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balod/ charama
{लोक असर के लिए यह विशेष लेख ईश्वर छाटा द्वारा प्रेषित }
विकलांगता समाज में एक महत्वपूर्ण सामाजिक समस्या है, जो लाखों लोगों को प्रभावित करती है। विकलांगता शारीरिक, मानसिक या मानसिक-शारीरिक असामान्यता के कारण उत्पन्न होती है, जिससे व्यक्ति को अपनी सामान्य जीवन क्रियाओं में कठिनाई होती है। विकलांग व्यक्ति भी समाज के अन्य व्यक्तियों की तरह समान अधिकार, सम्मान और अवसर पाने के हकदार होते हैं, लेकिन अक्सर समाज में भेदभाव और असमानता का सामना करते हैं। विकलांगों की समस्याएँ न केवल शारीरिक रूप से, बल्कि मानसिक और सामाजिक दृष्टिकोण से भी गहरी और महत्वपूर्ण होती हैं।
शारीरिक और मानसिक समस्याएँ
विकलांग व्यक्तियों के लिए सबसे बड़ी समस्या उनकी शारीरिक और मानसिक स्थिति होती है। शारीरिक विकलांगता में अंगों का अक्षम होना, मोटर कौशल की कमी, दृष्टिहीनता, श्रवण दोष, आदि शामिल हैं। मानसिक विकलांगता में सोचने-समझने की क्षमता में कमी, मानसिक विकास में समस्या या मानसिक रोग हो सकते हैं। इस प्रकार की विकलांगता किसी भी व्यक्ति के जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित कर सकती है। इसके कारण वह सामान्य जीवन यापन में कठिनाइयों का सामना करते हैं, जैसे चलने-फिरने में परेशानी, पढ़ाई-लिखाई में कठिनाई, या दूसरों से संवाद स्थापित करने में समस्याएँ।
सामाजिक भेदभाव और उपेक्षा
विकलांगता के कारण विकलांग व्यक्तियों को समाज में भेदभाव और उपेक्षा का सामना करना पड़ता है। समाज में अक्सर उन्हें नकारात्मक दृष्टिकोण से देखा जाता है। बहुत से लोग विकलांग व्यक्तियों को सक्षम और स्वतंत्र रूप से जीवन जीने के लिए योग्य नहीं मानते, जिससे उनका आत्मविश्वास कमजोर हो जाता है। विकलांग व्यक्ति अपने परिवार, दोस्तों और समाज में खुद को अलग-थलग महसूस करते हैं। कई बार उन्हें सामाजिक गतिविधियों से बाहर रखा जाता है और उनके लिए समाज में समावेशी स्थान नहीं होते।
शिक्षा और रोजगार की कमी
विकलांग व्यक्तियों के लिए शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में बड़ी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं। कई स्कूलों और विश्वविद्यालयों में विकलांग बच्चों के लिए समावेशी शिक्षा की सुविधा नहीं होती। विकलांग व्यक्तियों के लिए विशेष विद्यालयों की कमी भी एक प्रमुख समस्या है। इसके परिणामस्वरूप, विकलांग बच्चे शिक्षा के अधिकार से वंचित रहते हैं।
वहीं, रोजगार के क्षेत्र में भी विकलांग व्यक्तियों को समान अवसर नहीं मिलते। कई कंपनियाँ और संस्थान विकलांग व्यक्तियों को नियुक्त करने से बचते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि वे काम नहीं कर सकते। विकलांग व्यक्तियों के लिए सरकार ने आरक्षण और विशेष योजनाएँ बनाई हैं, लेकिन निजी क्षेत्र में उन्हें पर्याप्त अवसर नहीं मिल पाते। इससे उनका आर्थिक जीवन प्रभावित होता है और उन्हें आत्मनिर्भर बनने में कठिनाई होती है।
स्वास्थ्य देखभाल की समस्याएँ
विकलांग व्यक्तियों के लिए स्वास्थ्य देखभाल सुविधाएँ अक्सर अपर्याप्त होती हैं। विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में विकलांग व्यक्तियों को चिकित्सा सहायता और पुनर्वास सेवाएँ मिलना कठिन होता है। अधिकांश विकलांग व्यक्तियों को विशेष उपकरणों की आवश्यकता होती है, जैसे व्हीलचेयर, सुनने की मशीन, दृष्टिहीनता के लिए ब्रेल डिस्प्ले, आदि, जो महंगे होते हैं। इसके अलावा, इन उपकरणों की उपलब्धता और गुणवत्ता में भी कमी होती है।
परिवहन और सार्वजनिक स्थानों की असुविधाएँ
विकलांग व्यक्तियों के लिए सार्वजनिक परिवहन और सार्वजनिक स्थानों में सुविधाओं की कमी एक बड़ी समस्या है। अधिकतर सार्वजनिक वाहनों में विकलांग व्यक्तियों के लिए विशेष व्यवस्था नहीं होती। रैंप, लिफ्ट, और विकलांगों के लिए अलग शौचालय जैसी बुनियादी सुविधाओं का अभाव है। इससे विकलांग व्यक्ति अपने दैनिक कार्यों को करने में बाधित होते हैं और उनके जीवन में असुविधा उत्पन्न होती है।
मानसिक और भावनात्मक समस्याएँ
विकलांगता केवल शारीरिक या मानसिक समस्याओं तक सीमित नहीं होती, बल्कि इससे व्यक्ति की मानसिक और भावनात्मक स्थिति भी प्रभावित होती है। विकलांग व्यक्ति समाज में भेदभाव और अस्वीकार के कारण अक्सर मानसिक तनाव और अवसाद का शिकार होते हैं। वे अपने आप को असमर्थ और दूसरों से कमतर समझने लगते हैं, जिससे उनका आत्मविश्वास टूट जाता है। उन्हें यह एहसास होता है कि वे सामान्य जीवन जीने में सक्षम नहीं हैं, जिससे उनके मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक असर पड़ता है।
कानूनी अधिकारों का अभाव और जागरूकता की कमी
हालांकि भारत में विकलांग व्यक्तियों के लिए विकलांगता अधिकार अधिनियम, 2016 (The Rights of Persons with Disabilities Act, 2016) लागू किया गया है, जिससे उन्हें शिक्षा, रोजगार, और स्वास्थ्य सेवाओं में समान अवसर मिलते हैं, फिर भी इन कानूनी अधिकारों का सही तरीके से पालन नहीं किया जाता। विकलांग व्यक्तियों को इन अधिकारों के बारे में जागरूकता की कमी होती है और इसके कारण वे अपनी समस्याओं के समाधान के लिए कदम नहीं उठा पाते।
विकलांग व्यक्तियों की समस्याएँ समाज में गहरी छाप छोड़ती हैं और उनके जीवन को कठिन बना देती हैं। इसके लिए समाज में जागरूकता फैलाने, सुविधाओं में सुधार करने और विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों का सख्ती से पालन करने की आवश्यकता है। सरकार को विकलांग व्यक्तियों के लिए विशेष योजनाओं को लागू करने के साथ-साथ शिक्षा, रोजगार, परिवहन, और स्वास्थ्य सेवाओं के क्षेत्र में सुधार करना चाहिए। समाज को विकलांगता को एक समस्या के रूप में नहीं, बल्कि एक सामाजिक और मानवाधिकार के रूप में देखना चाहिए, ताकि विकलांग व्यक्ति भी समाज के समान सदस्य बन सकें और अपने जीवन को बेहतर बना सकें।
ईश्वर छाटा अध्यक्ष छत्तीसगढ़ विकलांग मंच कोषाध्यक्ष राष्ट्रीय विकलांग मंच
चारामा