अंग्रेजों की नजर सोनाखान की सोने पर थी जैसे आज बहुराष्ट्रीय कंपनियों की नजर आदिवासी क्षेत्रों के खनिज संसाधन पर है– आर एन ध्रुव
LOK ASAR BALOD/DHAMTARI
अंग्रेज भारत देश को लूटने आए थे।उनका उद्देश्य भारतीयों में फूट डालो और राज करो की नीति था।1856-57 में भयंकर अकाल पड़ा, प्रजा को भूख से बचाने के लिये वीर नारायण सिंह ने अपने गोदामों में भरा अनाज जनता में बांट दिया और अधिक आवश्यकता पड़ने पर उन्होंने एक व्यापारी से उसके गोदाम में रखा अनाज मांगा ताकि जनता की जरूरत पूरी हो सके। उसके मना करने पर वीर नारायण सिंह ने उस व्यापारी के गोदाम का ताला तोड़कर अनाज गरीबों में बांट दिया। व्यापारी ने तत्कालिन अंग्रेज कमिश्नर सी. इलियट से शिकायत की। इस पर उसने वीर नारायण सिंह को गिरफ्तार कर पहले सम्बलपुर और बाद में 24.10.1856 को रायपुर जेल में डाल दिया।
सन 1956 का अकाल फूट डालकर राज करने वाले अंग्रेजों के लिए एक सुनहरा अवसर हो गया। शहीद वीर नारायण सिंह द्वारा इस व्यापारी के अनाज को भी जरूरतमंदों को बांटने के कारण व्यापारी के माध्यम से शिकायत करवा कर अंग्रेजों ने एक तीर से दो निशाने साधे।
अंग्रेज जानते थे की सोनाखान को हासिल करना कितना महत्वपूर्ण है । उन्हें मालूम था कि सोनाखान में अपार सोने का भंडार है। जिसे आज भी वहां के लोग नदी में जाकर सोना संग्रह करते हैं । पिछले दिनों अडानी कंपनी द्वारा भी वहां के एक गांव में सर्वे किया गया ।जिसमें अकूत सोने का भंडार होने का पता चला है। जैसे आज आदिवासी क्षेत्रों में खनिज संसाधन पर बहुराष्ट्रीय कंपनियों की नजर लगी हुई है। वैसे ही उस समय अंग्रेजों की नजर सोनाखान की सोने पर थी। वे सोनाखान को हर हाल में खाली कराकर सोना को हासिल करना चाहते थे । लेकिन शहीद वीर नारायण सिंह सोनाखान के इस महत्व को जानते थे वे अपने मातृ भूमि को किसी भी स्थिति में खाली करना नहीं चाहते थे।
परिणाम स्वरुप भीषण संग्राम पश्चात अंग्रेजों ने सोनाखान को खाली कराने हेतु पूरे सोनाखान में आग लगा दिए। वीर नारायण सिंह के कुछ वंशजों ने उड़ीसा के घेंस में जाकर रुके । लेकिन ऐसा कहा जाता है कि वहां भी अंग्रेजों ने पूरे गांव को आग के हवाले कर दिया।
इतिहास बताता है शहीद वीर नारायण सिंह और अंग्रेजों के बीच छत्तीसगढ़ और उड़ीसा बॉर्डर में सिंघोड़ा घाटी,निशा घाटी के पास भीषण संग्राम हुआ।उड़ीसा के सुंदरगढ़ राज्य के राजा वीर सुरेंद्र साय एवं छत्तीसगढ़ सोनाखान के शहीद वीर नारायण सिंह की ढाई– ढाई सौ सेना ने दोनों तरफ से घाटी के बीच अंग्रेजों को घेर कर भयंकर युद्ध पश्चात अंग्रेज सैनिकों के कत्लेआम कर अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए। आज उस स्थान को वीर घाटी के रूप में पहचान बनाने की जरूरत है।
ऐसे महान वीर सपूत शहीद वीर नारायण सिंह का जन्म वर्तमान बलौदाबाजार-भाटापारा जिला के ग्राम सोनाखान में सन् 1795 में हुआ था। उनके पिता रामराय सोनाखान के तत्कालीन जमींदार थे। वे आदिवासी वर्ग के थे। रामराय अंग्रेजी हुकूमत के विरूद्ध संघर्ष करते रहे। अपने पुरखों के इस जुझारूपन से प्रेरणा लेकर वीर नारायण सिंह बड़े हुये। उन्होने अपने पिता के ही समान सोनाखान की पहचान बनाये रखने अंग्रेजों से निरंतर संघर्ष किया।
1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के समय उन्होंने एक छोटी सेना का गठन किया, अपने कुशल नेतृत्व से उन्होंने अंग्रेजों की प्रशिक्षित सेना का मुकाबला किया। अंग्रेजों के अत्याचार से अपने प्रजा को बचाने के लिए सतत् संघर्ष करते रहें।
वीर नारायण सिंह ने हमेशा अंग्रेजी हुकूमत की मुखालफत की लिहाजा अंग्रेजी शासन उन पर पहले ही चिढ़ा हुआ था। सोनाखान के बाद उनको मौका मिल गया। वीर नारायण सिंह पर अनाज लूटने का आरोप तो पहले से ही लगा हुआ था, सोनाखान के विद्रोह का आरोप लगाकर अंग्रेजी हुकूमत ने 10 दिसंबर 1857 को रायपुर के एक भीड़ भरे चौराहे पर फांसी दी गईं । जिसे आज जय स्तम्भ चौक रायपुर के नाम से जाना जाता है। आज 10 दिसंबर अवसर पर शहीद वीर नारायण सिंह के शहादत को शत-शत नमन.