जगाये उसे; सब तंत्र, सब मंत्र, सब ज्योतिष, सब वैद्य, सब चिकित्सक मृत्यु के सामने असहाय हैं। किसी ने कहा: पागल औरत, अब इस लाश को ढोने-रखने से कुछ भी लाभ नहीं है। अब तू व्यर्थ ही दीवानी हो रही है! जो हुआ हुआ, मृत्यु तो हो गयी। अब तो कोई चमत्कार ही हो तो यह बच सकता है।
उस स्त्री को तो जैसे डूबते को तिनके का सहारा…उसने कहाः चमत्कार! क्या कोई चमत्कार हो सकता है ?
उस आदमी ने यह सोचकर कहा भी न था। उसने तो यूं ही बात में ही बात कह दी थी, बात में बात निकल गई थी – कह दिया था कि कोई चमत्कार हो, तो ही बच सकता है। चमत्कार कहीं होते हैं! मगर स्त्री पीछे पड़ गयी उसके कि चमत्कार हो सकता है, तो बोलो कहां, कैसे ?
पिंड छुड़ाने को उसने कहाः गांव में गौतम बुद्ध का आगमन हुआ है, तू उनके पास जा। वे तो भगवान हैं। वे तो परम ज्ञान को उपलब्ध है। उनके चरणों में ही रख दे इस लाश को। अगर चमत्कार हो सकता है तो वहीं हो सकता है, और कहीं भी नहीं।
भागी स्त्री, जाकर लाश को बुद्ध के चरणों में रख दिया। और मालूम है, बुद्ध ने क्या कहा? बुद्ध ने कहा ठीक, तो तू चाहती है कि तेरा बेटा वापिस जिदा हो जाये?
उसने कहा: बस यही चाहती हूं, और कुछ भी नहीं चाहती। इतना ही कर दो। अनुकंपा करो, मुझ दीन पर दया करो।
बुद्ध ने कहा होगा, जरूर होगा, लेकिन कुछ शर्तें पूरी करनी होगी। तू जा गांव में और किसी भी घर से मेथी के थोड़े-से दाने मांग ला। वह गांव तो मेथी की ही खेती करता था।
उस स्त्री ने कहा। यह भी कोई शर्त हुई? सारा गांव मेथी ही मेथी से भरा है। यही तो हमारी खेती है। अभी ले आती है।
बुद्ध ने कहा लेकिन खयाल रख, उसके पीछे एक शर्त और है- मेथी उस घर से लाना जिसके घर में कभी कोई मृत्यु न घटी हो, तो चमत्कार हो जायेगा। बस मेथी के चार दाने काम कर जायेंगे।
वह भागी स्त्री… पागलपन में आदमी तो कुछ भी भरोसा कर लेता है। होश में न हो तो गणित बिठालने का समय भी कहां पाता है। और फिर मन जब मानना ही चाहता हो तो सब तर्कों के विपरीत मान लेता है। छोटी-सी बात थी, साफ हो गयी थी बात वहीं कि ऐसा कौन-सा घर होगा जहां मृत्यु न हुई हो।
लेकिन कौन जाने। आशाएं हैं, बड़े सपनों में ड्व जाती है। वह भागी, एक-एक द्वार खटखटाया। लोगों ने कहा कि जितनी मेथी चाहिए ले जा, बोरे के बोरे भरवा दे, गाड़ियों की गाड़ियां भरवा दें। मेथी ही मेथी है, गांव मेथी की ही खेती करता है। तेरे घर भी मेथी है, तू क्यों दूसरे घरों में मांगती फिरती है?
उसने कहा लेकिन ऐसे घर की मेथी चाहिए जिसके घर कोई मरा न हो। सांझ होते-होते बात साफ हो गयी कि गांव में एक भी घर ऐसा नहीं है जहां कोई मरा न हो। और यह बात साफ होते-होते कुछ और भी साफ हो गया।
जब वह लौटी सांझ, बुद्ध ने कहाः तु ले आयी मेथी के चार दाने? वह स्त्री हंसने लगी। वह बुद्ध के चरणों पर गिर पड़ी।
उसने कहा मुझे दीक्षा दो। इसके पहले कि मेरी मौत आये, मैं कुछ कर लूं। मैं जीवन का कुछ अर्थ जान लूं, मै जीवन का अभिप्राय जान लूं। बेटा तो गया, मेरा जाना भी ज्यादा दूर नहीं है। और आपने ठीक ही किया कि मुझे भेज दिया गांव की यात्रा पर। एक-एक घर में पूछ कर मुझे पता चल गया कि मृत्यु तो सुनिश्चित है। सभी घर में हुई है; सभी घरों में होती रहेगी। हम मौत के द्वार पर ही खड़े है। तो मेरा बेटा आज गया, कल मैं जाऊंगी। इसके पहले कि मैं जाऊं… मेरा बेटा तो गया, बिना कुछ जाने गया, मैं बिना कुछ जाने नहीं जाना चाहती।
कबीर, यही में तुमसे कहता हूं। मौत तो होती ही है- किसी की आज, किसी की कल- आज बहन, कल भाई। हम सब विदा होने को है यहां। यह घर नहीं है, सराय है। रोने में समय मत गंवाओ। आंसू पोंछ डालो। क्योंकि आंसुओं से भरी आंखें देखने में समर्थ न हो सकेंगी। आंसू बिलकुल पोंछ डालो। यह देखने की घड़ी है।
मृत्यु से बड़ी महत्वपूर्ण कोई घड़ी नहीं है। और जब तुम्हारा कोई प्यारा मर जाये तब तो बड़ा बहुमूल्य अवसर है। क्योंकि प्यारे का अर्थ होता है जो तुम्हारे बहुत करीब था, हृदय के बहुत करीब था। प्यारे का अर्थ होता है जिसकी मृत्यु तुम्हें अपनी मृत्यु जैसी मालूम होती है। यही तो मौका है, यही तो ध्यान में प्रवेश का मौका है।
और मुझसे तुम सांत्वना न मांगो, मैं तुम्हें सत्य ही दे सकता हूं। और सत्य यह है कि तुम्हें भी मरना होगा, मुझे भी मरना होगा, सभी को मरना होगा। मरने के पहले लेकिन एक उपाय है: काश! हम अपनी चेतना से थोड़ा परिचय बना लें। थोड़ा हमारे भीतर जो अमृत का दीया जल रहा है, उसका अनुभव हो जाये। फिर मृत्यु नहीं होती। फिर देह गिर जाती है और हम और लंबी यात्रा पर निकल जाते हैं। फिर केवल परिधान बदलते हैं। न हन्यते हन्यमाने शरीरे। फिर शरीर के मरने से वह जो भीतर छिपा है, वह नहीं मरता है।
और जिस दिन तुम अपने अमृत को देख पाओगे, उसी दिन तुम्हें सबके भीतर अमृत दिखायी पड़ जायेगा। न तुम्हारी बहन मरी है, न कोई कभी मर सकता है। अब तुमसे मैं ये दो विरोधाभासी वक्तव्य दे रहा हूं। एक- सभी मरते हैं। सभी को मरना पड़ेगा। जो देहग्रस्त है, मृत्यु के सिवाय वे कुछ भी अनुभव नहीं कर सकते। और दूसरा – कोई न कभी मरा है, और कोई न कभी मर सकता है। लेकिन यह तो उनका अनुभव है, जिन्होंने अमृत की पहचान की हो, जिन्होंने आत्म-साक्षात्कार किया हो।
देह तो बस फूल है। देखते हो न, जब कोई मर जाता है और उसे हम जला आते हैं; फिर तीसरे दिन हम इकट्ठा करने जाते हैं, तो कहते है-फूल इकट्ठे करने जा रहे हैं। क्यों कहते हैं फूल इकट्ठे करने जा रहे है? बस, फूल जैसा ही सब है यहां क्षणभंगुर । प्यारा शब्द है फूल। क्षणभंगुरता का प्रतीक है फूल। हड्डियां इकट्ठी करने जाते हैं, कहते हैं- फूल इकट्ठे करने जा रहे है।