पागल होना हो तो मैं, और मैं, और मैं…

(संकलन एवम् प्रस्तुति/मक्सिम आनन्द)

एक सम्राट बीमार पड़ा था। कोई चिकित्सा नहीं हो सकी। मरने के करीब पहुंच गया। सब चिकित्सक हार गए। और तब किसी ने कहा कि दूर इस गांव के बाहर एक संन्यासी है, शायद वह कोई रास्ता बता दे।

उस संन्यासी को लाया गया। उस संन्यासी ने कहा कि नहीं, मैं रास्ता नहीं बता सकूंगा। रास्ता तो बड़ा सरल है, लेकिन मैं बता नहीं सकूंगा। मुझे क्षमा कर दें।

सम्राट कहने लगा, रास्ता जब सरल है तो बता क्यों नहीं सकेंगे?

उसने कहा, रास्ता तो मैं बता दूंगा, लेकिन…सरल भी है…पर आप कर नहीं पाएंगे, बहुत कठिनाई खड़ी हो जाएगी। लेकिन बच सकते हैं आप, मौत निश्चित नहीं है।

सम्राट ने पैर पकड़ लिए। कहा, रास्ता बता दें।

नहीं!

दरबारी, रानियां, सारी राजधानी हाथ जोड़ कर खड़ी हो गई कि आप जाएं न, बता दें।

उसने कहा, नहीं आप मानते हैं तो मैं बताए देता हूं। दस हजार बच्चों की गर्दन कटवानी पड़ेंगी और उनके खून से स्नान कराना पड़ेगा, तो सम्राट बच जाएगा। मैं जाता हूं। मैं और कुछ ज्यादा नहीं कह सकता। सम्राट बच सकता है। लेकिन फलां तारीख तक दस हजार बच्चे इकट्ठे कर लें। फलां तारीख को फलां समय उनकी गर्दनें काट दें, ताजे खून से नहला दें, सम्राट बच जाएगा।

छह महीने थे उस तारीख को अभी। सम्राट ने कहा कि नहीं, मैं नहीं बचना चाहता हूं। दस हजार बच्चे काटने पड़ें! और फिर एक अजनबी फकीर, इसकी बात का भरोसा क्या? मैं बचूं या न बचूं, वे दस हजार बच्चे तो कट जाएंगे! फिर मैं बच भी जाऊंगा तो कितने दिन बचूंगा? आखिर मुझे मरना पड़ेगा। फिर मैं तो बूढ़ा हो गया, दस हजार बच्चे, अभी जीवन जिनका शेष है, उन्हें कैसे समाप्त कर दूं?

लेकिन परिवार के लोग समझाने लगे, दरबारी समझाने लगे, राजधानी के बुद्धिमान समझाने लगे कि तुम्हारा एक जीवन दस हजार बच्चों के जीवन से ज्यादा कीमती है। तुम हो तो दस हजार बच्चे नहीं, दस करोड़ बच्चे सुरक्षित हैं इस देश में।

तुम जिस दिन नहीं हो उस दिन किसी का भी जीवन सुरक्षित नहीं है। वह इतना प्यारा राजा था, वह इतना बुद्धिमान, वह इतना दया से, करुणा से भरा कि सारे देश ने प्रार्थना की कि दस हजार बच्चों की हम फिकर नहीं करते हैं, हम तुम्हें बचाना चाहते हैं।

मजबूरी में राजा को राजी हो जाना पड़ा। बच्चे इकट्ठे किए जाने लगे। महल छोटे-छोटे खूबसूरत बच्चों से भरने लगा।

राजा की नींद समाप्त हो गई। राजा दिन-रात सोचने लगा कि यह मैं क्या करवा रहा हूं? यह क्या होगा? रात-दिन बच्चे ही बच्चे दिखाई पड़ने लगे।

दस हजार बच्चे गांव-गांव से आने लगे। और गांव-गांव में लोग भगवान से प्रार्थना करने लगे कि राजा पहले ही ठीक हो जाए, तो बच्चे बच जाएं। कोई गाली देने लगा कि यह राजा कैसा है! यह मर जाए उस तारीख के पहले ही, तो बच्चे बच जाएं। सारे देश में एक ही चिंता, और राजा के प्राणों में एक ही चिंता।

छह महीने पूरे हो गए, वह दिन आ गया। दस हजार बच्चे इकट्ठे हो गए। आज सुबह होते ही, भोर होते ही उनकी गर्दनें काट दी जाएंगी। वह महल के बाहर द्वार पर दस हजार बच्चे पंक्तिबद्ध खड़े कर दिए गए। नंगी तलवारें सूरज की रोशनी में चमकने लगीं। वह राजा नीचे आया। उसने उन बच्चों को एक कतार से देखा एक तरफ। वक्त आ गया, तलवारें उठ गईं और बच्चे काट दिए जाएंगे। तभी वह राजा चिल्लाया कि नहीं! कोई बच्चा नहीं काटा जाएगा! मैं मरने को तैयार हूं।

बच्चे रोक दिए गए। और राजा ठीक हो गया। बड़ी हैरानी हुई कि राजा ठीक कैसे हो गया? राजा की बीमारी खतम हो गई!

उस फकीर को बुलवाया गया कि बीमारी कैसे ठीक हो गई? बच्चे तो रोक दिए गए।

उस फकीर ने कहा, कुल एक कारण है–छह महीने तक राजा अपनी बीमारी के संबंध में सोच ही नहीं सका। बच्चे मर जाएंगे, इतने बच्चे मर जाएंगे–एक ही चिंतन!

अपने से बाहर चला गया चिंतन, सेल्फ से बाहर चला गया, मैं के बाहर चला गया। वह जो चिंतन मैं पर रुका हुआ था, वही पीड़ा थी, वही कष्ट था, वही दुख था।

एक आदमी सो नहीं पाता है, फिर उसकी बीमारी ठीक नहीं हो पाती। चिकित्सक कहते हैं, इसे नींद आ जाए तो ठीक हो जाए। नींद से बीमारी के ठीक होने का क्या संबंध है? कोई भी संबंध नहीं है।

सिर्फ एक संबंध है–नींद में भूल जाता है कि मैं बीमार हूं। और कोई भी संबंध नहीं है।

नींद में डिसकंटिन्यूटी हो जाती है इस खयाल की कि मैं बीमार हूं। मैं के बाहर नींद में आदमी चला जाता है। इसलिए नींद जरूरी है, नहीं तो आदमी पागल हो जाए।

मैं तो पागलपन का केंद्र है, वह तो मैडनेस का सीक्रेट है। पागल होना हो तो मैं, और मैं, और मैं…

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