लोक असर समाचार बालोद
बालोद जिले में नवपदस्थ वन मंडलाधिकारी आयुष जैन ने लोक असर से बातचीत में हाथियों से संबंधित जानकारी के साथ ग्रामीणों को एहतियात बरतने की सलाह दी है। उल्लेखनीय है कि पिछले कुछ महीने पहले डौंडी ब्लाक में काफी आतंक मचाया था। जन धन को नुकसान पहुंचाने में कसर नहीं छोड़े थे। हाथियों के दल के आगमन से लेकर अभी तक किसी भी प्रकार से नुकसान होना नहीं बताया जा रहा है।
हाथियों के संरक्षण को लेकर वन विभाग द्वारा क्या उपाय किए जा रहे हैं अर्थात् क्या योजना है?
जहां तक हाथियों की संरक्षण की बात है, तो हमें देखना होगा कि हाथी किन-किन समस्याओं से जूझ रहा है। इन दो वर्षों के भीतर जो भी हादसा हुई है। जैसे कि विद्युत तार से टकराकर हाथी की मौत हो गई या फिर जहर दिए जाने से अथवा पटाखों की धमाकों से हाथी विचलित हुए है जो कि मनुष्य द्वारा की जाती है। पहले उनसे उसे बचाना जरूरी है। ताकि किसी प्रकार से हाथी को नुकसान ना हो। इस ओर विभाग गंभीर हैं। लेकिन नेचुरल तौर पर मसलन किसी बीमारी से या आपस में लड़कर उन्हें नुकसान होता है। तो उसे नहीं रोका जा सकता।
मानव और जानवरों के मध्य जो संघर्ष है उसे कैसे रोक सकते हैं?
वर्तमान स्थिति को देखते हैं तो 1990 से लेकर अब तक हाथियों की आबादी में वृद्धि हुई है। और जंगल का क्षेत्र कम होते जा रहा है। इस स्थिति में कैसे सामंजस्य बिठाया जा सके इस ओर ध्यान दिया जाता है। किसी भी तरह से हाथी रिहायशी क्षेत्र में ना आने पाए।
कहीं बालोद जिले का वातावरण हाथियों के लिए अनुकूल तो नहीं है। उनके बार बार लौट आने के पीछे क्या कारण है?
इसके लिए थोड़ा पीछे जाना होगा। आज की अपेक्षा छत्तीसगढ़ में पहले अधिक क्षेत्र में जंगल हुआ करता था। अध्ययन में यह पाया गया है कि हाथियों में लाइव लांग टाइम मेमोरी (स्मरण शक्ति लंबे समय तक) होती है और वे उसके मुताबिक विचरण करते हैं। हो सकता है बालोद जिले के वनांचल में बीते 40-50 साल पहले हाथी यहां पर रहे हो, तो उनको वह स्मरण यहां तक खींच लाता है और भ्रमण करते रहते हैं।
हाथियों को मार नहीं सकते ऐसे में उन्हें बाहर ले जाने की क्या तैयारी है?
देखिए उन्हें बाहर भगाने या अन्यत्र ले जाने की बात नहीं होती। बल्कि उसके साथ सौहार्द्तापूर्वक कैसे रह सकते हैं। यह महत्वपूर्ण होता है।
क्या बालोद जिले के वनांचल में रिजर्व फॉरेस्ट बनाया जा सकता है?
हमें पहले तो यह देखना होगा कि हाथियों की संख्या कितनी है? साथ ही वह कितने समय तक यहां पर रहते हैं? मेरे ख्याल में यहां पर बहुत लंबा समय तक हाथियों का दल रहा नहीं है। ऐसे में बालोद क्षेत्र में रिजर्व फॉरेस्ट बनाने की जरूरत हो ऐसा नहीं मानता। क्योंकि हाथियों की खुराक की बात करें तो एक हाथी एक दिन में डेढ़ सौ किलोग्राम खाना खाता है। इसलिए हाथी अनवरत स्थान में बदलते रहता है।
हाथियों के बार बार लौट आने के पीछे क्या कारण देखते हैं?
कोई भी जंगली जानवर हो उनके बार-बार लौटाने के पीछे मुख्यतः दो तीन कारण होते हैं, सुरक्षित जगह, उनका भोजन और पानी। और संभवतः यह तीनों चीजें यहां पर मिलती हो।
चूंकि हाथियों का दल जिला में पहुंच चुका है ऐसे में विभाग सुरक्षा की लिहाज़ से क्या कर रहा है?
विभाग की ओर से अनिवार्य रूप 24 घंटे की निगरानी की जा रही है। आस-पास के गांव में मुनादी करा दी गई है, ताकि कोई अप्रिय घटना ना हो।
हाथियों का दल इस बार किस दिशा से पदार्पण किया है?
इस बार हाथियों का दल राजनांदगांव जिले की ओर से पहुंचा है। जानकारी के मुताबिक हाथियों का झुण्ड महाराष्ट्र से वापस लौटते हुए वन परिक्षेत्र दल्ली राजहरा के कक्ष क्रमांक – 167RF परिसर नलकसा वनमंडल बालोद में आ चुके है, जो लगातार आगे बढ़ रहे हैं, जिसके चलते नलकसा, नारंगसुर, हिड़कापार, शेरपार में अलर्ट जारी कर दिया गया है। वन मंडलाधिकारी आयुष जैन ने बताया कि
लगभग 18 से 20 हाथी झुण्ड में नलकसा के जंगल में देखे गए है। जिसकी सूचना वन विभाग ने जारी की है। साथ ही आसपास के ग्रामीणों को हिदायत दी गई है कि हाथी के झुण्ड से दूर रहे, फटाके वगैरह फोड़कर उन्हें उग्र होने के लिए न उकसाये।