नियोगी जी प्रेरणा के समुद्र हैं, वे आज भी हमारे भीतर जिंदा है- डॉ. शैबल जाना

एक नज़र
नाम- डॉ शैबल जाना
जन्म- मिदनीपुर बंगाल
प्रेरक व्यक्तित्व- माता_पिता/ नियोगी जी
आदर्श वाक्य- गरीबों की मदद करो
जीवन का लक्ष्य- जहां हूं जीवन भर सेवाएं देता रहूं
जिले की समस्या- अभाव ग्रस्त स्वास्थ्य सुविधाएं/ बेरोजगारी
पसंदीदा स्थान- प्राकृतिक स्थल
पसंदीदा गीत- लोक गीत
खाली समय में- किताबें पढ़ना/ गाने सुनना

0 डॉ.साब, अस्पताल का नाम “शहीद अस्पताल” है इसके पीछे का इतिहास एवं अस्पताल निर्माण के संबंध में बताईए?

00 छत्तीसगढ़ माइंस श्रमिक संघ एवं छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा द्वारा इस अस्पताल को बनाया गया। अस्पताल का निर्माण 1983 में हुआ। जब संगठन बना था छत्तीसगढ़ माइंस श्रमिक संघ और इसके अगवा थे कामरेड शंकर गुहा नियोगी। उनके गिरफ्तार किए जाने के बाद मजदूरों ने सारे कामकाज रोककर आंदोलन प्रारंभ कर दिया था। जिसके चलते 2 जून 1977 में गोलीकांड हुआ। पहली रात गोलीकांड में 8 मजदूर शहीद हो गए थे, जबकि दूसरे दिन तकरीबन 1:00 बजे के लगभग गोली चली, जिसमें 3 मजदूर साथी शहीद हो गए थे। उस समय अस्पताल का निर्माण चल रहा था। गोली कांड में शहीद होने वाले श्रमिकों को ध्यान में रखकर “शहीद अस्पताल” का नामकरण हुआ था। जब संगठन बनाया गया तब छत्तीसगढ़ माइंस श्रमिक संघ। एक बड़ा उद्देश्य लेकर शुरू हुआ था अन्य संगठनों से इतर कि जो मजदूर खदान में 8 घंटे कार्य करते हैं। उसके लिए लड़ना नहीं है, बल्कि मजदूरों की बेहतरी के लिए, उनके जीवन स्तर को ऊंचा उठाने के लिए यूनियन कार्य करेगा। कामरेड नियोगी जी ने इसके लिए सबसे पहले ( शिक्षा ) स्कूलों का बंदोबस्त किया। जो मजदूर दारू पीते थे उन्हें रोकने शराब बंदी अभियान चलाया। युवाओं के लिए संगठन , महिलाओं के लिए संगठन बनाया गया। इसी तरह से स्वास्थ्य सुविधाएं सुविधाओं एवं खेलकूद के लिए भी उन्होंने संगठन बनाएं। आमतौर पर ट्रेड यूनियन ऐसा नहीं सोचता। नियोगी जी ने स्वास्थ्य को अहम मुद्दा मानते थे और किस तरह इसमें काम करना है हमेशा चिंतन करते रहे। एक महिला कामरेड कुसुम बाई को डिलीवरी के लिए भिलाई ले जाते समय रास्ते में मौत हो जाती है। उसके नाम पर मजदूरों ने एक प्रसूती भवन बनाने का निर्णय लिया जिसे शीघ्र पूरा कर लिया गया। शहीद अस्पताल 1982 में डिस्पेंसरी के रूप में शुरू हुआ, जबकि शहीद अस्पताल 1983 में बनकर तैयार हुआ।

0 अस्पताल का निर्माण कैसे किया गया। कोई सहायता उस समय बीएसपी से मिला था?

00मेहनतकशों का स्वास्थ्य के लिए, मेहनतकशों का अपना कार्यक्रम।। इस दो स्लोगन को लेकर नियोगी जी ने कार्य आगे बढ़ाया था। मेहनतकाशों का अपना कार्यक्रम, इसका मतलब है कि, जो भी इसमें कार्य है अस्पताल निर्माण में, इसमें मजदूरों का मेहनत एवं मजदूरों का ही पैसा लगेगा है ना कि किसी अधिकारी, ठेकेदारों से पैसा लिया जाएगा है। और ऐसा ही हुआ, यहां तक कि आज पर्यंत सरकार से शहीद अस्पताल ने किसी प्रकार की मदद नहीं ली है।

0 नियोगी जी के शहादत पश्चात् किस प्रकार की दिक्कतों से अस्पताल प्रबंधन को जूझना पड़ा?

00 नियोगी जी के शहादत के बाद बहुत सी टेक्निकल परेशानियां आई। छत्तीसगढ़ माइंस श्रमिक संघ के कुछ सिद्धांत रहा है। टेक्निकल समस्या थी कि कैसे अस्पताल का रजिस्ट्रेशन नर्सिंग होम एक्ट के तहत कराया जाए। जो भी आर्थिक लेनदेन जैसे कार्य होना था, उस समय डॉक्टरों, नर्सेस, अन्य स्वास्थ्य स्टाफ आदि का वेतन वगैरह में पारदर्शिता रहे। संगठन के लोगों द्वारा प्रतिमाह मीटिंग होती थी, जिसमें फैसला लिया जाता था किस भांति सिस्टम में, किस तरह बदली की जाए। फिर एक ट्रस्ट बनाया गया। मजदूरों का ट्रस्ट जिसमें 9 सदस्य है। वर्ष में 3 बार मीटिंग की जाती है। नियोगी जी के नहीं रहने के बाद मजदूरों की संख्या मैं कमी आ गई। बावजूद मजदूरों के कंट्रोल से ही अस्पताल संचालित हो रहा है। साथ ही नियोगी जी के सोच को यथासंभव बनाए रखने का प्रयास किया जाता है।

0 आज नियोगी जी होते तो स्थिति कितनी बेहतर हो सकती थी?

00 देखिए आज नियोगी जी होते तो अस्पताल की स्थिति कुछ अलग होती। किसी भी कार्य को एक मिशनरी के रूप में करते थे। उनके समय बहुत सारे लोग जुड़े हुए थे। अस्पताल की परिकल्पना उन्होंने ही किया था। उन्हीं का विचार है, उन्हीं की सोच है शहीद अस्पताल। वे रहते तो अस्पताल और ऊंचाइयों में होते। स्वास्थ्य व्यवस्था में परिवर्तन करना है उनके जीवन का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा था। उनका कहना था कि एक अस्पताल से कार्य तो नहीं हो सकता? और दूसरी जगहों में अस्पताल की स्थापना करना चाहते थे। उनके रहने से और अस्पतालों का आधारशिला रखी गई होती। दूसरे स्थानों पर। आज भी लोगों में नियोगी जी के प्रति यह सोच कायम है कि वे होते तो मजदूरों की स्थिति और बेहतर होती। हर आंदोलन में नियोगी जी भाग लिया करते थे। तो उनके जाने के बाद तो बहुत फर्क पड़ा है।

0 वर्तमान में मजदूरों का जो यूनियनें हैं, उनसे कितना सहयोग शहीद अस्पताल को प्राप्त होता है?

00 देखिए आज भी मजदूरों की भागीदारी है। मजदूर आज भी इसे अपना ही अस्पताल मानते हैं। वह चाहे राजनांदगांव बीएनसी मिल के मजदूर हो, भिलाई स्टील प्लांट के मजदूर हो। सभी यहां इलाज के लिए आते हैं। यहां मरीजों का इलाज बीपीएल कार्ड पर होता है। ज्यादातर गरीब लोगों का ही इलाज यहां किया जाता है। शहीद अस्पताल के प्रति मजदूरों, गरीबों की सोच है कि मेरा इलाज बेहतर होगा और पैसे भी कम लगेगा दूसरे अस्पतालों की अपेक्षा। जहां तक यूनियन के सहयोग की बात है तो उनसे भी सहयोग मिलता है, लेकिन न्यूनतम। नियोगी जी के बेटे का जो संगठन है उनका भी मदद मिलता है। सीटू ऑर्गनाइजेशन है उसका भी सहयोग मिलता है। मजदूरों का यहां इलाज बराबर हो रहा है अस्पताल चलाने के लिए किसी भी सहायता की अभी तक जरूरत नहीं पड़ी है।

0 मुक्ति गुहा नियोगी नगर पालिका अध्यक्ष होने के नाते शहीद अस्पताल को लेकर कितनी गंभीरता दिखाई थी?

00 असल में मुक्ति गुहा जी का हमेशा साथ तो है, लेकिन नगर पालिका परिषद अध्यक्ष होने के नाते उनसे किसी भी प्रकार की पहल शहीद अस्पताल के लिए नहीं किया गया। जबकि जनक लाल ठाकुर जी से जब पहली बार विधायक बने थे तो विधायक का जो वेतन उन्हें मिलता था वह सारे के सारे वेतन अस्पताल को समर्पित कर देते थे। संगठन के नाते जो उन्हें मिलता था उसी से उनका गुजर-बसर होता था। आज भी अस्पताल से जुड़े हुए हैं। अस्पताल की एक टीम है, उन्हें जब भी संगठन की आवश्यकता होती है वह उपस्थित रहते हैं।

0 डॉक्टर साहब यह बताइए दल्ली राजहरा नगर तब और अब में कितना फर्क पड़ा है?

00 दल्ली राजहरा नगर पहले और अब में बहुत फर्क पड़ा है।बड़ा अंतर आया है। पहले यह नगर आंदोलनों का गढ़ था, लेकिन अब उस किसम का आंदोलन नहीं होता। नियोगी जी के समय में पूरे भारत में दल्ली राजहरा मजदूर यूनियन का बड़ा नाम था। मजदूरों के संगठनों को एक दिशा देने का कार्य होता था। नियोगी जी का जो काॅसेप्ट था अर्ध मशीनीकरण का। वह आज भी अधूरा है। वे पहले देश का मुद्दा देखते थे, यह नहीं देखते थे कि अमेरिका में क्या चल रहा है, कि इंग्लैंड में क्या चल रहा है, कि रूस में क्या चल रहा है। वे देखते थे, कि हमारी क्या जरूरतें हैं? हमारी क्या समस्याएं हैं? और यहां की जनता क्या चाहती है? और जनता को पावर के रूप में देखना चाहते थे, साथ ही कैसे प्रोडक्शन बढ़ाया जाए। विशेषकर छत्तीसगढ़ में नियोगी जी एक महत्वपूर्ण कड़ी थे, लेकिन आज यूनियनें ऐसे नहीं रहा। अर्ध मशीनीकरण का जो काॅसेप्ट था वह गायब हो गया है। मेन पावर को कम कर दिया गया है। नियोगी जी का जो सोच था कि कैसे मजदूरों के पास पैसा हो, रोजगार हो। जब मजदूरों के पास पैसा होगा तो मार्केट सजेगा, कुछ खरीदेंगे। और जब आदमी बेरोजगार रहेगा? नौकरी नहीं रहेगा तो मार्केट का क्या होगा? जो महत्वपूर्ण है। एक तरह से यहां आंदोलन नहीं के बराबर हो गया है। इसके अभाव में लोगों को जोड़ने का सिलसिला टूट गया है, क्योंकि माइंस का काम कम हो सकता है । लेकिन दूसरे तरह का कार्य है, जैसे किसानों के लिए काम करना । ताकि उन्हें उनकी उपज का सही दाम मिले नियोगी जी के जाने के बाद जो जनआंदोलन होता था वह एक तरह से बंद हो चुका है । ब्रेक लग चुका है। अब वो तिलस्म नहीं रहा।

0राजहर नगर या फिर प्रदेश में जो समाज सेवी संस्थाएं हैं उनका क्या योगदान है शहीद अस्पताल के लिए?

00 बहुत से संगठन संपर्क में है। संपर्क तो करते हैं, लेकिन अस्पताल किसी तरह का आर्थिक सहायता नहीं लेता। लेकिन कभी मलेरिया, चिकुनगुनिया आदि अन्य मौसमी बीमारियों में ग्रामीण क्षेत्र में काम करना होता है, तो जो समाजसेवी संगठन है यहां तक कि सरकार से मिलकर कार्य शहीद अस्पताल के डॉक्टर से करते हैं। हाल ही में शिक्षा विभाग के साथ मिलकर इस कोरोनाकाल में कैसे पढ़ाई को जारी रखा जाए जैसे कार्य को किया है।

0 क्या अस्पताल प्रबंधन को सरकार से अनुदान प्राप्त होता है या कभी अनुदान लिया गया है?

00 नहीं, नहीं। आज तक से सरकार से अस्पताल प्रबंधन द्वारा कोई अनुदान या सहायता नहीं लिया गया है। हां सरकारी स्वास्थ्य उपक्रमों में जैसे अभी आयुष्मान भारत कार्यक्रम है, इसमें हमारा 50 फ़ीसदी इलाज किया जा रहा है। इसके पहले जो राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन है, गरीब आदमी है वह अपना पैसे से क्यों इलाज कराएगा जो उनका अधिकार है। उनका इलाज आयुष्मान भारत, राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना है यह सब उनके अधिकार के अंतर्गत है तो उनका यहां पर इलाज मिलता है। जो सरकार ने तय किया है। उसमें उनका इलाज हो रहा है।

0 शहीद अस्पताल में इलाज सरकारी दर से भी कम पैसों से किए जाते हैं यह कैसे संभव किया गया है और इसे कैसे नियोजित किया जाता है?

00 देखिए अभी तक तो मेंटेन हो ही रहा है, क्योंकि इतने सालों में 1983 से लेकर अभी तक दिक्कत नहीं हुई है। नियोगी जी के जाने के बाद कुछ दिक्कतों का सामना करना पड़ा था, लेकिन अब ऐसा नहीं है। अब अस्पताल प्रगति कर रहा है। यहां पर इलाज करने वाले डॉक्टरों को भी संतुष्टि है और मरीजों को तो है ही। यहां स्टाफ भी न्यूनतम तनख्वाह लेकर काम करते हैं।इससे भी पैसे की बचत होती है। नियोगी जी के सोच के अनुरूप समस्त कर्मचारी सेवाएं दे रहे हैं।

0आप कितने सालों से यहां पर सेवाएं दे रहे हैं, विस्तार से बताइए?

00 ( हंसते हुए ) आज आप यहां पर बैठे हैं पहले ऐसा कुछ भी नहीं था। शुरुआती दौर में यहां आए थे, इधर कुछ भी नहीं था मैदान थे। स्ट्राइक ( हड़ताल ) के दौरान ही अस्पताल बनाने की परिकल्पना कर ली गई थी। कि मजदूरों का एक अस्पताल हो। जो कि बना नहीं था उसी वक्त हम लोग आ गए थे और संगठन से कैसे जुड़ कर इस कार्य में महती भूमिका निभाई जाए यह सोचते थे। आए दिन कई तरह की समस्याओं से निपटना होता था। बहुत बार मजदूर आंदोलन हो जाते थे तो जो निर्माण का कार्य जो आबाध गति से चलते थे। रुक जाता था। हड़ताल में रहने के चलते मजदूरों को पैसा नहीं मिलता था। तो निर्माण सामग्री का टोंटा हो जाता था। उस वक्त डॉक्टरों के रहने-खाने पीने का कोई बंदोबस्त भी नहीं था। ठिकाना ही नहीं था। एक मजदूर की झोपड़ी में रहने का बंदोबस्त किया गया था। वहां हम 7-8 डॉक्टर रहते थे इस बीच हमने यहां पर कार्य शुरू किया।संगठन के पास पैसा भी नहीं था। हमें पैसा भी नहीं मिलता था।लेकिन संगठन का एक नेता ने कह दिया डाक्टरों के लिए खाना कलीराम नामक मजदूर बनाएगा। मजे की बात है कि कलीराम कभी खाना नहीं बनाया था। तो उसे खाना बनाने निमित्त किया गया था। दो बार खाना मिल जाता था। फिर धीरे-धीरे एक क्वार्टर बनाया गया। इसके पहले कई सालों से 7-8 डॉक्टर एक कुली कमरे में रहकर कार्य करते रहे जो खपरैल का झोपड़ी नुमा घर था। सिर्फ दाल भात बनाकर हम लोग सेवा देते थे। उस वक्त दिमाग में हमारा है यह नहीं था कि हम डॉक्टर हैं। हमें ऐसी सुविधाएं चाहिए? कि हम ऐसे रहेंगे तो काम करेंगे? जैसे मजदूर रहते हैं, वैसे हम लोग भी रहते थे। बहुत मर्तबा मीटिंग के में यह तय हुआ कि जैसे यहां पर काला दाल जो अच्छा नहीं लगता था उसे चेंज कर दिया जाए लेकिन वह नहीं हो सका। एक इंजीनियर था अरविंद गुप्ता तब मेश में काम करने वालों ने कहा कि इतना पैसा नहीं और इससे अच्छा दाल नहीं खरीद सकते। फिर वही दाल भात खाते समय बीतता गया। उस वक्त डे- नाइट ड्यूटी कोई बात ही नहीं थी। मजदूरों के बीच में जाना है। इलाज करना है। उस समय था मितान एवं विकास नामक पत्रिका निकालते थे। कई सालों बाद डॉक्टरों का पैसा मिलना शुरू हुआ। सभी स्टाफ का पैसा मिलना शुरू हुआ। और आज स्थिति बेहतर है आगे और भी अच्छा होगा।

0कोविड-19 को लेकर आप क्या सोचते हैं और यह भी कि शहीद अस्पताल कोविड सेंटर नहीं है इसके क्या कारण है?

00 देखिए, कोविड-19 इसमें हमने शुरू से मास्क लगाना है, फिजिकल डिस्टेंसिंग रखना है। पहले जो अपना स्टाफ है उनके भीतर जो कोविड को लेकर डर है उस डर को खत्म करना था। फिर मरीजों के इलाज का कोई दिक्कत नहीं था। हमें पता था कि को कोविड आया है एक दिन में जाने वाला नहीं है। मैं बताना चाहूंगा कि बालोद जिला अस्पताल से पहले ही हमारा आइसोलेशन सेंटर तैयार था। टेस्टिंग अस्पताल में शुरू कर दिया था। बावजूद हम शहीद अस्पताल को कोविड-19 अस्पताल करने के पक्ष में नहीं रहा। ऐसा लगता है कि कोविड-19 में जो मौत हो रही है, वह कोविड-19 से कम, अन्य बीमारी से अधिक मर रहे हैं। ऐसे में उनका इलाज बेहद जरूरी है। आजकल सरकार जो है सरकारी अस्पतालों को या फिर निजी अस्पताल है सभी को कोविड-19 ताल में व्यस्त कर दिए हैं, लेकिन जो अन्य बीमारियों से ग्रसित है उनका इलाज नहीं हो रहा है, जैसे डायबिटीज है के मरीज हैं, टीबी के मरीज हैं , किडनी के मरीज है, ब्लड प्रेशर के मरीज हैं इलाज नहीं मिला है। हाई बीपी ,डायबिटीज लेवल कौन देखेगा? खराबी है कौन देखेगा? कोविड आएगा तो हमें क्या करना है, उन्हें ज्यादा सावधान रहना है जो उम्रदराज हैं। और एक बात एक बार कोविड-19 और ठीक हो चुका है उन के माध्यम से क्वांरेटाइन सेंटर चलाया जाए उन्हें दोबारा होने के चांस कम है और ऐसे ही डॉक्टरों की जिम्मेदारी दे देना चाहिए जिसे कोविड हुआ था। यह सरकार से सिफारिश की थी हमने। इस दिशा में अभी बिलासपुर में काम शुरू हुआ है। बालोद में भी ऐसा हो सकता।

0 यह अंचल मलेरिया से दो तीन मौत हो चुकी है इसके पीछे कारण क्या है?

00 आप को शायद पता है या नहीं, सबसे पहले छत्तीसगढ़ में मलेरिया उन्मूलन अभियान में शहीद अस्पताल एवं दूजा गनियारी स्थित अस्पताल ने इसे लेकर काफी कार्य किया है। वर्ष 2000 के आसपास अंचल में मलेरिया का प्रतिशत बहुत अधिक था। इसे लेकर हमने मिलकर मास्टर प्लान बनाया और जिसमें शासकीय स्वास्थ्य कर्मचारियों, अधिकारियों को हमने प्रशिक्षित किया। मैदानी इलाकों में मितानीनों को जोड़कर मलेरिया को शिकस्त दी थी। लेकिन इस साल मलेरिया का ग्राफ बढ़ा है। सिर्फ यहां बढ़ा है ऐसा नहीं है। असल में एमपी पैरासाइटिक फैक्टर के खिलाफ हमारा जो अभियान था सभी कार्यक्रम कोविड में चला गया है। यहां तक कि इससे तीन चार मौत भी हो चुकी है। कोविड के चलते मलेरिया से पूरा ध्यान हट गया है।

0 नियोगी जी से आप कैसे प्रभावित हुए साथ ही उनसे किसी प्रेरणा के संबंध में बताईए?

00 नियोगी जी ऐसे व्यक्तित्व थे , जिनसे हर बार कुछ न कुछ नया सीखने को मिलता था। वे प्रत्येक कार्य को नये ढंग से सोचते थे। हमें भी कहते थे रोज़ नया सोचों, नया कुछ करने का सपना देखो। उसमें सफलता- विफलता न देखो। उनसे दूसरी महत्वपूर्ण प्रेरणा या सीख मिली है कि कैसे आम आदमी के साथ सहजता से संपर्क बना लेना है लोगों के साथ उनका प्रेम करना। अंचल में लोगों के बीच नियोगी जी के प्रति अपनत्व का भाव आज भी है। वे प्रेरणा के समुद्र हैं। हम लोग थ्योरिकल सोचते थे हमेशा, लेकिन प्रैक्टिकल करना उन्हीं से सीखने इलाज, समय पर मुहैय्या कराने की दिशा में काम करें।

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