(संकलन एवं प्रस्तुति मैक्सिम आनंद)
तिब्बत में एक फकीर था, मिलारेपा। उसके पास एक युवक आया और उसने कहा कि मुझे कोई मंत्र सिद्धि करनी है, मुझे कोई शक्ति अर्जित करनी है, मुझे कोई मंत्र दे दें। मिलारेपा ने कहा कि मंत्र हमारे पास कहां! हम तो फकीर हैं। मंत्र तो जादूगरों के पास होते हैं, मदारियों के पास होते हैं, तुम उनके पास जाओ। हमारे पास मंत्र कहां? हमारे पास सिद्धि का क्या संबंध?
लेकिन वह युवक जितना ही उस साधु ने मना किया, उतना ही उस युवक को लगा कि जरूर यहां कुछ होना चाहिए, इसीलिए यह मना करता है। जितना साधु रोकने लगा और इनकार करने लगा उतना ही वह युवक साधु के पास जाने लगा।
जो साधु डंडे से किन्हीं को भगाते हैं, उनके पास बहुत भीड़ इकट्ठी हो जाती है। जो गाली देते हैं और पत्थर मारते हैं, उनके पास भीड़ और बढ़ जाती है। क्योंकि जरूर यहां कुछ होना चाहिए, नहीं तो यह पत्थर मारेगा और डंडे मारेगा? लेकिन हमें पता नहीं है कि चाहे अखबार में खबर निकलवा कर बुलावाया जाए लोगों को, चाहे पत्थर मार कर, तरकीब एक ही है, प्रोपेगेंडा दोनों में ही एक है। और दूसरी तरकीब ज्यादा कनिंग से भरी है। जब पत्थर मार कर लोगों को भगाया जाए, तो लोगों के यह भी खयाल में नहीं आता कि हमें बुलाया जा रहा है। लेकिन पत्थर मार कर भगाना भी बुलाने की विधि है। और तब आदमी आता भी है और उसे खयाल में भी नहीं आता है कि मैं बुलाया गया।
उस युवक ने समझा कि यह शायद कुछ छिपाना चाहता है, इसलिए वह और रोज आने लगा। आखिर में मिलारेपा परेशान हो गया तो उसने एक कागज पर मंत्र लिख कर दे दिया और कहा इसे ले जाओ और आज अमावस की रात है तो अंधेरे में पांच बार इसको पढ़ लेना। बस पांच बार तुमने पढ़ लिया कि सिद्धि हो जाएगी। फिर तुम जो भी चाहते हो, वह कर सकोगे। जाओ और मेरा पीछा छोड़ो।
वह युवक भागा। उसने धन्यवाद भी नहीं दिया। वह सीढ़ियां उतर भी नहीं पाया था मंदिर की कि मिलारेपा ने कहा कि मेरे मित्र! एक बात बताना मैं भूल गया। एक कंडीशन भी है, एक शर्त भी है। जब उस मंत्र को पढ़ो तो बंदर का स्मरण नहीं आना चाहिए। उस युवक ने कहा बेफिकर रहिए, आज तक जिंदगी में कभी नहीं आया। कोई आने का कारण नहीं है। और पांच ही बार तो पढ़ना है न, कोई हर्जा नहीं है।
लेकिन भूल हो गई उससे। वह पूरी सीढ़ियां उतर भी नहीं पाया था कि बंदर आना शुरू हो गए। वह बहुत घबड़ाया। आँख बंद करता है तो बंदर हैं, बाहर देखता है तो जहां बंदर नहीं हैं वहां भी दिखाई पड़ते हैं, मालूम होते हैं कि बंदर हैं। रात है, वृक्षों पर हलचल होती तो लगता है कि बंदर हैं। घर पहुंचा, बहुत परेशान हुआ कि यह मामला क्या है! यह आज तक मुझे बंदर कभी खयाल में नहीं आए। मेरा कोई नाता—रिश्ता बंदरों से नहीं रहा, कोई पहचान नहीं रही।
घर पहुंचा, स्नान किया, लेकिन स्नान करता जा रहा है और बंदर साथ हैं। एक ही तरफ खयाल रह गया है— बंदरों की तरफ। फिर मंत्र पढ़ने बैठता है। हाथ में कागज लेता है, आख बंद करता है और बंदरों की भीड़ उसको चिढ़ा रही है, भीतर बंदर मौजूद हैं। वह बहुत घबड़ा गया। रात भर उसने कोशिश की। सब भांति करवट बदलीं, इस भांति बैठा, उस पद्यासन में बैठा, इस सिद्धासन में बैठा, भगवान के नाम लिए, हाथ जोड़े, गिड़गिड़ाया, रोया कि पांच मिनट के लिए केवल इन बंदरों से छुटकारा दिला दो। लेकिन वे बंदर थे कि उस रात उसका पीछा छोड़ने को राजी नहीं हुए।
सुबह तक वह बिलकुल पागल हो उठा। घबड़ा गया और समझ गया कि यह मामला हल होने का नहीं है। यह सिद्धि नहीं हो सकती। मैं समझता था बड़ी सरल है, साधु होशियार है। उसने शर्त कठिन लगा दी। पागल है लेकिन… अगर बंदरों के कारण ही रुकावट होती थी तो कम से कम बंदरों का नाम न लेता। तो शायद यह मंत्र सिद्ध भी हो जाता।
लेकिन सुबह वह साधु के पास गया रोता हुआ और उसने कहा वापस ले लें अपना मंत्र। बड़ी गलती की है आपने। अगर बंदर ही इसकी रुकावट थे इस मंत्र में, तो कृपा करके कल न कहते, आज कह देते तो कोई हर्ज होता था आपका? मुझे कभी बंदर याद भी नहीं आए थे। लेकिन रात भर बंदरों ने मेरा पीछा किया। अब अगले जन्म में आऊंगा, फिर हो सकता है कि यह मंत्र सिद्ध हो सके, क्योंकि अब इस जन्म में तो यह मंत्र और बंदर संयुक्त हो गए हैं। अब इनसे छुटकारा संभव नहीं है।
यह जो बंदर संयुक्त हो गए मंत्र के साथ, यह कैसे संयुक्त हो गए? उसके मन ने आग्रह किया कि बंदर नहीं होने चाहिए और बंदर हो गए। उसके मन ने बंदरों से छूटना चाहा और बंदर मौजूद हो गए। उसका मन बंदरों से बचना चाहा और बंदर आ गए।
निषेध आकर्षण है, इनकार आमंत्रण है, रोकना बुलाना है।
हमारे चित्त की जो इतनी रुग्ण—दशा हो गई है, वह इस सीधे से सूत्र को न समझने की वजह से हो गई है। क्रोध को हम नहीं चाहते कि आए और फिर क्रोध बंदर बन जाता है और आने लगता है। सेक्स को हम नहीं चाहते कि आए और फिर वह आता है और चित्त को पकड़ लेता है। लोभ को हम नहीं चाहते कि वह आए, अहंकार को हम नहीं चाहते कि वह आए, फिर वे सब आ जाते हैं। और जिन—जिन को हम चाहते हैं कि परमात्मा आए, आत्मा आए, मोक्ष आए, उनका कोई पता नहीं चलता कि वे आएं। जिनको हम नहीं चाहते वे आते हैं और जिन्हें हम बुलाते हैं उनकी कोई खबर नहीं मिलती है। मन के इस सीधे से सूत्र को न समझने से सारी विकृति पैदा हो जाती है।
तो दूसरी बात ध्यान में रखने की है कि मन में क्या आए और क्या न आए, इसका कोई आग्रह लेने की जरूरत नहीं है। जो भी आए उसे हम देखने को तैयार हैं। जो भी आए, हमारी तैयारी उसे सिर्फ देखने की है। हमारा आग्रह नहीं है कि क्या आए और क्या न आए। हमारी कोई शर्त नहीं, हमारी कोई कंडीशन नहीं, अनकंडीशनल, बेशर्त हम मन को देखने के लिए तत्पर हुए हैं। हम सिर्फ जानना चाहते हैं कि मन अपनी वस्तुस्थिति में क्या है। हमारा कोई आग्रह नहीं है कि कौन आए और कौन न आए। हमारा कोई प्रयोजन नहीं है।