यह कोई अमीर का महल नहीं है जिसमें जगह की कमी हो, यह…

(संकलन एवं प्रस्तुति मैक्सिम आनन्द)

मैंने सुना है, एक फकीर के पास छोटा-सा झोपड़ा था। बस पति और पत्नी दोनों सो लेते, इतनी उसमें जगह थी। एक रात जोर से वर्षा होती थी, अमावस की रात और एक आदमी ने दरवाजे पर दस्तक दी। पति ने कहा- द्वार खोल दे। पत्नी ने कहा कि ठीक नहीं द्वार खोलना, वर्षा जोर की है, कोई शरण चाहता होगा, जगह कहां है ? पति ने कहा- कोई फिकर नहीं, दो के सोने-योग्य जगह है, तीन के बैठने योग्य होगी; दरवाजा खोला। दरवाजा खोला। एक मेहमान भीतर आया, उसने कहा- क्या मैं रात-भर विश्राम कर सकता हूं ? पति ने कहा मजे से। तीनों बैठ गए, गपशप शुरू होने लगी। फिर किसी ने थोड़ी देर बाद दस्तक दी। पति ने पत्नी से कहा-खोल। उसने कहा- अब बहुत मुश्किल हो जाएगी। जगह कहां है ? पति ने कहा कि तीन ज़रा दूर-दूर बैठे हैं, चार ज़रा पास-पास बैठेंगे। जगह की क्या कमी है, हृदय चाहिए; दरवाजा खोल। वह आदमी भी भीतर ले लिया। फिर थोड़ी देर में एक आदमी आ गया और उसने दस्तक दी। रात है और रास्ता अंधेरा-भरा है और लोग भटक गए हैं रास्ते पर और मार्ग नहीं खोज पा रहे हैं। पति ने कहा- दरवाजा खोल। पत्नी ने कहा-बहुत हुआ जा रहा है। पति ने कहा- अभी ज़रा सुविधा से बैठे हैं, फिर थोड़ी असुविधा होगी, जगह की कहां कमी है। और प्रेम हो, तो असुविधा क्या है ? दरवाजा खोल।

अब तक तो बात ठीक थी, थोड़ी देर बाद एक गधे ने आकर दरवाजे पर जोर से सिर मारा। पति ने कहा- दरवाजा खोल। पत्नी ने कहा- अब सीमा के बाहर बात हुई जा रही है। अब यहां जगह कहां है ? और यह गधा है बाहर ! इस गधे को भी भीतर ले आएं ? पति ने कहा- अभी हम बैठे हैं, इसके लिए काफी जगह है, अब हम खड़े हो जाएंगे। मगर जगह काफी है, अभी जगह कम नहीं है। तू गधे को भीतर ले आ। अब तो वे जो लोग तीन पहले भीतर आ चुके थे, उन्होंने भी विरोध किया। उन्होंने कहा कि यह बात ठीक नहीं है। पति ने कहा- तुम अपनी सोचो ! तुम्हें पता है, यह पत्नी पहले से ही विरोध कर रही थी ! अब तुम भी विरोध कर रहे हो।

यह कोई अमीर का महल नहीं है जिसमें जगह की कमी हो, यह गरीब का झोपड़ा है। यह वचन बड़ा अद्भुत है- यह कोई अमीर का महल नहीं है-उस फकीर ने कहा- जिसमें जगह की कमी हो, यह गरीब का झोंपड़ा है, इसमें जगह की क्या कमी है ? आने दो। गधा भी भीतर आ गया, वे सब खड़े हो गए। अब खड़े होकर गपशप चलने लगी। और उस फकीर ने कहा- देखते हो, जगह बन जाती है, हृदय चाहिए।

संतोष विराट है। असंतोष बड़ा क्षुद्र है। असंतुष्ट आदमी के पास महल भी हो तो छोटा है, और संतुष्ट आदमी के पास झोपड़ा भी हो तो बड़ा है। संतुष्ट आदमी जीवन की कला जानता है।

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