(संकलन एवं प्रस्तुति मक्सिम आनंद )
यहूदियों में एक कहानी है।
एक यहूदी धर्मगुरु ने-गरीब आदमी था–एक रात सपना देखा। सपना देखा कि देश की राजधानी में जो पुल है नदी के ऊपर, उसके एक किनारे बिजली के ठीक खंभे के नीचे बड़ा धन गड़ा है। उसने धन भी देखा–हीरे-जवाहरात चमकते हुए! सुबह उठा, सोचा सपना है। लेकिन दूसरी रात सपना फिर आया, ठीक वैसा का वैसा। दूसरे दिन सुबह जागकर वह एकदम यह न कह सका कि सपना है, क्योंकि सपने इस तरह नहीं दुहरते। फिर भी उसने सोचा कि क्या भरोसा, कहां जाना! लेकिन तीसरी रात सपना फिर आया, तब रुकना मुश्किल हो गया। उसने कहा, कोई राजधानी इतनी दूर भी नहीं है, जाकर देख तो आऊं मामला क्या है! वह कभी राजधानी गया भी न था। जब वह गया तो चकित हुआ। ठीक जैसा पुल उसने सपने में देखा था वैसा ही पुल राजधानी का है। तब तो उत्साह बढ़ा। तेजी से चलने लगा। दूसरी तरफ पहुंचा। ठीक बिजली का खंभा वहीं है जहां सपने में देखा था। ठीक वैसा ही बिजली का बल्ब लगा है–तब तो भरोसा और बढ़ा। लेकिन एक मुसीबत थी। सपने में उसने यह न देखा था कि एक पुलिसवाला वहां पहरा देता है। तो वह राह देखने लगा कि पुलिसवाला जाये तो मैं खोदकर देखूं। लेकिन पुलिसवाला तभी जाता जब दूसरा आ जाता, डयूटी बदलती। वह दो तीन दिन ऐसे चक्कर मारता रहा। पुलिसवाले ने भी बार-बार इस आदमी को वहां चक्कर मारते देखा। उसे बुलाया पास और कहा कि सुनो, क्या मामला है? आत्महत्या करनी है पुल से कूदकर? क्योंकि इसीलिये वहां वह खड़ा रहता था कि कोई आत्महत्या न कर ले। मामला क्या है?
उस यहूदी धर्मगुरु ने कहा, अब आपसे छिपाना क्या है; एक सपने के चक्कर में पड़ गया हूं। वह पुलिसवाला हंसा और उसने कहा, ठहरो! इसके पहले कि तुम अपना सपना कहो, मैं भी तुम्हें कह दूं। तीन दिन से मैं भी एक सपना देख रहा हूं। मैं एक सपना देख रहा हूं कि फलां-फलां गांव में…। जो उसने नाम लिया तो वह धर्मगुरु बड़ा हैरान हुआ, वह तो उसी के गांव का नाम है! फलां-फलां गांव में फलां-फलां नाम का एक धर्मगुरु है।
उसने कहा, अरे ठहरो! यह मेरा नाम है और मेरे गांव का तुम पता ले रहे हो! मैं ही हूं वह धर्मगुरु।
वह पुलिसवाला बहुत हंसा। उसने कहा कि मैं तीन दिन से एक सपना देखता हूं कि जहां धर्मगुरु सोता है उसके बिस्तर के नीचे एक खजाना गड़ा है। मैं तो एक दिन तो सोचा सपना है, दूसरे दिन कैसे सोचूं कि सपना है! हीरे-जवाहरात सब साफ दिखाई पड़ते हैं। और आज तीसरी रात फिर सपना देखा है। और तुमसे इसलिए कह रहा हूं कि तुम्हारा चेहरा उस सपने में मुझे दिखाई पड़ता है। यह माजरा क्या है? तुम तीन दिन से यहां चक्कर भी लगा रहे हो।
उस धर्मगुरु ने कहा कि अब कुछ माजरा नहीं है। मैं कुछ और ही सपना देखा हूं। लेकिन अब मैं कुछ कहूंगा नहीं, अब मैं जाता हूं गांव अपने वापस। वह भागा आया। उसने अपनी खाट के नीचे खोदा, पाया, खजाना था!
हसीद फकीर इस कहानी में बड़ा रस लेते हैं। क्योंकि यह कहानी जीवन की कहानी है। तुम सोच रहे हो, कहीं और खजाना गड़ा है, किसी राजधानी में, किसी पुल के पास। वहां जो खड़ा है वह सोच रहा है कि तुम्हारे घर खजाना गड़ा है।