LOKASAR BALOD / GUNDERDEHI
दिल्लीवार कूर्मि क्षत्रीय समाज के पुरोधा दाऊ ढालसिंह दिल्लीवार की आज़ जयंती है.
दाऊ ढाल सिंह दिल्लीवार के जन्म स्थली ग्राम पिरिद है. गुण्डरदेही रेस्ट हाउस के सामने दाऊ ढालसिंह दिल्लीवार की प्रतिमा स्थापित की गई है.
जहाँ प्रतिवर्ष दिल्लीवार समाज के द्वारा उनके याद में सभा आयोजन कर जयंती मनाई जाती है. एवं उनके सामाजिक, राजनीतिक विचारों को आदर्श मानकर समाज सतत प्रगति के मार्ग पर अग्रसर दिखाई देता है.
वे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे, जिन्होंने समाज में चेतना जगाई। नई पीढ़ी को उनके आदर्शों के बारे में जानना जरूरी है।
आइये जानते हैं कौन है दाऊ ढाल सिंह दिल्लीवार
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी एवं पूर्व विधायक दुर्ग दाऊ ढाल सिंह दिल्लीवार योगदान आजादी के आंदोलन से लेकर स्वतंत्र भारत के जनहित कार्यों में रहा है।
उनका जन्म 27 नवंबर 1897 को ग्राम-पिरीद जिला बालोद छत्तीसगढ में हुआ था। सन 1921 में स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हुए थे। 1926 में क्रांतीकारी युवक का नाम दिया गया (मात्र 24 वर्ष की उम्र में)। 1930 में नमक एवं जंगल सत्याग्रह में शामिल हुए तथा 1935 में कांग्रेस सेवा दल की सदस्यता ग्रहण की। सन 1937 में दुर्ग जिला लोकल बोर्ड के चेयरमेन एवं प्रांतीय कांग्रेस के सदस्य में चयन हुआ। सन 1939 में त्रिपुरी जबलपुर कांग्रेस अधिवेशन में शामिल हुए तथा गांधी जी, नेताजी सुभाष चंद्र बोस तथा सीतारमैय्या के साथ जेल आंदोलन में शामिल हुए। सन 1940 सत्याग्रही तैयार करने मंटग (पाटन) क्षेत्र का भ्रमण किया. 12 मई 1941 को गांधी चौक दुर्ग की सभा से बलपूर्वक अंग्रेजों द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया। सन 1941 से 1945 तक नागपुर, दमोह, जबलपुर के जेलों में रहे. जेल में महान क्रांतिदूत संत विनोबा भावे और अब्दुल कलाम आजाद लंबे समय तक एक ही कोठरी में रहे। सन 1948 में प्रकाशित नवभारत जयपुर कांग्रेस अंक के पृष्ठ 53 में दाऊजी मध्यप्रांत के प्रधान नक्षत्र की संज्ञा दी गई। सन 1955 से 1962 तक दुर्ग जनपद सभा के प्रथम अध्यक्ष रहे । सन 1961 में अविभाजित दुर्ग जिले (राजनांदगांव, कवर्धा, बेमेतरा, खैरागढ़, बालोद तहसील) के कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष चुने गये। सन 1962 से 1967 तक दुर्ग विधानसभा से विधायक चुने गए । सन् 1967 में दाऊ जी के सह-प्रयासों से विशाल भूखंड पर साइंस कालेज दुर्ग का भवन निर्माण हुआ। दाऊ जी की पहल पर पुराना बस स्टैंड स्थित मजार में उर्स के मौके पर अखिल भारतीय स्तर पर कव्वाली आयोजन की शुरूआत हुई, सिलसिला आज भी जारी है। सन 1966 से जीवन पर्यन्त केन्द्रीय दिल्लीवार कूर्मि क्षत्रिय महासभा के अध्यक्ष रहे। वे 10 अगस्त 1969 को महाप्रयाण हो चला.