(संकलन एवं प्रस्तुति मैक्सिम आनन्द)
बर्ट्रेड रसेल ने एक बहुत प्यारी कहानी लिखी है। बर्ट्रेड रसेल ने थोड़ी ही कहानियां लिखी हैं। वे कोई कहानी—लेखक नहीं थे। लेकिन कुछ बातें कहनी हो और ऐसी हो कि दर्शन की भाषा में न कही जा सकें, तो कभी—कभी कहानियों की भाषा में कही जा सकती हैं। तो रसेल ने लिखी है एक कहानी। उस कहानी को नाम दिया है, एक धर्मगुरु का दुखस्वप्न— नाइटमेयर आफ ए थियोलाजियन।
एक धर्मगुरु रात सोया और उसने स्वप्न देखा कि उसकी मृत्यु हो गई है। तो वह बड़ा प्रसन्न हुआ। क्योंकि जीवन में कभी उसने कोई पाप नहीं किया था कि नर्क जाने का भय उसे लगे। न कभी झूठ बोला, न कभी बेईमानी की, न किसी का दिल दुखाया। निश्चित था कि स्वर्ग उसे मिलने वाला है। और दिन—रात ईश्वर का ही गुणगान किया। स्वाभाविक था कि उसके मन में गहरी आशा हो कि स्वर्ग के द्वार पर स्वयं ईश्वर ही मेरा स्वागत करेगा।
लेकिन जब वह धर्मगुरु स्वर्ग के द्वार पर पहुंचा, तो वह बहुत मुश्किल में पड़ गया। द्वार इतना बड़ा था कि उस धर्मगुरु को उसका ओर—छोर दिखाई नहीं पड़ता था। उसने बहुत ताकत लगाकर द्वार को पीटा। लेकिन उसको खुद भी समझ में आ गया कि इतना बड़ा द्वार है, यह मेरे हाथ की आवाज भीतर तक पहुंच नहीं सकती। तब उसका चित्त उदास भी होने लगा। क्योंकि सोचा था, बैंड—बाजे के साथ ईश्वर खुद मौजूद होगा। वहां कोई भी नहीं था। न मालूम कितने वर्ष उसे बीतते मालूम पड़ने लगे। चीखता है, चिल्लाता है। रोता है। छाती पीटता है, दरवाजा पीटता है।
फिर एक खिड़की खुली और एक चेहरा बाहर झांका। हजार आंखें थीं और एक—एक आंख जैसे एक—एक सूर्य हो! वह घबड़ाकर नीचे दुबक गया और चिल्लाने लगा कि थोड़ा पीछे हट जाएं। हे परम पिता, हे परमेश्वर, आपके प्रकाश को मैं नहीं सह सकता हूं। आप थोड़ा पीछे हट जाएं।
लेकिन उस आदमी ने कहा कि क्षमा करें। आप भूल में हैं। मैं सिर्फ यहां का पहरेदार हूं। मैं कोई परमेश्वर नहीं हूं। परमेश्वर का मैंने कभी कोई दर्शन नहीं किया। मैं सिर्फ यहां का पहरेदार हूं। परमेश्वर और मेरे बीच बड़ा फासला है। वहां तक पहुंचने की अभी मेरी सुविधा नहीं बन पाई।
तब तो वह धर्मगुरु बहुत घबड़ाया। एक कीड़े—मकोड़े की तरह दुबककर वह नीचे बैठ गया। और उसने कहा, फिर भी, आप अगर परमेश्वर तक खबर पहुंचा सकें या कोई उपाय करें, कहें कि मैं पृथ्वी से आया हूं फलां—फलां धर्म का मानने वाला, फलां—फलां धर्म का सबसे बड़ा धर्मगुरु। लाखों लोग मेरी पूजा करते हैं, लाखों लोग मेरे चरणों में गिरते हैं। मैं आ रहा हूं मेरी खबर कर दें। मेरा यह—यह नाम है।
तो उस द्वारपाल ने कहा कि क्षमा करें। आपके नाम का तो पता लगाना बहुत कठिन पड़ेगा। आपके संप्रदाय का भी पता लगाना बहुत कठिन पड़ेगा। आप किस पृथ्वी से आ रहे हैं, उसका नाम बताइए। उस धर्मगुरु ने कहा, किस पृथ्वी से! पृथ्वी तो बस एक ही है, हमारी पृथ्वी! उस द्वारपाल ने कहा कि आपका अज्ञान गहन है। अनंत—अनंत पृथ्वियां हैं इस विराट विश्व में। किस पृथ्वी से आते हो, इंडेक्स नंबर बोलो! तुम्हारी पृथ्वी का नंबर क्या है?
वह धर्मगुरु बड़ी मुश्किल में पड़ गया। किसी धर्मशास्त्र में भी पृथ्वी का कोई इंडेक्स नंबर दिया हुआ नहीं था। क्योंकि सभी धर्मशास्त्र इसी पृथ्वी पर पैदा हुए हैं। और यह मानकर चलते हैं कि यही पृथ्वी सब कुछ है।
धर्मगुरु को दिक्कत में देखकर उस द्वारपाल ने कहा कि अगर तुम्हें पृथ्वी का कोई नंबर याद न हो, तो तुम किस सूर्य के परिवार से आते हो, उसका इंडेक्स नंबर बोलो। किस सूर्य के परिवार से आते हो? तो कुछ खोज—बीन हो सकती है, अन्यथा बड़ी कठिनाई है।
धर्मगुरु इतना घबड़ा गया! सोचता था, उसकी भी खबर होगी परमात्मा को। बड़ा धर्मगुरु है। हजारों उसके मानने वाले हैं। सोचता था, मेरी खबर होगी। मेरे मंदिर, मेरे चर्च की खबर होगी। लेकिन यहां उस पृथ्वी का ही कोई पता नहीं। यहां उस सूर्य के लिए भी नंबर बताना जरूरी है। और तब भी उसने कहा कि अनेक वर्ष लग जाएंगे, तभी खोज—बीन हो सकती है कि आप कहां से आते हैं।
घबड़ाहट में उसकी नींद खुल गई, वह पसीने से तरबतर था। यह सपना देख रहा था।
आदमी अपने को केंद्र मान लेता है, नासमझी के कारण। आदमी अपने को मान लेता है कि मैं आधार में हूं नासमझी के कारण। अस्तित्व बहुत विराट है।