जानना बहुत जरूरी है कि स्थानीय स्तर पर भर्ती जरूरी क्यों…? जब सुप्रीम कोर्ट जैसे शीर्ष अदालत में आरक्षण पर उपवर्गीकरण जैसे फैसला आ रहा है… : आर एन ध्रुव

(लोक असर के लिए आर एन ध्रुव का सामयिक लेख)

(लोक असर समाचार धमतरी)

आज जब सुप्रीम कोर्ट जैसे शीर्ष अदालत में अनुसूचित जाति , अनुसूचित जनजाति वर्गों के लिए आरक्षण पर उपवर्गीकरण जैसे फैसला आ रहा है…

ऐसे समय में स्थानीय स्तर पर भर्ती के बारे में जानना बहुत जरूरी है…
यह ऐसा भर्ती प्रक्रिया जिसमें जिला/संभाग स्तर पर आरक्षण रोस्टर तैयार कर स्थानीय स्तर के मूल निवासी अनुसूचित जाति, जनजाति, पिछड़ा वर्ग, अनारक्षित सबको तृतीय एवं चतुर्थ वर्ग के पदों में नियुक्ति हेतु शासकीय सेवाओं में स्थान दिया जाता है।

इसका उद्देश्य:–
स्थानीय स्तर के गोंड, कंवर हलबा,उरांव आदि से लेकर ब्राह्मण, वैश्य ,क्षत्रिय आदि तक सभी वर्गों के मूल निवासियों को शत– प्रतिशत रोजगार के अवसर प्रदान कर उनकी भागीदारी सुनिश्चित करना है।

इसके फायदे…
अलग-अलग क्षेत्र में अलग-अलग बोली– भाषा, खान-पान, रहन-सहन शिक्षा का स्तर एक समान नहीं है। जैसे रायपुर, दुर्ग, बिलासपुर शहरों में प्राइवेट स्कूलों से सर्व सुविधा युक्त क्लासरूम, समुचित संसाधन के साथ पढ़ने वाले बच्चों का स्तर बीजापुर, बस्तर, दंतेवाड़ा, सुकमा के बच्चे जो घर परिवार में तेंदूपत्ता, चार– चिरौंजी बीनकर घर की खेती कामों में हाथ बंटाकर सरकारी स्कूलों में पढ़ने वालों से बेहतर होगा। इसका मतलब यह है कि सर्व संसाधन युक्त बच्चे यदि 85% अंक लाते हैं और घर के खेती किसानी में हाथ बंटाकर बच्चे 50% अंक लाते हैं वह बच्चा शहर के 85% अंक लाने वालों से बेहतर है। अब यदि राज्य स्तर पर चपरासी, शिक्षक, पटवारी आदि की भर्ती होगी तो ये 85% अंक वाले बच्चे इन क्षेत्रों में आकर पूरी नौकरी प्राप्त कर लेंगे। और 50% अंक लाने वाले बच्चे अपने आप को ठगा महसूस करेगा और ये बच्चे कभी भी शासकीय सेवाओं में भागीदारी सुनिश्चित नहीं कर पाएंगे। जिसके कारण हम सबको कई तरह के गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ेगा। बेरोजगारी बढ़ने से खास तौर पर आदिवासी वर्ग में इसका बड़ा प्रभाव पड़ रहा है।

अब यदि उदाहरण के तौर पर बीजापुर जिले में आदिवासी समाज की जनसंख्या 90% है तो स्थानीय भर्ती होने पर 100 में 90 बच्चे आदिवासी समाज के बीजापुर जिले के ही चयनित होकर आएंगे। जो स्थानीय बोली– भाषा, भौगोलिक स्थिति के जानकार होंगे। यदि राज्य स्तर पर भर्ती होगा तो 32% के हिसाब से चयन होकर उस जिले में आदिवासी समाज के युवाओं की नियुक्ति होगी। लेकिन इसमें कोई गारंटी नहीं है कि बीजापुर जिले के बच्चे का चयन हो जाए।

निष्कर्ष:–
आदिवासी क्षेत्र में यदि हम आदिवासी समाज को मुख्य धारा से जोड़कर समाज के अस्तित्व को बचाए रखना है , स्थानीय बोली– भाषा, संस्कृति को बचाए रखना है तो हमें स्थानीय स्तर पर युवाओं को रोजगार के अवसर देना ही होगा। स्थानीय स्तर पर भर्ती होने से उन जिलों के निवासियों की शत– प्रतिशत भागीदारी सुनिश्चित होने से तरह-तरह की घटनाओं पर विराम लगेगा। सुविधा विहीन, अभावों में पढ़ाई लिखाई करने वाले बच्चों के लिए जब स्थानीय स्तर पर भर्ती शुरू हो जाएंगे तो सुप्रीम कोर्ट का फैसला जिसमें अनुसूचित जाति, जनजाति वर्ग को आरक्षण में उपवर्गीकरण जैसे निर्णय की जरूरत नहीं पड़ेगी।

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