प्रोफेसर के.मुरारी दास
लोक असर समाचार रायपुर / बालोद
बीपीएसएस के शिविर में आर एस एस का शाब्दिक अर्थ देश की जनता को संघ द्वारा बताया गया राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ. पर सच यह नहीं है. इसका मूल अर्थ होता है-रेसियल सुपरमेटिव सिस्टम. अर्थात एक ऐसा सिस्टम जो खास जाति या वर्ग द्वारा देश की जनता को स्थाई रूप से गुलाम बनाए रखने के निमित्त किया गया . इसकी दो शाखाएं हैं. एक कांग्रेस जो सॉफ्ट और धर्मनिरपेक्षता का मुखौटा लगाया है तो, इसकी दूसरी शाखा है भाजपा ,शिवसेना ,बजरंग दल, विश्व हिंदू परिषद, आदि आदि. संघ जो स्वयं कभी चुनाव नहीं लड़ते पर इन्हीं की दो शाखाएं हैं कांग्रेस और भाजपा जो चुनाव लड़ कर देश की सरकार बनाने में अपनी अहम भूमिका निभाती रही है . जिससे संघ आज काफी मजबूत बना हुआ है.
इन्हीं बात को ध्यान में रखते हुए गत कुछ वर्षों से एक गैर राजनीतिक समानांतर संस्था आर एस एस के तर्ज पर काम कर रही है. जिसका नाम है बी पी एस एस . अर्थात भारतीय पिछड़ा शोषित संगठन. वर्तमान में देश के लगभग 17 राज्यों में यह संगठन अपना विस्तार कर पैर पसार चुकी है. जिसका मकसद देश के पिछड़े तबकों में बुद्ध, फूले, पेरियार, अंबेडकर, कबीर और कर्मा जैसी देश के पिछड़ी जाति व जनजाति समाज में जन्मे महापुरुषों के विचारों को भारतीय जनमानस तक प्रचार करना और इस वर्ग के लोगों को बौद्धिक आंदोलन करने के लिए प्रेरित करना प्रमुख रहा है.
इस बात को लेकर छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के वृंदावन सभागार में बीपीएसएस का एक दिवसीय राष्ट्रीय चिंतन शिविर 13 मई 2022 को संपन्न हुआ. जिसका उद्घाटन उ.प्र. सरकार के प्रमुख सचिव रहे सत्यजीत ठाकुर ने किया .
इस मंच में देश के विभिन्न राज्य सरकारों के पूर्व प्रमुख सचिव,आई.ए.एस,आई.पी.एस. आई.एफ.एस.,रिटायर्ड जज, प्राध्यापक, समाजसेवी एवं वरिष्ठ मीडिया कर्मी मिलकर आने वाली समय के भावी रणनीति बनाने उसे संचालित करने वह संघ में लागू करने जैसे भविष्य के विषयों की भूमिका के निर्वहन पर अपनी अहम भूमिका दर्ज कराई .
सत्यजीत ठाकुर ने कहा आज के समाज की सबसे बड़ी कमियां यह है कि, यह देश एक खास वर्ग के हाथों में कैद है जिसके लिए हमें लंबी लड़ाई लड़ने की आवश्यकता है.
मैट्स यूनिवर्सिटी के कुलपति प्रोफेसर के पी यादव ने कहा - वर्तमान में इंसान को इंसान बनने से रोकने का कार्य बेशक सांप्रदायिक शक्तियां कर रही है जो अधिकांशत:अंग्रेजी सरकार के दौरान पैदा हुई. 1902 में बंगाल का विभाजन तथा 1906 में मुस्लिम लीग की स्थापना इस बात का गवाह है. आजादी पश्चात अनेक राजनीतिक दलों का भी उदय इसी प्रकार हुआ जिसका आधार धार्मिक रहा जबकि हमारा आधार जाति विहीन धर्म से ऊपर उठकर मानवता रहा है. उन्होंने कहा अपवाद स्वरूप कुछ घटनाओं को यदि छोड़ दिया जाए तो भारत के प्राचीन इतिहास में हिंसा के लिए बहुत कम ही स्थितियां देखने को मिलता है. क्योंकि हिंदू मुस्लिम दोनों ने मिलकर स्वाधीनता की लड़ाई लड़ा है.
विभागीय जांच आयुक्त आईएएस दिलीप वासनिक ने कहा आज शासकीय नौकरियां खत्म हो रही है. प्रशासनिक पद पर संवैधानिक ढंग से भर्ती न करते हुए लेटरल एंट्री के माध्यम से हो रही है राष्ट्रीय मीडिया अब राष्ट्रीय नहीं बल्कि सरकार की गुलामी करने का माध्यम बन चुका है, ऐसी स्थिति में आज सोशल मीडिया ही अब हमारे लिए सही विकल्प हो सकता है, जिसे हमें सोच समझकर उपयोग करना होगा।
सत्यशोधक समाज यवतमाल महाराष्ट्र के डॉ ज्ञानेश्वर भोरे ने कहा-भारत में ओबीसी की गणना अब तक नहीं की जा रही है जबकि, हमारी आबादी देश की आधी आबादी से भी अधिक है।अब तक सभी सरकारें हमें वोट बैंक बना कर रखा है। अब तो आपकी भारतीय नागरिकता भी खतरे में दिखाई जान पड़ते हैं क्योंकि, सरकार की दृष्टि में आप मात्र एक ग्राहक हैं।
बिहार के उमेश राय ने कहा मुसलमानों के नाम पर आज हम सब पर चौतरफा हमले हो रहे हैं, पिछले 2000 साल से शूद्रों को शिक्षा के अधिकार से वंचित रखा गया और आज जब संविधान ने शूद्रों को शिक्षा के अधिकार के बदौलत आगे बढ़ने का अवसर मिला तो संविधान को ही खत्म किया जा रहा है, वहीं सत्ता में शुद्र ना जा सके इसलिए तरह-तरह के न सिर्फ हथकंडे अपना रहे हैं बल्कि, भगवाकरण के लिए भी प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से प्रेरित कर भगवा राजनीति कर रहे हैं.
बिहार के ही एडवोकेट गणपति मंडल ने कहा- ना कोई स्वर्ग है और न हीं कोई नर्क
यदि मंडल कमीशन की 40 अनुशंसाएं लागू कर दी जाती तो इसी धरती पर आप को स्वर्ग दिखाई पड़ता आज जो मूल निवासी अपने प्लेटफार्म को छोड़कर ब्राह्मणों की पार्टी में ही सुख की तलाश में लगे हैं वे सबसे बड़े देशद्रोही हैं आज यदि आप संगठित नहीं हुए तो 2024 में आप बोलने योग्य भी नहीं रह पाएंगे क्योंकि, मनु युग की वापसी के संकेत मिलने शुरू हो चुके हैं।
रायपुर के विष्णु दत्त बघेल ने सांप्रदायिकता को परिभाषित करते हुए कहा जो इंसान को इंसान से लड़ाता है वही सांप्रदायिक होता है .आज मनुवाद को किसी इस्लाम या इसाई से डर नहीं बल्कि उन्हें डर है कि कहीं बुद्ध का शासन इस धरती पर पुनः न आ जाए इसलिए वे सांप्रदायिकता का नित नए नए ताना-बाना बुन रहे हैं. हम आज की नई पीढ़ी को इस बात की जानकारी दे रहे हैं इसलिए भी सांप्रदायिकता भड़की है.
22: विषयों में मास्टर की डिग्री प्राप्त हरियाणा के राम अवतार सिंह ने लेटरल एंट्री पर कहा कि- सन 1860 में लार्ड मैकाले ने हमें आईपीसी का सेक्शन दिया जिसमें हमारी गुलामी से मुक्ति का संदेश है परंतु लेटरल एंट्री के माध्यम से चोर दरवाजे से शासन चलाने की कुछ प्रक्रिया शुरू हो चुकी है जिसमें एससी एसटी और ओबीसी के लिए लेटरल एंट्री में कोई स्थान नहीं मनुवादियों के इसी प्रपंच को समझने की आवश्यकता है.यह भी आर एस एस का एक खुला षड्यंत्र है.
जिन वक्ताओं ने अपने उद्बोधन में सामाजिक परिवर्तन वादी और विज्ञान वादी विचार रखें वे सब अपने आप में आज के समयानुकूल सटीक होने के साथ समसामयिकव ज्ञान वर्धक थे.
इस रिपोर्टिंग के लिखे जाने तक जिन लोगों ने शोध पूर्ण अपनी बातें रखी उनमें एस.जी.पाचनवार (नांदेड महाराष्ट्र), राजवीर सिंह (सीतापुर बिहार), बैकुंठ नाथ यादव (कानपुर उत्तर प्रदेश) ,गोकर्ण लाल मौर्य (उत्तर प्रदेश),राकेश कुमार राव (उत्तर प्रदेश), जग्गी लाल यादव (लखनऊ उत्तरप्रदेश),लालजी यादव (मुंबई महाराष्ट्र), शिव शंकर एकलव्य (हरियाणा), आर.के. पाल( पंजाब),रामाशंकर राय दिल्ली,) जुनैद आलम (बक्सर बिहार), मोहम्मद सुलेमान (बक्सर बिहार) रामनाथ यादव (बेगूसराय), नंद कुमार बघेल (रायपुर) सहित कोई 20 प्रमुख वक्ताओं ने विभिन्न विभिन्न पिछड़ों के मिशन पर अपने सारगर्भित विचार रखें.
जिन अन्य लोगों की यहां प्रमुख उपस्थिति थी उनमें (सीबीआई जज) प्रभाकर ग्वाल, रामलाल गुप्ता, प्रोफ़ेसर के.मुरारी दास, (लोक असर के संपादक) दरवेश आनंद, (यादव शक्ति पत्रिका के संपादक) राजवीर यादव (अधिवक्ता )जन्मेजय सोना, (आईएएस) बी.एस रावटे, प्रोफेसर पी एल आदिले, मणिलाल राजवाड़े ,लक्ष्मी बनर्जी ,संदीप नापित ,मिथुन बंजारे, राधेश्याम ध्रुव , डॉ कल्पना सुखदेवे, सुनील गणवीर, रतन गोंडाने, राम लाल गुप्ता सहित अनेक प्रबुद्ध लोग उपस्थित थे.
कार्यक्रम का संचालन (हिंदी मासिक तथागत पत्रिका के संपादक) डॉक्टर आर.के. सुखदेवे ने किया.