(संकलन एवं प्रस्तुति मैक्सिम आनन्द)
जुंग के पास एक आदमी को लाया गया जो बहुत परेशान था और अपने दफ्तर जाना बंद कर दिया था। डर गया था, घबड़ा गया था। घबड़ा गया था इस बात से कि उसका मन हमेशा अपने मालिक को जूता निकाल कर मारने का होता था। तो उसने जूते ले जाने बंद कर दिए दफ्तर, कि पता नहीं किसी क्रोध के क्षण में जूता निकाल ले और मार दे।
जब जूता बिना पहने दफ्तर गया, तो स्वभावतः हिंदुस्तान में होता तो चल जाता, हम समझते कि कोई साधुता आ गई, सरल हो गया। वह था यूरोप में। वहां तो कोई जूता छोड़ने से सरल नहीं समझेगा। इतनी सरलता सस्ती यूरोप में नहीं है जितनी हमारे यहां है। लोगों ने समझा कि क्या हो गया ? जूता क्यों नहीं पहने हुए हो ? वह तो डरा ही हुआ था कि कहीं कोई पूछ न ले कि जूता क्यों नहीं पहने हुए हो। उसने कहा कि तुम कौन हो पूछने वाले ? यह मेरी मर्जी है! जितना ही वह चिढ़ा, लोगों को और उत्सुकता बढ़ी कि बात क्या हो गई जूते के साथ ? तब तो उसे ऐसा लगने लगा कि वह किसी दूसरे का जूता भी निकाल कर मार सकता है। तब उसने छुट्टी ले ली।
उसके घर के लोग उसे मनोवैज्ञानिक के पास ले गए और कहा कि कुछ करिए, बहुत कठिनाई हो गई है। वह दफ्तर जाने की हिम्मत छोड़ दिए हैं।
उसने सारी बात सुनी। उसने कहा, तुम एक काम करो, अपने मालिक की एक तस्वीर ले आओ और सुबह रिलीजसली, बिलकुल धार्मिक-भाव से पांच जूते पहले मालिक को मारो, तस्वीर को, फिर दफ्तर जाओ।
उसने कहा, इससे क्या होगा ?
लेकिन जब उसने कहा कि ‘इससे क्या होगा ?’ तभी उसकी आंखों में चमक बदल गई, उसके चेहरे पर खुशी आ गई। यह तो बहुत दिन का इरादा था।
उस मनोवैज्ञानिक ने कहा, तुम इसकी फिक्र न करो कि क्या होगा, तुम तो पांच जूते मारना शुरू करो।
वह आदमी पांच जूते मारा ! पंद्रह दिन के बाद उसे मालिक पर दया आने लगी, उसी मालिक पर! और मन में वह सोचने लगा कि बेचारे को पता भी नहीं है कि रोज सुबह पांच जूते खा रहा है। मालिक भी हैरान हुआ, क्योंकि उसका सारा व्यवहार बदल गया। उसने एक दिन उससे पूछा भी कि तुम अब बड़े भलेमालूम पड़ते हो, शांत हो गए हो, कम उद्विग्न दिखते हो, चिंतित नहीं मालूम पड़ते। पहले तो चौंके चौंके रहते थे, डरे-डरे रहते थे, हर चीज से घबड़ा जाते थे। क्या मामला है ? क्या बात है ? तुम बड़े भले हो गए हो !
उसने कहा, आप मालिक पूछिए ही न यह बात। क्योंकि तरकीब ऐसी है कि बताने से खतरा है। लेकिन मैं अब बिलकुल भला हूं। और अब मैं शायद ही कभी बुरा हो सकूं, क्योंकि वही तरकीब अब मैं दूसरों पर भी लगा लूंगा। अब पत्नी की भी तस्वीर रखी जा सकती है।